लखनऊ: 21वीं सदी के शुरुआती दो दशक को उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए आजादी के बाद के सबसे खराब दौर में गिना जा सकता है. इसकी वजह फसल उत्पादन की बढ़ती लागत और घटता कृषि उपज मूल्य है. इसके अलावा कही न कही घटते कृषि क्षेत्र की वजह भी खेती की अनुत्पादकता को माना जा सकता है, जिसके चलते आज किसान बेचारा भारी परेशानियों का सामना करने को मजबूर है.
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सिर्फ पेट भरने के लायक मिल पाता है अन्न
उत्तर प्रदेश में किसानों के आत्महत्या की खबरें इक्का-दुक्का हैं. इसकी बड़ी वजह गंगा-यमुना का उपजाऊ दोआब है. जो तमाम प्रतिकूल हालात के बावजूद किसानों को पेट भरने लायक अन्न का उत्पादन संभव बना देता है. प्रदेश में जिन किसानों के कर्ज में डूबे होने और आत्महत्या की खबर आई है. वह यमुना नदी से दूर विंध्य क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों में स्थित बुंदेलखंड की पथरीली जमीन से प्रभावित है. गंगा-यमुना के दोआब वाले किसान भी फसल की बढ़ती लागत से इस कदर बेहाल हैं कि वह खेती को घाटे का सौदा ही बताने लगे हैं.
घाटे का सौदा हो गई खेती
लखनऊ के रहने वाले किसान मायाराम बताते हैं कि पिछले तीन दशक रासायनिक खाद, महंगे कीटनाशक, घटते भूजल स्तर की वजह से महंगी होती सिंचाई ने किसानों को मुश्किल में डाल रखा है. धीरे-धीरे खेती में उत्पादन लागत इतनी बढ़ गई है कि किसान के लिए अब यह घाटे का सौदा हो गई है.
नहीं मिल रहा उपज का उचित मूल्य
बढ़ती उत्पादन लागत के अलावा किसानों की दूसरी समस्या कृषि उपज का उचित मूल्य ना मिलना है. किसानों के खेत से निकले उत्पाद की कीमत बिचौलिए बढ़ा रहे हैं. आम उपभोक्ता को कृषि उत्पाद की अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है. लेकिन इसका फायदा किसान तक नहीं पहुंचता है.
नाकाम साबित हो रही सरकारी मशीनरी
कृषि उपज का किसानों को उचित मूल्य दिलाने में सरकारी मशीनरी भी नाकाम है. सरकारों ने किसानों की फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान किया. गेहूं और धान क्रय केंद्र खोलकर किसानों को बाजार के शैतानी पंजे से बचाने की कोशिश की. लेकिन हकीकत में सरकार की ये योजना किसानों को फायदा दिलाने में नाकाम है. इसकी वजह किसान फसल क्रय केंद्र का समय से न खुलना और केंद्र पर मौजूद भ्रष्टाचार है. जो किसानों को केंद्र की बजाय बाजार के बनिए को औने पौने दाम पर फसल बेचने के लिए मजबूर कर रहा है. महंगी खाद, फसल भंडारण की कमी का खामियाजा किसानों को ही भुगतना पड़ रहा है.
सिर्फ 300 रुपये प्रति कुंतल की दर से बिक रहा आलू
लखनऊ की ग्राम पंचायत धावा के प्रधान भैरव सिंह यादव बताते हैं कि बाजार में 14 से 20 रुपये किलो बिकने वाला आलू इन दिनों किसान को 300 रुपये प्रति कुंतल की दर से बेचना पड़ रहा है.
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अब इन सब के बाद ऐसे में किसान की आर्थिक हालत कैसे सुधरेगी. कैसे किसान खुशहाल बनेगा. इसके अलावा इस तरह से कैसे खेती किसी के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकती है.