लखनऊ : पुराने लखनऊ के ऐशबाग इलाके में मोतीझील, जमुना और सुपा झीलें दम तोड़ रही हैं. केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के प्रयास भी इन झीलों को पुनर्जीवित नहीं कर पा रहे हैं. सरकारी एजेंसी पैमाइश कर रही हैं और योजनाएं बना रही हैं. इसके बावजूद झीलें गंदगी और अवैध कब्जों की वजह से अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं. पिछले करीब ढाई साल में अनेक योजनाएं बनाई गईं. जिसमें नगर निगम और लखनऊ विकास प्राधिकरण को शामिल किया गया. केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से शिकायत के बाद सरकारी अमले ने कुछ प्रयास जरूर शुरू किए थे, लेकिन आज का हाल यह है कि झीलों पर जलकुंभी छाई हुई है.
जमुना झील के चारों ओर कभी जामुन के पेड़ हुआ करते थे. हरियाली थी. शांति थी. पानी निर्मल था. हालात अब खतरनाक हो रहे हैं. पानी अब कम हो रहा है. मिट्टी पाटी जा रही है. झील की जमीन पर बड़े निर्माण की तैयारी थी, जो स्थानीय लोगों के दखल के बाद बंद हुई, लेकिन बदहाली खत्म नहीं हुई. केंद्रीय गृहमंत्री और राजधानी के सांसद राजनाथ सिंह से इसकी शिकायत की गई. जिसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा को जांच कर के कार्यवाही करने के लिए कहा गया था. झील का करीब 500 साल पुराना इतिहास है. इतिहासकार बताते हैं कि पहले झील के चारों ओर जामुन के हरे भरे पेड़ हुआ करते थे. इसलिए इस झील का पुराना नाम जमुनिया झील हुआ करता था. इसके नजदीक ही मोतीझील भी है. हिंदू और मुसलमानों के अंतिम संस्कार इस झील किनारे हुआ करते थे.
ऐसा ही हाल मोती झील, सुपा झील, काला पहाड़ झील का भी है. स्थानीय नागरिक शिकायत करते-करते बेहाल हैं. ढाई साल पहले जीर्णोद्धार की योजना बनी थी, लेकिन उस पर आज तक अमल नहीं किया जा सका. यह बात दीगर है कि समय-समय पर अवैध कब्जों की कोशिशें होती रही हैं.
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लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष इंद्रमणि त्रिपाठी ने इस बारे में बताया कि जल्द ही जिलों के जीर्णोद्धार की योजना को जमीन पर लाया जाएगा. हर हाल में जलाशयों को अवैध कब्जों से बचाया जाएगा और उनका सुंदरीकरण होगा.
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