लखनऊ: नवाबों का शहर लखनऊ अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. हर साल लाखों, करोड़ों पर्यटक इन ऐतिहासिक इमारतों का दीदार करने आते हैं. इनमें लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, भूल भुलैया, रूमी दरवाजा, क्लॉक टावर, पिक्चर गैलरी और सतखंडा काफी प्रसिद्ध है. इन ऐतिहासिक विरासतों को देखने आने वाले पर्यटक जब इनका दीदार करते हैं, तो उनकी आंखें ठहर सी जाती हैं.
बेहद खूबसूरत इन ऐतिहासिक इमारतों को उत्तर प्रदेश सरकार ने अच्छे ढंग से संजोकर भी रखा है. यह पहली बार हो रहा है कि जब बड़ा इमामबाड़ा कोरोना के चलते विश्व धरोहर दिवस पर पर्यटकों से खाली है. यहां पर एक भी पर्यटक मौजूद नहीं है, नहीं तो हर रोज हजारों की संख्या में पर्यटकों की मौजूदगी रहती है. वर्ष 1784 में नवाब आसफुद्दौला ने बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण कराया था. भूल-भुलैया के नाम से भी यह बड़ा इमामबाड़ा जाना जाता है.
अकाल के समय बनी थी इमारत
अंग्रेजों के जमाने के ऐतिहासिक चारबाग रेलवे स्टेशन से यह विश्व की धरोहर बड़ा इमामबाड़ा 5.3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. नवाब द्वारा अकाल राहत कार्यक्रम में निर्मित ये किला विशाल और भव्य संरचना है, जिसे आसिफी इमामबाड़ा के नाम से भी जानते हैं. इसके संकल्पनाकार किफायतुल्लाह थे, जो ताजमहल के वास्तुकार के सगे संबंधी बताए जाते हैं. यह न तो मस्जिद है और न ही मकबरा, इसीलिए यह सभी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है.
इमामबाड़ा के ही बगल में स्थित है रूमी दरवाजा
इस दरवाजे का निर्माण अकाल राहत प्रोजेक्ट के तहत किया गया था. नवाब आसफुद्दौला ने यह दरवाजा 1783 में अकाल के दौरान बनवाया था, जिससे लोगों को रोजगार प्राप्त हो सके. इस दरवाजे को तुर्किश गेटवे भी कहा जाता है. 60 फीट ऊंचा रूमी दरवाजा लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है. इसी तरह छोटे इमामबाड़ा का निर्माण मोहम्मद अली शाह ने 1837 में कराया था. माना यह भी जाता है कि मोहम्मद अली साहब को यही दफनाया गया था. इस इमामबाड़े में मोहम्मद अली शाह की बेटी और उसके पति का भी मकबरा बना हुआ है. छोटा इमामबाड़ा भी देखने में काफी आकर्षक है.
विश्व प्रसिद्ध है हुसैनाबाद घंटाघर
यह घंटाघर रूमी दरवाजा के कुछ ही कदम पर स्थित है. 221 फीट ऊंचा यह टावर देश की ऊंची इमारतों में से एक है. इसका निर्माण 1887 में नवाब नसीरुद्दीन के समय शुरू हुआ था, लेकिन इसी वर्ष उनकी मृत्यु के कारण इसका काम पूरा नहीं हो पाया. उस जमाने में घंटाघर पर 1.74 लाख रुपए खर्च किया गया था. इस क्लॉक टावर की खासियत इसकी सुइयां हैं. ये सुइयां बंदूक धातु की बनी हैं, जिन्हें लंदन के लुईगेट हिल से लाया गया था. घंटे के आसपास फूलों की पंखुड़ियों के आकार की वेल्स लगी हैं. इसे रास्केल पायने ने डिजाइन किया था.
बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा के बीच में स्थित है सतखंडा
नवाब सआदत अली खां ने अपने शासन काल में जो भवन बनवाए, वे फ्रांसीसी और इतालबी स्थापत्य में ढले हुए हैं. ऐसी ही सतखंडा एक खूबसूरत इमारत है. अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने 1842 में सतखंडा पैलेस बनवाया था. इस पैलेस की खासियत यह है कि इसकी हर मंजिल पर कोण और मेहराबों की बनावट परिवर्तित है.
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बताया जाता है कि मुहम्मद अली शाह 8 जुलाई 1837 को अवध के तख्ते सल्तनत पर काबिज हुए थे. उसके कुछ ही दिनों बाद उन्होंने नवाब आसफुद्दौला के निवास दौलतखाना कदीम के पास हुसैनाबाद की बुनियाद रख दी थी. हालांकि जब सतखंडा पैलेस बना उसी समय उनकी मृत्यु हो गई. उस समय का यह रिवाज था कि जिस इमारत को बनवाने वाले की बीच में ही मृत्यु हो जाती थी, तो उस इमारत को मनहूस मान लिया जाता था और वहीं पर काम रोक दिया जाता था. सतखंडा के बगल ही स्थित है पिक्चर गैलरी, जिसमें तमाम राजाओं की पिक्चरें लगी हुई हैं.