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यूपी विधानसभा चुनाव 2022: सियासी रण में उतरने से पहले ही कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ रहे सवर्ण - अजय कुमार लल्लू

यूपी में 'कांग्रेस की उम्मीद' प्रियंका गांधी संगठन को बनाने के लिए जितने जतन कर रही हैं, सवर्ण नेताओं के लगातार 'हाथ' छोड़ने से संगठन का उतना ही पतन हो रहा है. सवर्णों के तेजी से कांग्रेस छोड़ने के कारण कांग्रेस को बड़ा झटका लग सकता है.

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Published : Sep 25, 2021, 6:21 PM IST

Updated : Sep 25, 2021, 9:40 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में तीन दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता से दूर कांग्रेस पार्टी भी अपनी बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए सभी जतन कर रही है. यूपी में 'कांग्रेस की उम्मीद' प्रियंका गांधी संगठन के गठन को लेकर जितने जतन कर रही हैं, सवर्ण नेताओं के लगातार 'हाथ' छोड़ने से संगठन का उतना ही नुकसान हो रहा है. सवर्णों की अनदेखी के आरोप के साथ जिस गति से सवर्ण नेताओं की पार्टी से रुख़्सती हो रही है, उससे कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदों को झटका लग सकता है.

कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रहे सवर्ण
पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी ने साल 2019 में उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में कमान संभाली थी. लगभग ढाई साल का समय हो चुका है और इस दौरान प्रियंका ने तमाम ऐसे कार्यक्रम उत्तर प्रदेश कांग्रेस को दिए, जिससे पार्टी खड़ी हो सके. पार्टी के नेता हाईकमान की तरफ से दिए गए कार्यक्रमों को लेकर मैदान में उतरे, लेकिन चुनाव से पहले पार्टी में जिस तरह सवर्णों की अनदेखी के आरोप लगे, उससे तमाम नेता आहत होकर पार्टी छोड़ने लगे.

पार्टी से सवर्णों का तेजी से मोहभंग हो रहा है. यही वजह है कि अब तक प्रदेश के कई दर्जन सवर्ण नेता पार्टी का दामन छोड़ गए हैं. हाल ही में 100 बरस और चार पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ रहे त्रिपाठी परिवार ने भी पार्टी से अपना हाथ छुड़ा लिया है. ललितेश पति त्रिपाठी ने पार्टी का साथ छोड़ दिया. सवर्णों के लगातार पार्टी से बाहर जाने के चलते उत्तर प्रदेश में मजबूत होने के बजाय कांग्रेस कमजोर हो रही है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के हाथ में है. पार्टी से जितने भी लोग इस्तीफा दे रहे हैं, वह प्रदेश नेतृत्व पर भी उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की कमान कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव व यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने संभाल रखी है. अभियानों, सम्मेलनों और यात्राओं के जरिए प्रियंका की कोशिश भी जारी हैं. कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने के लिए ही प्रियंका ने इस बार उत्तर प्रदेश में किसी भी बड़े दल से गठबंधन न करने का भी फैसला लिया है. इससे कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि उन्हें भी चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा. प्रियंका सक्रिय हैं तो ऐसे में वोटों की बारिश की उम्मीद भी पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनसे ही लगा रखी है. उन्हें उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में 'कांग्रेस की उम्मीद' प्रियंका गांधी का डंका जरूर बजेगा. इस बार 32 साल का सियासी सूखा जरूर खत्म होगा.

इन सवर्ण नेताओं ने बनाई कांग्रेस से दूरी

  • जितिन प्रसाद (पूर्व केंद्रीय मंत्री)
  • संजय सिंह (पूर्व सांसद)
  • अमिता सिंह (पूर्व चेयरमैन, प्रोफेशनल कांग्रेस)
  • राजकिशोर सिंह (पूर्व प्रदेश महासचिव)
  • सत्यदेव त्रिपाठी (पूर्व मंत्री, पूर्व चेयरमैन मीडिया)
  • ललितेश पति त्रिपाठी (पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष)
  • सुनील राय (पूर्व प्रदेश सचिव)
  • कोणार्क दीक्षित (कोऑर्डिनेटर, रिसर्च डिपार्टमेंट)
  • विनोद मिश्रा (पूर्व प्रदेश महासचिव)
  • पंडित राजीव बक्शी (पूर्व मीडिया कोऑर्डिनेटर)
  • एसपी गोस्वामी (प्रदेश अध्यक्ष, यूथ कांग्रेस)
  • रंजन दीक्षित (पूर्व प्रदेश सचिव)
  • राजेश शुक्ला (पूर्व अध्यक्ष, एनएसयूआई )
  • गौरव दीक्षित (पूर्व कोऑर्डिनेटर रिसर्च विभाग)
  • नीलम मिश्रा (पूर्व जिलाध्यक्ष)
  • अविनाश मिश्रा (वरिष्ठ नेता)
  • डॉ संतोष सिंह (पूर्व सांसद, पूर्व उपाध्यक्ष)
  • संजीव सिंह (पूर्व महासचिव)
  • सर्वजीत सिंह मक्कड़ (चेयरमैन, डाटा एनालीसिस एंड आउटरीच)
  • अमित त्यागी (प्रदेश प्रवक्ता, शहर अध्यक्ष)
  • शैलेंद्र सिंह (एआईसीसी सदस्य)
  • राजेश सिंह (एआइसीसी सदस्य, पूर्व प्रदेश सचिव)
  • दीपक सिंह (पूर्वजिला उपाध्यक्ष)
  • प्रदीप सिंह राठौर (पूर्व उपाध्ययक्ष, जिला कांग्रेस)
  • चंद्रशेखर सिंह (पूर्व जिलाध्यक्ष)
  • रवि दुबे (पूर्व जिलाध्यक्ष किसान कांग्रेस)

कांग्रेस में सवर्ण नेताओं की अनदेखी पर वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी पहले सवर्णों, दलितों और मुस्लिमों की पार्टी हुआ करती थी. उत्तर प्रदेश में जबसे प्रियंका गांधी ने कमान संभाली है, तबसे सवर्ण नेताओं की अनदेखी हो रही है. बड़े नेता पार्टी से दूर हो गए हैं. इन बड़े नेताओं में पहले जितिन प्रसाद गए और अब हाल ही में ललितेश पति त्रिपाठी भी चले गए. इसके अलावा भी तमाम बड़े सवर्ण नेता कांग्रेस को छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए. जिस तरह से कांग्रेस पार्टी में वामपंथी विचारधारा का प्रवेश हो रहा है, उससे सवर्ण पार्टी में कैसे रुकेंगे. इससे यह तय है कि कांग्रेस पार्टी अपने नेताओं को रोक कर रखने में समर्थ नहीं है. जब सवर्ण नहीं रुकेंगे तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस कैसे वापस होगी? इस पर पार्टी को विचार करना चाहिए.

ये भी पढ़ें- राज्यमंत्री जयप्रकाश निषाद के बेटे ने प्रभारी BDO को पीटा


कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशु अवस्थी कहते हैं की पार्टी सभी जातियों और वर्गों को लेकर शुरू से ही साथ चलती रही है. किसी भी जाति और वर्ग के विभाजन में पार्टी विश्वास नहीं करती है. कांग्रेस के साथ सभी वर्गों के लोग जुड़े हैं और हमें पूरी उम्मीद है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में तीन दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता से दूर कांग्रेस पार्टी भी अपनी बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए सभी जतन कर रही है. यूपी में 'कांग्रेस की उम्मीद' प्रियंका गांधी संगठन के गठन को लेकर जितने जतन कर रही हैं, सवर्ण नेताओं के लगातार 'हाथ' छोड़ने से संगठन का उतना ही नुकसान हो रहा है. सवर्णों की अनदेखी के आरोप के साथ जिस गति से सवर्ण नेताओं की पार्टी से रुख़्सती हो रही है, उससे कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदों को झटका लग सकता है.

कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रहे सवर्ण
पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी ने साल 2019 में उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में कमान संभाली थी. लगभग ढाई साल का समय हो चुका है और इस दौरान प्रियंका ने तमाम ऐसे कार्यक्रम उत्तर प्रदेश कांग्रेस को दिए, जिससे पार्टी खड़ी हो सके. पार्टी के नेता हाईकमान की तरफ से दिए गए कार्यक्रमों को लेकर मैदान में उतरे, लेकिन चुनाव से पहले पार्टी में जिस तरह सवर्णों की अनदेखी के आरोप लगे, उससे तमाम नेता आहत होकर पार्टी छोड़ने लगे.

पार्टी से सवर्णों का तेजी से मोहभंग हो रहा है. यही वजह है कि अब तक प्रदेश के कई दर्जन सवर्ण नेता पार्टी का दामन छोड़ गए हैं. हाल ही में 100 बरस और चार पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ रहे त्रिपाठी परिवार ने भी पार्टी से अपना हाथ छुड़ा लिया है. ललितेश पति त्रिपाठी ने पार्टी का साथ छोड़ दिया. सवर्णों के लगातार पार्टी से बाहर जाने के चलते उत्तर प्रदेश में मजबूत होने के बजाय कांग्रेस कमजोर हो रही है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के हाथ में है. पार्टी से जितने भी लोग इस्तीफा दे रहे हैं, वह प्रदेश नेतृत्व पर भी उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की कमान कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव व यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने संभाल रखी है. अभियानों, सम्मेलनों और यात्राओं के जरिए प्रियंका की कोशिश भी जारी हैं. कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने के लिए ही प्रियंका ने इस बार उत्तर प्रदेश में किसी भी बड़े दल से गठबंधन न करने का भी फैसला लिया है. इससे कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि उन्हें भी चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा. प्रियंका सक्रिय हैं तो ऐसे में वोटों की बारिश की उम्मीद भी पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनसे ही लगा रखी है. उन्हें उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में 'कांग्रेस की उम्मीद' प्रियंका गांधी का डंका जरूर बजेगा. इस बार 32 साल का सियासी सूखा जरूर खत्म होगा.

इन सवर्ण नेताओं ने बनाई कांग्रेस से दूरी

  • जितिन प्रसाद (पूर्व केंद्रीय मंत्री)
  • संजय सिंह (पूर्व सांसद)
  • अमिता सिंह (पूर्व चेयरमैन, प्रोफेशनल कांग्रेस)
  • राजकिशोर सिंह (पूर्व प्रदेश महासचिव)
  • सत्यदेव त्रिपाठी (पूर्व मंत्री, पूर्व चेयरमैन मीडिया)
  • ललितेश पति त्रिपाठी (पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष)
  • सुनील राय (पूर्व प्रदेश सचिव)
  • कोणार्क दीक्षित (कोऑर्डिनेटर, रिसर्च डिपार्टमेंट)
  • विनोद मिश्रा (पूर्व प्रदेश महासचिव)
  • पंडित राजीव बक्शी (पूर्व मीडिया कोऑर्डिनेटर)
  • एसपी गोस्वामी (प्रदेश अध्यक्ष, यूथ कांग्रेस)
  • रंजन दीक्षित (पूर्व प्रदेश सचिव)
  • राजेश शुक्ला (पूर्व अध्यक्ष, एनएसयूआई )
  • गौरव दीक्षित (पूर्व कोऑर्डिनेटर रिसर्च विभाग)
  • नीलम मिश्रा (पूर्व जिलाध्यक्ष)
  • अविनाश मिश्रा (वरिष्ठ नेता)
  • डॉ संतोष सिंह (पूर्व सांसद, पूर्व उपाध्यक्ष)
  • संजीव सिंह (पूर्व महासचिव)
  • सर्वजीत सिंह मक्कड़ (चेयरमैन, डाटा एनालीसिस एंड आउटरीच)
  • अमित त्यागी (प्रदेश प्रवक्ता, शहर अध्यक्ष)
  • शैलेंद्र सिंह (एआईसीसी सदस्य)
  • राजेश सिंह (एआइसीसी सदस्य, पूर्व प्रदेश सचिव)
  • दीपक सिंह (पूर्वजिला उपाध्यक्ष)
  • प्रदीप सिंह राठौर (पूर्व उपाध्ययक्ष, जिला कांग्रेस)
  • चंद्रशेखर सिंह (पूर्व जिलाध्यक्ष)
  • रवि दुबे (पूर्व जिलाध्यक्ष किसान कांग्रेस)

कांग्रेस में सवर्ण नेताओं की अनदेखी पर वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी पहले सवर्णों, दलितों और मुस्लिमों की पार्टी हुआ करती थी. उत्तर प्रदेश में जबसे प्रियंका गांधी ने कमान संभाली है, तबसे सवर्ण नेताओं की अनदेखी हो रही है. बड़े नेता पार्टी से दूर हो गए हैं. इन बड़े नेताओं में पहले जितिन प्रसाद गए और अब हाल ही में ललितेश पति त्रिपाठी भी चले गए. इसके अलावा भी तमाम बड़े सवर्ण नेता कांग्रेस को छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए. जिस तरह से कांग्रेस पार्टी में वामपंथी विचारधारा का प्रवेश हो रहा है, उससे सवर्ण पार्टी में कैसे रुकेंगे. इससे यह तय है कि कांग्रेस पार्टी अपने नेताओं को रोक कर रखने में समर्थ नहीं है. जब सवर्ण नहीं रुकेंगे तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस कैसे वापस होगी? इस पर पार्टी को विचार करना चाहिए.

ये भी पढ़ें- राज्यमंत्री जयप्रकाश निषाद के बेटे ने प्रभारी BDO को पीटा


कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशु अवस्थी कहते हैं की पार्टी सभी जातियों और वर्गों को लेकर शुरू से ही साथ चलती रही है. किसी भी जाति और वर्ग के विभाजन में पार्टी विश्वास नहीं करती है. कांग्रेस के साथ सभी वर्गों के लोग जुड़े हैं और हमें पूरी उम्मीद है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी.

Last Updated : Sep 25, 2021, 9:40 PM IST
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