लखनऊ : उत्तर प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा विभाग का पूरा सरकारी अमला इस समय निजी प्रकाशकों की किताबें बिकवाने में लगा है. इन किताबों की कीमत 300 करोड़ से ज्यादा की बताई जा रही है. प्रदेश भर में यूपी बोर्ड के कक्षा 9 से 12 तक पढ़ने वाले करीब एक करोड़ बच्चों और उनके अभिभावकों पर किताबें खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है. इस समय माध्यमिक शिक्षा विभाग का पूरा सरकारी अमला इसपर जुटा हुआ है. यह किताबें तीन निजी प्रकाशकों की हैं. विभाग ने स्कूलों को सिर्फ इन्हीं किताबों से पढ़ाने के निर्देश दिए हैं. ऐसा ना करने वाले शिक्षकों और स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई तक की चेतावनी दी गई है. माध्यमिक शिक्षा विभाग ने यह आदेश शैक्षिक सत्र 2022-23 शुरू होने के 4 महीने बाद जारी किया है.
उधर, विभाग के आदेश के बाद अब अधिकारियों की मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं. अभिभावकों का कहना है कि शैक्षिक सत्र अप्रैल से शुरू हो चुका है. 9वीं, 10वीं और 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों ने किताबें पहले से खरीद ली हैं. यह किताबें भी पूर्व में विभाग द्वारा अधिकृत प्रकाशकों की ही हैं. सिलेबस में भी कोई बदलाव नहीं है. फिर तीन महीने बाद अभिभावकों की जेब पर अनावश्यक भार डालने का क्या औचित्य है? उन्होंने सवाल खड़ा किया है कि कहीं निजी प्रकाशकों को लाभ पहुंचाने के लिए तो यह सारा दबाव नहीं बनाया जा रहा है?
यूपी बोर्ड में पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की तरफ से एनसीईआरटी के पैटर्न को लागू किया गया. इन किताबों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रकाशकों को अधिकृत किया जाता है. उत्तर प्रदेश में हर साल करीब 50 लाख के आस-पास बच्चे 10वीं और 12वीं की परीक्षा में बैठते हैं. इतनी ही संख्या में 9वीं और 11वीं में औसतन बच्चे पढ़ते हैं. इस हिसाब से 9 से 12 तक की कक्षा में पढ़ने वाले यूपी बोर्ड के बच्चों की संख्या करीब एक करोड़ होती है.
यूपी बोर्ड की 10वीं, 12वीं की परीक्षाएं मार्च-अप्रैल में हुई थीं. इससे पहले अन्य कक्षाओं की वार्षिक परीक्षा करा ली गई थी. इनके सत्र की शुरुआत अप्रैल में हो गई थी. शिक्षकों का कहना है कि उस दौरान माध्यमिक शिक्षा विभाग की तरफ से प्रकाशकों की सूची में किसी तरह के परिवर्तन के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई. तब बच्चों ने माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा पूर्व में अधिकृत प्रकाशकों की किताबें खरीद लीं. करीब तीन महीने के बाद जुलाई में विभाग की तरफ से पहला पत्र जारी किया गया. जिसमें तीन प्रकाशकों को अधिकृत किए जाने और सिर्फ उन्हीं की किताबों को स्कूलों में पढ़ाई जाने की बात कही गई.
सचिव माध्यमिक शिक्षा दिव्य कांत शुक्ला की तरफ से 6 जुलाई को एक पत्र जारी किया गया. जिसमें तीन प्रकाशकों के नाम दिए गए. यह पत्र प्रदेश के सभी जिला विद्यालय निरीक्षकों को भेजा गया था. उनको आदेश दिए गए कि वह सभी स्कूलों में सभी बच्चों के पास केवल इन्हीं प्रकाशकों की किताबें सुनिश्चित करने की कार्रवाई करें. सचिव के इस पत्र को आधार बनाकर प्रदेश के सभी जिलों में जिला विद्यालय निरीक्षकों की तरफ से भी कार्रवाई शुरू कर दी गई है.
अभिभावकों की शिकायत
-गोमती नगर में रहने वाले सुरेश कुमार का कहना है कि अगर माध्यमिक शिक्षा विभाग को प्रकाशकों के नाम में परिवर्तन करना ही था तो सत्र शुरू होने के पहले कर देते. अभिभावक उनसे किताबें ले लेते. अब इस तरह के बदलाव से अभिभावकों को दिक्कत में डाला जा रहा है.
-आलमबाग के इरफान कुरैशी कहते हैं कि सिलेबस में किसी भी तरह का कोई परिवर्तन नहीं है. फिर भी इस साल से अनावश्यक दबाव क्यों बनाया जा रहा है.
-पुराना किला निवासी अमित सिंह ने बताया कि खुले बाजार में इन प्रकाशकों की किताबें मिल ही नहीं रही हैं. वह कई बार अमीनाबाद मार्केट के चक्कर लगा चुके हैं.
इनको किया गया है अधिकृत : माध्यमिक शिक्षा विभाग की तरफ से तीन प्रकाशकों को बाजार में किताबें उपलब्ध कराने के लिए अधिकृत किया गया है. इनमें पितांबरा बुक्स प्राइवेट लिमिटेड और डायनामिक टेक्स्ट बुक प्रिंटर्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल है. यह दोनों ही झांसी के निजी प्रकाशक हैं. खास बात यह है कि सरकारी आदेशों में इन दोनों का पता ही औद्योगिक क्षेत्र बिजौली झांसी दिखाया गया है. वहीं तीसरा प्रकाशक श्री कैला जी बुक्स प्राइवेट लिमिटेड आगरा का है.
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शिक्षा विभाग के अधिकारियों के इस तरह के फरमान पर सवाल उठना लाजमी है. माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश मंत्री और प्रवक्ता डॉ. आरपी मिश्रा कहते हैं कि विभाग को किताबों जैसे मामले पर संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है. सिर्फ दो-तीन प्रकाशकों को अधिकृत करने की वजह इसे खुले बाजार में दे दिया जाए तो एक ओर जहां बाजार में किताबों की संख्या कम नहीं पड़ेगी, वहीं दूसरी ओर किसी भी प्रकार की मोनोपोली नहीं रहेगी.
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