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लखनऊ: केजीएमयू की नई सौगात, बिना लिवर ट्रांसप्लांट के हो सकेगा मरीजों का इलाज

राजधानी के केजीएमयू में लिवर के मरीजों को अब लिवर ट्रांसप्लांट जैसा महंगा इलाज नहीं कराना पड़ेगा. क्योंकि लिवर सिरोसिस की मदद से बिना लिवर ट्रांसप्लांट के काम चल सकेगा. केजीएमयू ने इसके तहत अभी तक 8 मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया है.

जानकारी देते केजीएमयू के डॉक्टर डी हिमांशु.
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Published : Mar 31, 2019, 3:10 PM IST

लखनऊ: राजधानी के केजीएमयू ने लिवर के मरीजों को नई सौगात दी है. दरअसल लिवर के मरीजों को ज्यादा दिक्कत होने पर लिवर ट्रांसप्लांट जैसे महंगे इलाज कराना पड़ता हैं. इन्हीं सबको ध्यान में रखते हुए केजीएमयू ने एक नया तरीका निकाल लिया है. जिससे आने वाले दिनों में मरीजों को सस्ता व बेहतर इलाज इस तकनीकि से मिल पाएगा.

जानकारी देते केजीएमयू के डॉक्टर डी हिमांशु.

जिन मरीजों का लिवर क्रॉनिक हो जाता है, उनका अब बिना ट्रांसप्लांट के भी काम चल सकेगा. लेकिन जिनका सिरोसिस होता है. उनमें ट्रांसप्लांट के अलावा कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में एक्यू क्रोनिक वालों को लिवर सिरोसिस की मदद के बिना ट्रांसप्लांट के काम चल सकेगा. इस पूरे इलाज में करीब 50 हजार का खर्च आता है. जो लिवर ट्रांसप्लांट की तुलना में बहुत सस्ता है.

केजीएमयू ने अभी तक 8 मरीजों में इसको सफलतापूर्वक ऑपरेट किया है. लिवर फेरेसिस करने वालों मे केजीएमयू के डॉक्टर डी हिमांशु , डॉ तुलिका चंद्रा , व पीजीआई के डॉ. धीरज और डॉ. अमित गोयल है, वहीं डॉक्टर हिमांशु ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी.

क्या होता है फेरेसिस?

इसमें पीड़ित का पूरा खून रेसिस मशीन से साफ किया जाता है. उसके शरीर में हीमोग्लोबिन आरबीसी आदि चढ़ाया जाता है. और एक व्यक्ति में करीब 15 यूनिट प्लाज्मा की जरूरत पड़ती है. इसमें चार चार दिन के अंतराल पर तीन से चार बार यह पूरी प्रक्रिया की जाती है और इस पूरी प्रक्रिया के हो जाने के बाद करीब डेढ़ से 2 हफ्ते तक ऑब्जर्वेशन पर रखकर मरीज का इलाज किया जाता है.

लखनऊ: राजधानी के केजीएमयू ने लिवर के मरीजों को नई सौगात दी है. दरअसल लिवर के मरीजों को ज्यादा दिक्कत होने पर लिवर ट्रांसप्लांट जैसे महंगे इलाज कराना पड़ता हैं. इन्हीं सबको ध्यान में रखते हुए केजीएमयू ने एक नया तरीका निकाल लिया है. जिससे आने वाले दिनों में मरीजों को सस्ता व बेहतर इलाज इस तकनीकि से मिल पाएगा.

जानकारी देते केजीएमयू के डॉक्टर डी हिमांशु.

जिन मरीजों का लिवर क्रॉनिक हो जाता है, उनका अब बिना ट्रांसप्लांट के भी काम चल सकेगा. लेकिन जिनका सिरोसिस होता है. उनमें ट्रांसप्लांट के अलावा कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में एक्यू क्रोनिक वालों को लिवर सिरोसिस की मदद के बिना ट्रांसप्लांट के काम चल सकेगा. इस पूरे इलाज में करीब 50 हजार का खर्च आता है. जो लिवर ट्रांसप्लांट की तुलना में बहुत सस्ता है.

केजीएमयू ने अभी तक 8 मरीजों में इसको सफलतापूर्वक ऑपरेट किया है. लिवर फेरेसिस करने वालों मे केजीएमयू के डॉक्टर डी हिमांशु , डॉ तुलिका चंद्रा , व पीजीआई के डॉ. धीरज और डॉ. अमित गोयल है, वहीं डॉक्टर हिमांशु ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी.

क्या होता है फेरेसिस?

इसमें पीड़ित का पूरा खून रेसिस मशीन से साफ किया जाता है. उसके शरीर में हीमोग्लोबिन आरबीसी आदि चढ़ाया जाता है. और एक व्यक्ति में करीब 15 यूनिट प्लाज्मा की जरूरत पड़ती है. इसमें चार चार दिन के अंतराल पर तीन से चार बार यह पूरी प्रक्रिया की जाती है और इस पूरी प्रक्रिया के हो जाने के बाद करीब डेढ़ से 2 हफ्ते तक ऑब्जर्वेशन पर रखकर मरीज का इलाज किया जाता है.

Intro:एंकर- राजधानी की केजीएमयू अस्पताल ने लिवर के मरीजों को नई सौगात दी है। दरअसल लीवर के मरीजों को ज्यादा दिक्कत होने पर लिवर ट्रांसप्लांट जैसे महंगे इलाज कराने पड़ते हैं। इन्हीं सब को ध्यान में रखते हुए केजीएमयू ने एक नया तरीका इजाद कर लिया है। जिससे आने वाले दिनों में मरीजों को सस्ता व बेहतर इलाज इस तकनीक द्वारा मिल पाएगा।


Body:वी.ओ-राजधानी की केजीएमयू अस्पताल ने लिवर के मरीजों को नई सौगात दी है। दरअसल लीवर के मरीजों को ज्यादा दिक्कत होने पर लिवर ट्रांसप्लांट जैसे महंगे इलाज कराने पड़ते हैं। इन्हीं सब को ध्यान में रखते हुए केजीएमयू ने एक नया तरीका इजाद कर लिया है। जिससे आने वाले दिनों में मरीजों को सस्ता व बेहतर इलाज इस तकनीक द्वारा मिल पाएगा। लीवर के मरीजों की पहले दवा से इलाज होता है। जिन मरीजों का लीवर की क्रॉनिक हो जाता है। उनका अब बिना ट्रांसप्लांट के भी काम चल सकेगा। लेकिन जिनका सिरोसिस होता है।उनमें ट्रांसप्लांट के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में एक्यू क्रोनिक वालों को लिवर सिरोसिस की मदद से बिना ट्रांसप्लांट के काम चला जा सकेगा इस पूरे इलाज में करीब 50 हज़ार का खर्च आता है। जोकि लिवर ट्रांसप्लांट की तुलना में बहुत अधिक सस्ता है। केजीएमयू ने अभी तक 8 मरीजों में इस को सफलतापूर्वक ऑपरेट किया है। लिवर फेरेसिस करने वालों मे केजीएमयू के डॉक्टर डी हिमांशु डॉक्टर,डॉ तुलिका चंद्रा , व पीजीआई के डॉ धीरज और डॉ अमित गोयल है। इस पूरे मामले में केजीएमयू के डॉक्टर हिमांशु ने विस्तार से जानकारी दी।

बाइट- डॉ, डी हिमांशु, केजीएमयू

क्या होता है फेरेसिस?

इसमें पीड़ित का पूरा खून से रेसिस मशीन द्वारा साफ किया जाता है। उसके शरीर में हीमोग्लोबिन आरबीसी आदि चढ़ाया जाता है। लेकिन प्लाज्मा किसी दूसरे का चढ़ाया जाता है। यानी मरीज के शरीर से उसका प्लाज्मा निकाल दिया जाता है। एक व्यक्ति में करीब 15 यूनिट प्लाज्मा की जरूरत पड़ती है। इसमें चार चार दिन के अंतराल पर तीन से चार बार यह पूरी प्रक्रिया की जाती है और इस पूरी प्रक्रिया के हो जाने के बाद करीब डेढ़ से 2 हफ्ते तक ऑब्जर्वेशन पर रखकर मरीज का इलाज किया जाता है।


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