हैदराबाद: भारत इस साल के एक सालाना वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक में 10 स्थान फिसलकर 68वें स्थान पर आ गया. भारत इस साल ब्रिक्स देशों में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक है.
ब्रिक्स देशों में ब्राजील (71वें) और भारत सबसे निचले पायदान पर थे. भारत अपने पड़ोसी देश जैसे श्रीलंका (84वें), बांग्लादेश (105वें), नेपाल (108वें) और पाकिस्तान (110वें) से बेहतर प्रदर्शन करके अपना चेहरा बचा सकता है. वहीं, चीन ने पिछले साल की तरह ही 28वीं रैंक हासिल की.
जीसीआई बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल, उच्च शिक्षा एवं प्रशिक्षण, वस्तु बाजार क्षमता, श्रम बाजार कुशलता, आर्थिक बाजार विकास, और तकनीकी तत्परता जैसे 12 श्रेणियों के आधार पर तैयार किया जाता है. तीन साल पहले, भारत 39वें स्थान पर था, लेकिन कौशल आधार की कमी, खराब स्वास्थ्य की स्थिति और कम स्वस्थ जीवन के कारण 68वें स्थान पर फिसल गया.
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वहीं, सिंगापुर जो पिछले साल अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर था. वह इस साल अमेरिका को हटाकर शीर्ष स्थान पर कब्जा कर लिया. अमेरिका के बाद हांगकांग, नीदरलैंड और स्विट्जरलैंड रहे. यद्यपि भारत कॉर्पोरेट और शेयरधारक गर्वनेंस और नवीकरणीय ऊर्जा विनियमन में उच्च स्थान पर रहा, लेकिन अन्य कारकों के कारण पिछले तीन सालों में 30 रैंक फिसल गया.
पिछले साल अमेरीका जीसीआई में श्रम सुधारों, तरलता और वाणिज्य क्षेत्रों में बेहतरीन काम करने की वजह से पहले स्थान पर रहा था. देशों में बुनियादी सुविधाओं के मामले में अमेरिका 9वें स्थान पर रहा. सिंगापुर जो बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में सफलता हासिल की. जिसके बदौलत उसने इस वर्ष जीसीआई में शीर्ष स्थान हासिल किया. यूपीए सरकार पांच साल पहले बाजार के खुलेपन में इंडियस के 71 वें स्थान के लिए जिम्मेदार थी. कई परियोजनाएँ आर्थिक सुधारों के भाग्य को प्रभावित करने वाली रहीं.
यूपीए सरकार पांच साल पहले बाजार के खुलेपन में भारत के 71वें स्थान के लिए जिम्मेदार थी. जिसके बाद कई परियोजनाएं आर्थिक सुधारों के भाग्य को प्रभावित करने वाली रहीं थी.
एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाया गया और जीडीपी में सुधार हुआ. जिससे विदेशी निवेश को बढ़ावा मिला. जीसीआई में 3 साल पहले रैंकिंग संस्थागत सुधारों का परिणाम थी. फिर इस साल निराशाजनक प्रदर्शन का कारण क्या हो सकता है? डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत ई-कॉमर्स के मामले में जापान, फ्रांस, कोरिया और ऑस्ट्रेलिया से आगे है.
बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने की दिशा में निर्धारित दृष्टिकोण भारत को आगे बढ़ने से रोक रहा है. जबकि नीदरलैंड, सिंगापुर और हांगकांग जैसे देश आत्म-विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं. वहीं, भारत अपनी नीतियों के साथ पिछड़ रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अक्टूबर 2018 में अनुमान लगाया कि भारत 7.3 से 7.4 की विकास दर हासिल कर सकता है. ठीक एक साल बाद, उसी आईएमएफ ने एक अलग अनुमान दिया. आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने खुलासा किया है कि मंदी से जूझ रहे भारत सहित 90 देशों को जीडीपी में झटका लग रहा है.
ऑटो, आतिथ्य, विनिर्माण और संचार उद्योग पहले से ही आर्थिक मंदी का खामियाजा भुगत रहे हैं. रघुराम राजन जैसे विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि वित्तीय क्षेत्र में दीर्घकालिक सुधारों के साथ-साथ निजी निवेश को प्रोत्साहित करने पर ही अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सकती है. हाल के आर्थिक सर्वेक्षण में पता चला है कि अगले दशक में हर साल रोजगार योग्य लोगों की संख्या में 97 लाख की वृद्धि होगी.
इस स्थिति का सामना करने के लिए सरकारों को श्रम कानूनों में आवश्यक संशोधन करना चाहिए. आजादी के 7 दशकों के बाद भी हमारी शिक्षा प्रणाली घटिया कौशल के हमारे देश को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पीछे छोड़ रही है. सरकारों को तुरंत इन मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए.
चूंकि पिछले साल फोर्ब्स के सर्वेक्षण में आग्रह किया गया था कि परिवहन, बिजली और विनिर्माण क्षेत्र की चुनौतियों से युद्धस्तर पर निपटा जाना चाहिए. शिक्षा, कौशल और मानव संसाधनों को बेहतर बनाने के लिए प्रभावी दिशानिर्देशों का गठन वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक में उच्च रैंकिंग के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा.