लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सड़क निर्माण को लेकर जनता के धन का जमकर दोहन हो रहा है. मौजूदा वक्त में सड़क निर्माण की दर एक करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर हो चुकी है, जबकि मरम्मत करीब ₹50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर की दर से की जा रही है. डेढ़ से दो साल पहले तक करीब ₹50 लाख प्रति किलोमीटर में शहर के भीतर की अच्छी सड़क का निर्माण हो जाता था. पीडब्ल्यूडी कॉस्ट इंडेक्स के नाम पर यह दर लगातार बढ़ाई जा रही है. जिसके जरिए कमीशन का खेल भी आसानी से खेला जा रहा है. पांच साल की गारंटी वाली सड़क डेढ़ से 2 साल में बर्बाद हो रही है. जनता की गाढ़ी कमाई से दिया गया टैक्स बर्बाद हो रहा है.
लखनऊ के कुर्सी रोड पर स्थित मामा चौराहे से लेकर खुर्रम नगर मोड़ तक सड़क की मरम्मत की गई थी. लंबाई करीब दो किलोमीटर है. इसकी मरम्मत का खर्च लगभग सवा दो करोड़ रुपए आया. इसी तरह से डेढ़ साल पहले मामा चौराहे से लेकर केंद्रीय विद्यालय अलीगंज तक सड़क का निर्माण कराया गया था, लेकिन अब बदहाल हो चुकी है. अब फिर से मरम्मत कार्य हो रहा है. इसकी मरम्मत में लगभग एक करोड़ रुपये खर्च आ रहा है. इसी तरह से इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान और उसके आस-पास की सड़क पिछले 4 साल में करीब 3 बार बनाई जा चुकी है. खर्च भी करीब ₹10 करोड़ रुपये आ चुका है. ऐसे ही पूरे प्रदेश में इसी तरह से सड़क निर्माण में बंदरबांट जारी है.
उत्तर प्रदेश विकास प्राधिकरण डिप्लोमा इंजीनियर्स (रिटायर्ड) संघ के महासचिव एसआर सिंह बताते हैं कि निश्चित तौर पर गुणवत्ता की कमी नजर आती है. कोई भी सड़क पांच साल से पहले खराब नहीं होनी चाहिए. दोनों जगह ही कमी नजर आ रही है. उन्होंने कहा कि एक तो खराब मटेरियल लगाया जाता है वहीं दूसरी ओर स्किल की कमी की वजह से भी सड़क खराब होती है. जहां तक बात एस्टीमेट की है तो वह पीडब्ल्यूडी इंडेक्स के हिसाब से तय होता है. जिसको बढ़ाते समय सड़क निर्माण की गुणवत्ता की गारंटी ली जाती है.
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इस मुद्दे पर लोक निर्माण विभाग के विभागाध्यक्ष मनोज कुमार गुप्ता का कहना है कि सड़कों की उचित गुणवत्ता का ख्याल रखने के लिए हमने पूरे प्रदेश में अलग-अलग मॉनिटरिंग कमेटी बना दी है. जहां भी गड़बड़ी पाई जाएगी कार्रवाई होगी.
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