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अखिलेश को कहीं भारी न पड़ जाए आजमगढ़ उपचुनाव! प्रतिष्ठा दांव पर

उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ और रामपुर संसदीय सीट पर उप चुनाव हो रहे हैं. आजमगढ़ सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव और रामपुर सीट पर सपा के सीनियर लीडर आजम खान (SP senior leader Azam Khan) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.

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सपा मुखिया अखिलेश यादव
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Published : Jun 14, 2022, 10:42 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ और रामपुर संसदीय सीट पर उप चुनाव हो रहे हैं. आजमगढ़ सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव और रामपुर सीट पर सपा के सीनियर लीडर आजम खान (SP senior leader Azam Khan) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. सपा जिस मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण के भरोसे चुनावी संघर्ष में आत्मविश्वास में रहती है. उसे अब आजमगढ़ में कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है. यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) यादव वोटों को अपनी ओर करने में लगी है तो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मुस्लिमों को अपनी तरफ रिझाने में जुटी है.

भाजपा और बसपा की इस रणनीति से आजमगढ़ में सपा मुखिया अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर है. उनके लिए यहां दो चुनौतियां हैं. पहली चुनौती है, अपनी मौजूदा सीट को बचाना. मुस्लिम यादव वोट बैंक को सेंधमारी से रोकते हुए अपनी मौजूदा सीट को बचाए रखना, जबकि दूसरी चुनौती यह साबित करना है कि धर्मेंद्र यादव को बदायूं से आजमगढ़ लाकर लड़ाने का निर्णय सही था.

आजमगढ़ सपा का मजबूत गढ़ रहा है. लंबे समय से सपा इस सीट पर जीतती रही है. बीते विधानसभा चुनाव में सपा ने यहां की सभी 10 सीटें भाजपा लहर में भी जीती थीं. यहां एमवाई समीकरण भी सपा के पक्ष में रहता है, पर इस बार यहां चुनौती अलग तरह की है. सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को यहां चुनौती देने के लिए एक बार फिर भाजपा से दिनेश लाल निरहुआ मैदान में हैं.

इसे भी पढ़ेंः यूपी में बुलडोजर कार्रवाई पर उठे सवालः न कोई अपील न कोई दलील, फैसला ऑन द स्पॉट

पिछली बार के लोकसभा चुनाव में निरहुआ ने अखिलेश यादव (SP chief Akhilesh Yadav) को कड़ी टक्कर दी थी. अब यहां एकमुश्त यादव वोट के लिए धर्मेंद्र यादव और निरहुआ दोनों जूझ रहे हैं. तो मुस्लिम मतदाताओं में पैठ बनाने के लिए आजमगढ़ के प्रभावशाली नेता और बसपा के प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भी खासी मेहनत कर रहे हैं. महाराष्ट्र में सपा के सीनियर नेता अबू आजमी यहां प्रचार कर रहे हैं. अबु आजमी आजमगढ़ में नूपुर शर्मा के गिरफ्तारी की मांग कर चुनावी माहौल गर्मा रहे हैं. अगर इस मुद्दे पर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो फायदा भाजपा और सपा को होगा.

यही नहीं, आजमगढ़ में शिवपाल सिंह यादव का भी काफी प्रभाव है. वर्ष 2014 में उन्होंने आजमगढ़ में कैंप कर मुलायम सिंह यादव की जीत को सुनिश्चित की थी. प्रसपा मुखिया शिवपाल सिंह की अपील आजमगढ़ में महत्व रखती है. वह अपने लोगों को किधर वोट डालने का संकेत करेंगे. इसको लेकर समूचे आजमगढ़ में तरह तरह की चर्चाएं हो रही हैं. कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव से शिवपाल की अनबन को देखते हुए धर्मेंद्र यादव अपनी तरफ से शिवपाल को मनाने में लगे हैं.

धर्मेंद्र को पता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में शिवपाल यादव की नाराजगी के चलते ही फिरोजाबाद में रामगोपाल यादव के पुत्र चुनाव हार गए थे. इसलिए वह शिवपाल को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहे हैं. ताकि यादव वोट बैंक में सेंध न लगने पाए. 23 जून को यहां होने वाले मतदान के पहले सपा मुखिया अखिलेश यादव प्रचार करने पहुंचेगे. वह यहां दो तीन दिन कैंप भी करेंगे. अब देखना यह है कि आजमगढ़ सीट को वह सपा की झोली में डाल कर अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ा पाते हैं या नहीं.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ और रामपुर संसदीय सीट पर उप चुनाव हो रहे हैं. आजमगढ़ सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव और रामपुर सीट पर सपा के सीनियर लीडर आजम खान (SP senior leader Azam Khan) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. सपा जिस मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण के भरोसे चुनावी संघर्ष में आत्मविश्वास में रहती है. उसे अब आजमगढ़ में कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है. यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) यादव वोटों को अपनी ओर करने में लगी है तो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मुस्लिमों को अपनी तरफ रिझाने में जुटी है.

भाजपा और बसपा की इस रणनीति से आजमगढ़ में सपा मुखिया अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर है. उनके लिए यहां दो चुनौतियां हैं. पहली चुनौती है, अपनी मौजूदा सीट को बचाना. मुस्लिम यादव वोट बैंक को सेंधमारी से रोकते हुए अपनी मौजूदा सीट को बचाए रखना, जबकि दूसरी चुनौती यह साबित करना है कि धर्मेंद्र यादव को बदायूं से आजमगढ़ लाकर लड़ाने का निर्णय सही था.

आजमगढ़ सपा का मजबूत गढ़ रहा है. लंबे समय से सपा इस सीट पर जीतती रही है. बीते विधानसभा चुनाव में सपा ने यहां की सभी 10 सीटें भाजपा लहर में भी जीती थीं. यहां एमवाई समीकरण भी सपा के पक्ष में रहता है, पर इस बार यहां चुनौती अलग तरह की है. सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को यहां चुनौती देने के लिए एक बार फिर भाजपा से दिनेश लाल निरहुआ मैदान में हैं.

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पिछली बार के लोकसभा चुनाव में निरहुआ ने अखिलेश यादव (SP chief Akhilesh Yadav) को कड़ी टक्कर दी थी. अब यहां एकमुश्त यादव वोट के लिए धर्मेंद्र यादव और निरहुआ दोनों जूझ रहे हैं. तो मुस्लिम मतदाताओं में पैठ बनाने के लिए आजमगढ़ के प्रभावशाली नेता और बसपा के प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भी खासी मेहनत कर रहे हैं. महाराष्ट्र में सपा के सीनियर नेता अबू आजमी यहां प्रचार कर रहे हैं. अबु आजमी आजमगढ़ में नूपुर शर्मा के गिरफ्तारी की मांग कर चुनावी माहौल गर्मा रहे हैं. अगर इस मुद्दे पर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो फायदा भाजपा और सपा को होगा.

यही नहीं, आजमगढ़ में शिवपाल सिंह यादव का भी काफी प्रभाव है. वर्ष 2014 में उन्होंने आजमगढ़ में कैंप कर मुलायम सिंह यादव की जीत को सुनिश्चित की थी. प्रसपा मुखिया शिवपाल सिंह की अपील आजमगढ़ में महत्व रखती है. वह अपने लोगों को किधर वोट डालने का संकेत करेंगे. इसको लेकर समूचे आजमगढ़ में तरह तरह की चर्चाएं हो रही हैं. कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव से शिवपाल की अनबन को देखते हुए धर्मेंद्र यादव अपनी तरफ से शिवपाल को मनाने में लगे हैं.

धर्मेंद्र को पता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में शिवपाल यादव की नाराजगी के चलते ही फिरोजाबाद में रामगोपाल यादव के पुत्र चुनाव हार गए थे. इसलिए वह शिवपाल को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहे हैं. ताकि यादव वोट बैंक में सेंध न लगने पाए. 23 जून को यहां होने वाले मतदान के पहले सपा मुखिया अखिलेश यादव प्रचार करने पहुंचेगे. वह यहां दो तीन दिन कैंप भी करेंगे. अब देखना यह है कि आजमगढ़ सीट को वह सपा की झोली में डाल कर अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ा पाते हैं या नहीं.

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