लखनऊ: इलाहाबाद होईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मनी लॉन्ड्रिंग के अभियुक्त की अग्रिम जमानत अर्जी गुरुवार को खारिज कर दी. अदालत ने इस मामले को लेकर तल्ख टिप्पणी की और कहा कि कि काले धन के कारोबारियों के लिए जेल नियम और जमानत अपवाद है.
सर्वोच्च न्यायालय जमानत के मामलों में कई बार 'जमानत नियम और जेल अपवाद' के सिद्धांत को दोहरा चुका है. ऐसे में मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में हाईकोर्ट की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है. यह टिप्पणी न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकल पीठ ने अनिरुद्ध कुमार शुक्ला की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए की. न्यायालय ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग अपराध होने के साथ-साथ राष्ट्र के लिए भी खतरा है.
यह ऐसे सफेदपोश अपराधी करते हैं, जो समाज में अच्छी पैठ रखते हैं. इस प्रकार के अपराध षडयंत्र करके इस बात की परवाह किए बिना अंजाम दिये जाते हैं कि इसका समाज और देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि मनी लॉन्ड्रिंग निषेध अधिनियम के तहत अपराध के मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान लागू नहीं होते हैं.
मामला वर्ष 2005 से 2016 के बीच का है. बैंक ऑफ इंडिया के कुछ बड़े अधिकारियों ने मिलीभगत करके आठ फर्जी हाउसिंग लोन पास किए थे. बाद में ये सभी लोन एनपीए हो गए. अभियुक्त ने भी सीनियर ब्रांच मैनेजर क्रेडिट आरके मिश्रा और विन्नी सोढी उर्फ विक्रम दीक्षित के साथ साठगांठ कर के फर्जी दस्तावेजों के सहारे लाखों रुपये हासिल किए थे.
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