लखनऊ : छात्र जीवन के दौरान 32 वर्ष पहले दर्ज हुए दो अलग-अलग मामलों में एमपी-एमएलए कोर्ट के विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अम्बरीष कुमार श्रीवास्तव ने भाजपा के पूर्व विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह को साक्ष्य के आभाव में दोषमुक्त कर दिया है. धीरेन्द्र बहादुर सिंह के अधिवक्ता प्रांशु अग्रवाल की दलील थी कि दोनों ही आपराधिक मामलों में गवाहों ने अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया है. गवाहों ने पूर्व विधायक को पहचानने तक से इंकार कर दिया.
पूर्व विधायक के खिलाफ पहला मुकदमा वादी मुन्ना ने हसनगंज थाने में दर्ज कराया था. जिसमें कहा गया था कि 24 दिसम्बर 1989 को दिन में विश्वविद्यालय के 15-20 छात्र धीरेंद्र बहादुर के साथ वादी की दुकान पर आए और महफूज के विषय मे पूछा, वादी के इनकार करने पर अभियुक्तों ने गाली गलौज, धमकी देते हुए उसकी दुकान में तोड़फोड़ की व भाग गए. इस मामले में गवाहों ने कोर्ट में पूर्व विधायक को पहचानने से इंकार कर किया. वहीं दूसरे मामले में वादी सलीम खान ने भी हसनगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि 19 अप्रैल 1990 की रात 11 बजे आईटी कॉलेज के पास लखनऊ विश्वविद्यालय के तीन लड़के किसी को मार रहे थे, इस पर वादी और पुलिसवालों ने विरोध किया तो छात्र गाली गलौज करते हुए भाग गए.
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कहा गया कि उसके थोड़ी देर बाद धीरेंद्र बहादुर सिंह के साथ 25-30 लड़के हथियारों से लैस होकर आए और वादी तथा उसके नौकर को गालियां देने लगे, जब पुलिसवालों ने रोका तो अभियुक्तों ने एक सिपाही पर डंडे से हमला कर दिया और कट्टे से फायर करने की कोशिश की, जिस पर सिपाही ने दो गोलियां हवा में चलाई तो अभियुक्त भाग गए.
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