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शहरों में कम बने रहे हैं प्रधानमंत्री आवास?

उत्तर प्रदेश में शहरों के मुकाबले गांवों को प्रधानमंत्री आवास पांच गुना अधिक मिला है. इससे शहरों की अवासीय जरूरतें नहीं पूरी हो पा रही हैं. शहर के भीतर जमीन की भारी कमी के चलते फ्लैट बनाना मुश्किल है.

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प्रधानमंत्री आवास
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Published : Apr 18, 2022, 5:05 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में शहरों के मुकाबले गांवों को प्रधानमंत्री आवास पांच गुना अधिक मिला है. जहां गांवों को पांच साल में 40 लाख आवास मिले हैं वहीं, शहरों में मांग के विपरीत अब तक केवल पांच लाख आवास ही आवंटित किए गए हैं. इससे शहरों की अवासीय जरूरतें नहीं पूरी हो पा रही हैं.

प्रधानमंत्री आवास को लेकर शहरों में मांग जबरदस्त है. प्रदेश में करीब 25 लाख आवेदन सूडा के माध्यम से किये जा चुके हैं. मगर आवास केवल पांच लाख ही मिल पाए हैं, ऐसे में यह परेशानी बढ़ती ही जा रही है. लोगों को जमीन की कमी की वजह आवास नहीं मिल पा रहे हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरों के मुकाबले गांवों में जमीन की उपलब्धता अधिक है. इसलिए वहां आवास आवंटित करना आसान हो जाता है, जबकि शहर के भीतर जमीन की भारी कमी के चलते फ्लैट बनाना मुश्किल है. इस वजह से दिक्कतें अधिक हैं.

इसे भी पढ़ेंः प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों को जल्द मिलेगी भवनों की चाबी

राजधानी में भी भारी कमी

बात केवल लखनऊ की कि जाए तो यहां डेढ़ लाख के करीब आवेदनों के सापेक्ष 20 हजार आवास ही आवास विकास परिषद (Housing Development Council) और एलडीए मिल कर दे सके हैं. जबकि लखनऊ के गांवों में लगभग 80 हजार आवास आवंटित किए गए हैं. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर में जहां अधिक आवासीय आवश्यकता है, वहां सरकार आवास देने सक्षम नहीं हो रही है.

शहरों में जमीन की भारी कमी

उत्तर प्रदेश के शहरों में जमीन की भारी कमी है. इस वजह से प्रधानमंत्री आवास के निर्माण में अड़चनें आ रही हैं. सरकार निर्माण का खर्चा उठाने के लिए तो तैयार है. मगर जमीन पर आ रहे भारी खर्च को उठाना संभव नहीं है, इसलिए अधिकांश शहरों में प्रधानमंत्री आवास योजना उस तरह से परवान नहीं चढ़ पा रही जैसे जरूरत है.

आवास विकास परिषद के आयुक्त (Commissioner of Housing Development Council) अजय कुमार चौहान का कहना है कि हम लखनऊ में 10 हजार आवासों का निर्माण कर चुके हैं, जबकि पूरे प्रदेश में करीब 50 हजार आवास बना रहे हैं. मगर जमीन की कमी शहरों में अधिक है. इस वजह से हमको आवास बनाने में दिक्कतें हो रही हैं.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में शहरों के मुकाबले गांवों को प्रधानमंत्री आवास पांच गुना अधिक मिला है. जहां गांवों को पांच साल में 40 लाख आवास मिले हैं वहीं, शहरों में मांग के विपरीत अब तक केवल पांच लाख आवास ही आवंटित किए गए हैं. इससे शहरों की अवासीय जरूरतें नहीं पूरी हो पा रही हैं.

प्रधानमंत्री आवास को लेकर शहरों में मांग जबरदस्त है. प्रदेश में करीब 25 लाख आवेदन सूडा के माध्यम से किये जा चुके हैं. मगर आवास केवल पांच लाख ही मिल पाए हैं, ऐसे में यह परेशानी बढ़ती ही जा रही है. लोगों को जमीन की कमी की वजह आवास नहीं मिल पा रहे हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरों के मुकाबले गांवों में जमीन की उपलब्धता अधिक है. इसलिए वहां आवास आवंटित करना आसान हो जाता है, जबकि शहर के भीतर जमीन की भारी कमी के चलते फ्लैट बनाना मुश्किल है. इस वजह से दिक्कतें अधिक हैं.

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राजधानी में भी भारी कमी

बात केवल लखनऊ की कि जाए तो यहां डेढ़ लाख के करीब आवेदनों के सापेक्ष 20 हजार आवास ही आवास विकास परिषद (Housing Development Council) और एलडीए मिल कर दे सके हैं. जबकि लखनऊ के गांवों में लगभग 80 हजार आवास आवंटित किए गए हैं. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर में जहां अधिक आवासीय आवश्यकता है, वहां सरकार आवास देने सक्षम नहीं हो रही है.

शहरों में जमीन की भारी कमी

उत्तर प्रदेश के शहरों में जमीन की भारी कमी है. इस वजह से प्रधानमंत्री आवास के निर्माण में अड़चनें आ रही हैं. सरकार निर्माण का खर्चा उठाने के लिए तो तैयार है. मगर जमीन पर आ रहे भारी खर्च को उठाना संभव नहीं है, इसलिए अधिकांश शहरों में प्रधानमंत्री आवास योजना उस तरह से परवान नहीं चढ़ पा रही जैसे जरूरत है.

आवास विकास परिषद के आयुक्त (Commissioner of Housing Development Council) अजय कुमार चौहान का कहना है कि हम लखनऊ में 10 हजार आवासों का निर्माण कर चुके हैं, जबकि पूरे प्रदेश में करीब 50 हजार आवास बना रहे हैं. मगर जमीन की कमी शहरों में अधिक है. इस वजह से हमको आवास बनाने में दिक्कतें हो रही हैं.

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