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नए प्रदेश अध्यक्ष और रिक्त विधान परिषद की सीटों पर निर्णय नहीं ले पा रही भाजपा

उत्तर प्रदेश भाजपा को नया अध्यक्ष नहीं मिल पा रहा है. पांच माह से भी ज्यादा का समय बीत चुका है. यह स्थिति पार्टी के लिए किरकिरी कराने वाली है. यही नहीं पार्टी की आठ विधान परिषद की सीटें भी रिक्त हैं. इसे लेकर भी पार्टी नेतृत्व कोई फैसला नहीं ले सका है.

भारतीय जनता पार्टी
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Published : Aug 22, 2022, 8:10 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश भाजपा को नया अध्यक्ष नहीं मिल पा रहा है. इस अनिर्णय को एक-दो नहीं, बल्कि पांच माह से भी ज्यादा का समय बीत चुका है. यह स्थिति पार्टी के लिए किरकिरी कराने वाली है. इस अनिर्णय को आपसी खींचतान माना जा रहा है और विश्लेषक मान रहे हैं कि पार्टी और सरकार में सबकुछ ठीक नहीं है. यही नहीं पार्टी की आठ विधान परिषद की सीटें भी रिक्त हैं. इसे लेकर भी पार्टी नेतृत्व कोई फैसला नहीं ले सका है. स्वाभाविक है कि इस देर का कारण कुछ भी हो पार्टी के लिए संदेश अच्छा नहीं जा रहा है.


भारतीय जनता पार्टी में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत रहा है. विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया. वैसे भी वह अध्यक्ष के रूप में अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. ऐसे में उनके शपथ ग्रहण के बाद से ही उम्मीद की जा रही थी कि जल्द ही पार्टी को नया अध्यक्ष मिल सकता है. पांच माह के इस इंतजार में कयासों और अटकलों के दौर खूब चले, लेकिन पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक सूचना नहीं आई. हाल ही में प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल को प्रोन्नत कर राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया. यही नहीं उन्हें तेलंगाना, ओडिशा और पश्चिम बंगाल का प्रदेश प्रभारी भी बनाया गया है. स्वाभाविक है कि उत्तर प्रदेश में सफलता के झंडे गाड़ने वाले सुनील बंसल का भाजपा में दबदबा बना रहेगा. उनके स्थान पर झारखंड में संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे धर्मपाल को प्रदेश का नया संगठन मंत्री बनाया गया है. इस नियुक्ति के बाद लोगों को लगा कि जल्द ही नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है, लेकिन धीरे-धीरे एक पखवारा बीतने को है. भाजपा निर्णय नहीं ले पाई है.

राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे




इस अनिर्णय के लिए कहीं न कहीं सरकार और संगठन में मतभेदों को जिम्मेदार माना जा रहा है. शीर्ष नेतृत्व भी चाहता है कि मतभेद दूर हों, ताकि 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी बड़ी जीत दर्ज कर सके. हालांकि मतभेद सुलझना इतना आसान भी नहीं है. रविवार को प्रदेश के नए संगठन मंत्री धर्मपाल गाजियाबाद में कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक कर रहे थे. इस बैठक में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का बयान और इसके बाद किया गया ट्वीट कि 'संगठन सरकार से बड़ा है' खूब चर्चा में रहा. यह ट्वीट कहीं न कहीं सरकार और संगठन में मतभेदों को जाहिर करने वाला माना जा रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मानते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष ऐसा आए जो न्यूट्रल हो और संगठन का काम अच्छी तरह जानता हो. उन्होंने शीर्ष नेतृत्व को अपनी इस मंशा से अवगत भी करा दिया है. दूसरी ओर केशव मौर्या और कुछ अन्य नेता चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष उनकी पसंद का हो और वह केंद्रीय नेतृत्व को इसके लिए राजी करने में भी काफी हद तक कामयाब है. ऐसे में नेतृत्व के सामने यह संकट खड़ा हो गया है कि आखिर वह करे तो क्या?


यही ऊहापोह विधान परिषद की रिक्त सीटों को लेकर भी है. 28 अप्रैल से 26 मई के बीच विधान परिषद की आठ सीटें रिक्त हुई हैं. इस सीटों पर सरकार की संस्तुति पर राज्यपाल द्वारा मनोनयन किया जाना है. हालांकि इसे लेकर भी पार्टी में अनिर्णय की स्थिति है. माना जा रहा था कि सुनील बंसल के जाने के बाद इन सीटों पर मनोनयन का काम पूरा हो जाएगा, लेकिन अब तक यह होता दिखाई नहीं दे रहा है. दरअसल इन नियुक्तियों में भी सरकार और संगठन की खींचतान बताई जा रही है. यही कारण है कि दोनों में इसे लेकर तालमेल नहीं बन पाया है.


यह भी पढ़ें : केशव मौर्य ने सही कहा, संगठन सरकार से बड़ा है : स्वतंत्र देव सिंह

इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे कहते हैं कि फिलहाल जो परिस्थितियां हैं, उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. 2024 में लोकसभा चुनाव है. जो राजनीतिक दल हमेशा चुनाव मोड में रहता है, वह अपना प्रदेश अध्यक्ष नहीं चुन पा रहा है. विधान परिषद की खाली सीटों पर निर्णय नहीं हो पा रहा है. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को ट्वीट कर यह संदेश देना पड़ रहा है कि सरकार से बड़ा संगठन. सवाल उठता है कि क्या वह संगठन में जाना चाह रहे हैं.

यह भी पढ़ें : यूपी ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष की अश्लील तस्वीरें वायरल

लखनऊ : उत्तर प्रदेश भाजपा को नया अध्यक्ष नहीं मिल पा रहा है. इस अनिर्णय को एक-दो नहीं, बल्कि पांच माह से भी ज्यादा का समय बीत चुका है. यह स्थिति पार्टी के लिए किरकिरी कराने वाली है. इस अनिर्णय को आपसी खींचतान माना जा रहा है और विश्लेषक मान रहे हैं कि पार्टी और सरकार में सबकुछ ठीक नहीं है. यही नहीं पार्टी की आठ विधान परिषद की सीटें भी रिक्त हैं. इसे लेकर भी पार्टी नेतृत्व कोई फैसला नहीं ले सका है. स्वाभाविक है कि इस देर का कारण कुछ भी हो पार्टी के लिए संदेश अच्छा नहीं जा रहा है.


भारतीय जनता पार्टी में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत रहा है. विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया. वैसे भी वह अध्यक्ष के रूप में अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. ऐसे में उनके शपथ ग्रहण के बाद से ही उम्मीद की जा रही थी कि जल्द ही पार्टी को नया अध्यक्ष मिल सकता है. पांच माह के इस इंतजार में कयासों और अटकलों के दौर खूब चले, लेकिन पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक सूचना नहीं आई. हाल ही में प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल को प्रोन्नत कर राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया. यही नहीं उन्हें तेलंगाना, ओडिशा और पश्चिम बंगाल का प्रदेश प्रभारी भी बनाया गया है. स्वाभाविक है कि उत्तर प्रदेश में सफलता के झंडे गाड़ने वाले सुनील बंसल का भाजपा में दबदबा बना रहेगा. उनके स्थान पर झारखंड में संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे धर्मपाल को प्रदेश का नया संगठन मंत्री बनाया गया है. इस नियुक्ति के बाद लोगों को लगा कि जल्द ही नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है, लेकिन धीरे-धीरे एक पखवारा बीतने को है. भाजपा निर्णय नहीं ले पाई है.

राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे




इस अनिर्णय के लिए कहीं न कहीं सरकार और संगठन में मतभेदों को जिम्मेदार माना जा रहा है. शीर्ष नेतृत्व भी चाहता है कि मतभेद दूर हों, ताकि 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी बड़ी जीत दर्ज कर सके. हालांकि मतभेद सुलझना इतना आसान भी नहीं है. रविवार को प्रदेश के नए संगठन मंत्री धर्मपाल गाजियाबाद में कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक कर रहे थे. इस बैठक में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का बयान और इसके बाद किया गया ट्वीट कि 'संगठन सरकार से बड़ा है' खूब चर्चा में रहा. यह ट्वीट कहीं न कहीं सरकार और संगठन में मतभेदों को जाहिर करने वाला माना जा रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मानते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष ऐसा आए जो न्यूट्रल हो और संगठन का काम अच्छी तरह जानता हो. उन्होंने शीर्ष नेतृत्व को अपनी इस मंशा से अवगत भी करा दिया है. दूसरी ओर केशव मौर्या और कुछ अन्य नेता चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष उनकी पसंद का हो और वह केंद्रीय नेतृत्व को इसके लिए राजी करने में भी काफी हद तक कामयाब है. ऐसे में नेतृत्व के सामने यह संकट खड़ा हो गया है कि आखिर वह करे तो क्या?


यही ऊहापोह विधान परिषद की रिक्त सीटों को लेकर भी है. 28 अप्रैल से 26 मई के बीच विधान परिषद की आठ सीटें रिक्त हुई हैं. इस सीटों पर सरकार की संस्तुति पर राज्यपाल द्वारा मनोनयन किया जाना है. हालांकि इसे लेकर भी पार्टी में अनिर्णय की स्थिति है. माना जा रहा था कि सुनील बंसल के जाने के बाद इन सीटों पर मनोनयन का काम पूरा हो जाएगा, लेकिन अब तक यह होता दिखाई नहीं दे रहा है. दरअसल इन नियुक्तियों में भी सरकार और संगठन की खींचतान बताई जा रही है. यही कारण है कि दोनों में इसे लेकर तालमेल नहीं बन पाया है.


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इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे कहते हैं कि फिलहाल जो परिस्थितियां हैं, उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. 2024 में लोकसभा चुनाव है. जो राजनीतिक दल हमेशा चुनाव मोड में रहता है, वह अपना प्रदेश अध्यक्ष नहीं चुन पा रहा है. विधान परिषद की खाली सीटों पर निर्णय नहीं हो पा रहा है. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को ट्वीट कर यह संदेश देना पड़ रहा है कि सरकार से बड़ा संगठन. सवाल उठता है कि क्या वह संगठन में जाना चाह रहे हैं.

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