लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान लखनऊ के एक सिविल जज द्वारा उनके समक्ष आए एक सिविल वाद को गम्भीरता से न लेने पर सख्त रुख अपनाया है. न्यायालय ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन), साउथ, लखनऊ पियुष भारती को नोटिस जारी करने का आदेश देते हुए पूछा है कि उनके खिलाफ ऑर्डर शीट्स पर हस्ताक्षर न करने की लापरवाही के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न शुरु की जाए.
यह आदेश न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा की एकल पीठ ने दया अग्रवाल की याचिका पर पारित किया. याची का कहना है कि उसने अमीनाबाद की एक मकान के लिए सिविल जज की कोर्ट में स्थायी निषेधाज्ञा का वाद दाखिल कर रखा है, जिसमें उक्त सम्पत्ति में उसके शांतिपूर्ण कब्जे में दखल से प्रतिवादी को रोकने की मांग की गई है. साथ ही उक्त मकान को गिराने से रोकने की भी मांग की गई है.
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उक्त वाद के साथ अस्थाई निषेधाज्ञा का प्रार्थना पत्र भी दाखिल किया गया है. मामले में नोटिस पर प्रतिवादी उपस्थित हो चुका है और कमीशन ने रिपोर्ट भी दी है कि प्रश्नगत सम्पत्ति को तोड़ा जा रहा है. जब निचली अदालत ने कोई अंतरिम आदेश नहीं पारित किया तो याची ने सीपीसी की धारा 151 के तहत एक और प्रार्थना पत्र दाखिल किया, बावजूद इसके कोई आदेश नहीं पारित किया गया.
न्यायालय ने पाया कि मामले में कई तारीखें पड़ चुकी हैं लेकिन अस्थाई निषेधाज्ञा पर कोई आदेश नहीं पारित किया गया और यहां तक कि सिविल जज ने ऑर्डर शीट्स पर हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं. न्यायालय मामले की सभी परिस्थितियों को देखते हुए, प्रश्नगत सम्पत्ति पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए. मामले की अगली सुनवाई 28 मार्च को होगी.
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