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564 गवाहों की अभियुक्त के जीवन काल में नहीं हो सकती गवाही: कोर्ट

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Published : May 9, 2022, 9:54 PM IST

गरीबों को वितरित करने के लिए आये अनाज को वितरित न कर काला बाजारी करने के आरोपी ईश्वर चन्द्र अग्रवाल के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर सभी मुकदमों की एक साथ सुनवाई की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी गयी.

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सीबीआई की विशेष अदालत

लखनऊ: गरीबों को वितरित करने के लिए आये अनाज को वितरित न कर काला बाजारी करने के आरोपी ईश्वर चन्द्र अग्रवाल के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर सभी मुकदमों की एक साथ सुनवाई की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी गयी. इस अर्जी को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश अजय विक्रम सिंह ने खारिज कर दिया है.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अनाज घोटाले की घटना हालांकि लखनऊ के विभिन्न ब्लॉकों में हुई है, लेकिन कुछ आरोपियों और गवाहों को छोड़कर सभी मुकदमे समान हैं. कोर्ट ने कहा कि ईश्वर चन्द्र अग्रवाल सभी मामलों में आरोपी है, लेकिन आरोपी ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग व्यक्तियों के साथ मिलकर अपराध किए हैं.

इसे भी पढ़ेंः अखिलेश यादव का फिर जागा आज़म प्रेम, बोले सपा खान साहब के साथ

कोर्ट ने कहा कि यदि सभी मामलों की एक ही सुनवाई की जाए तो आरोपी के खिलाफ कुल 564 गवाहों की गवाही की जानी है, जो कि आरोपी के जीवन काल में पूरी हो पाना सम्भव नहीं है. लिहाजा आरोपी के खिलाफ चल रहे सभी मामलों की अलग अलग सुनवाई होगी. आरोपी की ओर से अर्जी देकर कहा गया कि मामले की रिपोर्ट में उसे नामजद नहीं किया गया था.

विवेचना के दौरान उसका नाम प्रकाश में आया है. कहा गया कि सीबीआई ने लखनऊ में हुए अनाज घोटाले की विवेचना शुरू की लेकिन बाद में सीबीआई ने लखनऊ के नौ ब्लॉकों में हुए घोटाले की अलग-अलग विवेचना करके आरोपी के खिलाफ अलग-अलग चार्जशीट दायर की. लिहाजा उसके खिलाफ दाखिल सभी आरोप पत्रों पर एक साथ सुनवाई की जाए.

उल्लेखनीय है कि बीपीएल योजना के तहत गरीबों को वितरित करने के लिए आने वाले अनाज को गरीबों में वितरित करने की जगह आरोपी ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर काला बाजारी करके खुले बाजार और व्यापारियों को बेचकर मुनाफा कमाया था और सरकार को लाखों रुपये का चूना लगता था।.

बताया गया कि मामले की विवेचना के दौरान सीबीआई को पता चला कि अनाज को सरकारी गोदाम से ब्लॉक के गोदाम तक पहुचने ही नहीं दिया जाता था. अन्य आरोपियों के अलावा ईश्वर चंद्र अग्रवाल की संलिप्तता इस घोटाले में है. बताया गया की गोदाम प्रभारी को विभिन्न तिथियों में पत्र द्वारा अनाज जारी करने के लिए भेजा गया और जो अनाज कोटेदारों के जरिये गरीबों को वितरित किया जाना था. उस अनाज को गरीबों को वितरित करने की जगह खुले बाजार में बेच कर काला बाजारी की गयी थी.

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लखनऊ: गरीबों को वितरित करने के लिए आये अनाज को वितरित न कर काला बाजारी करने के आरोपी ईश्वर चन्द्र अग्रवाल के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर सभी मुकदमों की एक साथ सुनवाई की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी गयी. इस अर्जी को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश अजय विक्रम सिंह ने खारिज कर दिया है.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अनाज घोटाले की घटना हालांकि लखनऊ के विभिन्न ब्लॉकों में हुई है, लेकिन कुछ आरोपियों और गवाहों को छोड़कर सभी मुकदमे समान हैं. कोर्ट ने कहा कि ईश्वर चन्द्र अग्रवाल सभी मामलों में आरोपी है, लेकिन आरोपी ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग व्यक्तियों के साथ मिलकर अपराध किए हैं.

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कोर्ट ने कहा कि यदि सभी मामलों की एक ही सुनवाई की जाए तो आरोपी के खिलाफ कुल 564 गवाहों की गवाही की जानी है, जो कि आरोपी के जीवन काल में पूरी हो पाना सम्भव नहीं है. लिहाजा आरोपी के खिलाफ चल रहे सभी मामलों की अलग अलग सुनवाई होगी. आरोपी की ओर से अर्जी देकर कहा गया कि मामले की रिपोर्ट में उसे नामजद नहीं किया गया था.

विवेचना के दौरान उसका नाम प्रकाश में आया है. कहा गया कि सीबीआई ने लखनऊ में हुए अनाज घोटाले की विवेचना शुरू की लेकिन बाद में सीबीआई ने लखनऊ के नौ ब्लॉकों में हुए घोटाले की अलग-अलग विवेचना करके आरोपी के खिलाफ अलग-अलग चार्जशीट दायर की. लिहाजा उसके खिलाफ दाखिल सभी आरोप पत्रों पर एक साथ सुनवाई की जाए.

उल्लेखनीय है कि बीपीएल योजना के तहत गरीबों को वितरित करने के लिए आने वाले अनाज को गरीबों में वितरित करने की जगह आरोपी ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर काला बाजारी करके खुले बाजार और व्यापारियों को बेचकर मुनाफा कमाया था और सरकार को लाखों रुपये का चूना लगता था।.

बताया गया कि मामले की विवेचना के दौरान सीबीआई को पता चला कि अनाज को सरकारी गोदाम से ब्लॉक के गोदाम तक पहुचने ही नहीं दिया जाता था. अन्य आरोपियों के अलावा ईश्वर चंद्र अग्रवाल की संलिप्तता इस घोटाले में है. बताया गया की गोदाम प्रभारी को विभिन्न तिथियों में पत्र द्वारा अनाज जारी करने के लिए भेजा गया और जो अनाज कोटेदारों के जरिये गरीबों को वितरित किया जाना था. उस अनाज को गरीबों को वितरित करने की जगह खुले बाजार में बेच कर काला बाजारी की गयी थी.

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