लखनऊ : सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव (SP Founder Mulayam Singh Yadav) के निधन के बाद पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (SP President Akhilesh Yadav) के लिए चुनौतियां और बढ़ने वाली हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजय के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं में नाराजगी देखी जा रही है. यह बात और है कि वह अपनी नाराजगी अखिलेश यादव के सामने जाहिर नहीं कर पा रहे हैं. अखिलेश यादव पर आरोप लगते हैं कि वह दोनों चुनावों में अपनी मर्जी के निर्णय करते रहे, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से कोई मशविरा नहीं किया, हार के बड़े कारणों में एक परिवार का झगड़ा खत्म नहीं कर पाए, युवा ब्रिगेड के कुछ नेताओं के समूह से घिरे रहे और पार्टी के अनुभवी और वफादार नेताओं की उपेक्षा हुई. पार्टी में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जो यह मानते हैं कि हार असल में अखिलेश यादव की रणनीतिक नाकामी की वजह से हुई है.
दरअसल पार्टी में तमाम ऐसे नेता हैं, जो मुलायम सिंह यादव के बहुत नजदीकी और वफादार रहे हैं. ऐसे नेता अपना अपमान या यूं कहें कि उचित सम्मान न मिलने के बावजूद पार्टी इसलिए नहीं छोड़ पा रहे थे, क्योंकि उनकी निष्ठा मुलायम से जुड़ी हुई थी. मुलायम के न रहने पर यह डोर अब टूट गई है. कई पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह यादव के जीवित रहते अखिलेश या पार्टी की मुखालफत करने का साहस नहीं जुटा पाते थे, क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने इन पर कई उपकार किए थे. हालांकि आने वाले दिनों में बात और होगी. पार्टी के कई वरिष्ठ नेता खुलकर सामने तो कुछ नहीं कहते, लेकिन दबी जुबान से अपनी नाराजगी जरूर जाहिर करते हैं. सपा सरकार में एक महत्वपूर्ण विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता अखिलेश यादव के कई निर्णयों से नाइत्तेफाकी रखते हैं. वह कहते हैं कि यदि 2022 के विधानसभा चुनाव में सही से टिकट वितरण ही कर लिया जाता तो पार्टी 20 से 25 सीटें और जीत सकती थी. देर से टिकट वितरण, टिकट के लिए सही उम्मीदवार चुनाव न करना, दूसरे दलों से आए उम्मीदवारों को ज्यादा महत्व देना जैसे अनेक विषय हैं, जिन्होंने समाजवादी पार्टी को सत्ता से दूर कर दिया.
विधायक और जिला पंचायत अध्यक्ष जैसे पदों पर रह चुके पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पार्टी बहुत बड़ी चीज होती है. आखिर मुलायम सिंह यादव कैसे पूरे कुनबे को बिना किसी उठापटक के पार्टी में समायोजित कर लेते थे. यही कला अखिलेश यादव नहीं सीख सके और पार्टी पतन के गर्त में जा रही है. वह कहते हैं कि आखिर परिवार में लड़ाई ही क्या है? शिवपाल यादव को सम्मान देने से अखिलेश का क्या घट जाता है? यदि अपने बड़ों को आदर नहीं दे सकते, परिवार में एका नहीं कर सकते, तो इसका संदेश कभी अच्छा नहीं जाता. वह कहते हैं कि पता नहीं अखिलेश यादव यह कब समझेंगे. पार्टी के बड़े नेताओं को भी अखिलेश यादव से मिलने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है. ऐसा नेता जी मुलायम सिंह यादव के समय में कभी भी नहीं हुआ.
यही कारण है कि पार्टी की निरंतर असफलता और नेता अखिलेश यादव के नेतृत्व पर अविश्वास समाजवादी पार्टी के कई बड़े नेताओं को 2024 में होने वाले लोक सभा चुनावों से पहले अपनी अलग राह चुनने के लिए मजबूर कर सकती है. वहीं समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीत कर आए अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने भी अपना मन पक्का कर लिया है कि अब वह कभी सपा के साथ में नहीं जाएंगे. वह अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को ही मजबूत करेंगे. यही नहीं अखिलेश यादव से मिले अपमान के घावों का बदला लेने के लिए वह भाजपा से गठबंधन भी कर सकते हैं. यदि ऐसा हुआ तो सपा के लिए लोकसभा चुनाव 2024 में चुनौती का पहाड़ लिए सामने खड़े होंगे.
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