नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस के मामलों की संख्या 500 पार कर गयी है और लगभग दस लोगों की मौत भी हो चुकी है. यह आंकड़े हर दिन बढ़ते ही जा रहे हैं.
हम फिलहाल अपने जीवन और अर्थव्यवस्था पर इसके पूर्ण प्रभाव को समझने में सक्षम नहीं हैं लेकिन हम निश्चित रूप से जानते हैं कि यह बहुत भयावह तरीके से हमारी अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल लाएगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 19 मार्च के संबोधन से पहले तक पूरे देश को यह भी पता नहीं था कि कोविड-19 महामारी एक वास्तविक चुनौती है जो प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करती सकती है.
इस महीने 22 मार्च को सफल जनता कर्फ्यू के एक दिन बाद मोदी को राज्य सरकारों को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहना पड़ा कि लॉकडाउन के नियमों का ठीक से पालन किया जाए.
राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन
आने वाले दिन भारत को आजादी के बाद से अपनी सबसे खराब लड़ाइयों में से देखने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है. बीमारी के फैलने के चक्र को रोकने के लिए पूर्ण लॉकडाउन लागू करने के लिए केंद्र, राज्यों और स्थानीय अधिकारियों को मजबूर होना पड़ा.
अर्थव्यवस्था और बीमारी के प्रसार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. जब कोई घर से नहीं निकलता है कोई व्यावसायिक कार्य नहीं करता है और सब कुछ एक ठहराव पर होता है तो बीमारी के एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने की संभावना काफी कम होती है.
लेकिन यह अर्थव्यवस्था पर कड़ा प्रहार करने के लिए बाध्य है. स्वास्थ्य उपायों की कठोरता जितनी कम होगी उतनी ही कम आर्थिक परिणाम होंगे. फिर भी आर्थिक लाभ की तुलना में मानव जीवन अधिक मूल्यवान है.
अब तक केंद्र सरकार सुरक्षित जीवन और लोगों की आजीविका की सुरक्षा के बीच सही संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है. लोग हमेशा संकट और घबराहट के क्षणों में रास्ता दिखाने के लिए सरकार की ओर देखते हैं.
अधिकारियों और उद्योग जगत का कहना है कि अगर हम इस वायरस को मई के मध्य तक फैलने से रोक दिया तो परिस्थिति नियंत्रण में आ जाएंगी.
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यदि इसमें अधिक समय लगता है तो आर्थिक गतिविधियों में आने वाली रुकावटें अगले वित्त वर्ष में भी छाया रह सकती हैं.
पीएम ने नकारात्मक प्रभाव का आकलन करने और हर क्षेत्र के लिए राहत पैकेज के साथ आने वाले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के तहत एक टास्क फोर्स गठित करने की घोषणा की है जो एक गंभीर संकट का सामना करने के लिए तैयार है.
भारतीय बाजार पहले ही से ही दिन गिरावट देखने को मिल रही है.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पूर्ण बंद के एक दिन का मतलब है कि वास्तविक जीडीपी के 50,000 करोड़ रुपये के सामान और सेवाओं का शून्य उत्पादन हो जाना.
वहीं, दस के लॉकडाउन का मतलब होगा 5 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 3.4 का घाटा होना.
सेक्टोरल इम्पैक्ट
चूंकि सरकार राहत के लिए एक वृहद प्रोत्साहन खाका तैयार करती है, इसलिए प्रत्येक प्रमुख उद्योग के पास मुद्दों और समस्याओं को हल करने का अपना तरीका है. जब शटडाउन समाप्त होता है तो विभिन्न क्षेत्रों में प्रभाव की गणना की जा सकती है.
हम जानते हैं कि कृषि क्षेत्र आज बहुत नाजुक स्थिति में है क्योंकि यह रबी फसल के मौसम की शुरुआत है.
लॉकडाउन के कारण आपूर्ति में व्यवधान की संभावना है. जिससे किसानों की आय प्रभावित होती है.
विनिर्माण क्षेत्र कच्चे माल की आपूर्ति में कमी के कारण गंभीर आपूर्ति श्रृंखला मुद्दों की तैयारी कर रहा है.
अगर सरकार का बजट राहत की जरूरतों को पूरा करने के लिए बुनियादी ढांचे की गतिविधियों से पूरी तरह से अलग हो जाता है तो स्टील और सीमेंट जैसे उद्योग प्रभावित हो सकते हैं.
जब निवेश गतिविधि सुस्त होती है तो सेवा क्षेत्रों को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्रेरणा शक्ति के रूप में देखा जाता है लेकिन आज ये क्षेत्र, जिसमें विमानन, होटल, रेस्तरां, पर्यटन, खुदरा मॉल और मनोरंजन शामिल हैं वे भी बीमारी के प्रकोप के कारण बंद हैं.
आय समर्थन की आवश्यकता
अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के अधिक कमजोर क्षेत्रों का क्या होगा? क्या सरकार को राजकोषीय अनुशासन और घाटे के अनुपात के सभी सिद्धांतों को छोड़ देना चाहिए और लोगों की आजीविका की रक्षा के लिए नकद लाभ देना चाहिए? नागरिक कितने बलिदान के लिए तैयार हैं?
भारतीय उद्योग जगत के नेताओं जिन्होंने हाल ही में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में प्रधान मंत्री के साथ बातचीत की ने असंगठित क्षेत्र से जुड़े लाखों लोगों को सीधे नकद हस्तांतरण प्रदान करने के लिए लगभग 2-3 लाख करोड़ के पैकेज का अनुरोध किया.
कोविड-19 के प्रकोप से उत्पन्न संकट के कारण इन लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है.
जैसा कि पीएम उद्योग और व्यवसायों से अपील करते हैं कि वे न तो कर्मचारियों की छंटनी करें और न ही उनकी तनख्वाह में कटौती करें. सरकार का अपना ध्यान वेतन और पेंशन के भुगतान और बेरोजगारी कार्यक्रमों के वित्त पोषण पर रहेगा.
इसके साथ ही सरकार निजी क्षेत्र को भी वेतन देने के लिए बाध्य नहीं कर पाएगी जब आय कम हो गई है.
यह वह जगह है जहां सरकार को नकदी हस्तांतरण से जुड़े आक्रामक मुआवजा कार्यक्रमों के साथ कदमताल करना पड़ता है.
सभी ऋण भुगतानों पर तीन महीने की मोहलत मांगने के अलावा उद्योगपतियों ने सरकार से कहा कि वे प्रति वर्ष 5 लाख से कम आय वालों के बैंक खातों में नकद हस्तांतरण करें.
उन्होंने पीएम से अनुरोध किया कि वे सभी नागरिकों को अपने खातों में सीधे लाभ हस्तांतरण के माध्यम से नकद देने पर विचार करें.
जबकि 25 वर्ष से कम उम्र के लोगों को 5 हजार का एकमुश्त भुगतान दिया जा सकता है. 65 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को 10 हजार देने की सिफारिश भारतीय उद्योग परिसंघ ने की है.
संक्षेप में नकद हस्तांतरण, रियायती भोजन, ऋण सेवा कार्यकाल का विस्तार, मुफ्त चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच, महत्वपूर्ण दवाओं की कीमतें कम करना, उल्लेखनीय चीजें हैं.
क्या भारत इस तरह का उपाय कर सकता है खासकर जब से राजस्व संग्रह आर्थिक गतिविधि के छंटनी के साथ नाटकीय रूप से गिरने की संभावना है? बेशक, सरकार को तत्काल एक कदम उठाना होगा.
जैसा कि वे कहते हैं, ये असाधारण स्थितियां हैं और असाधारण उपायों की आवश्यकता है. सरकार का मार्गदर्शन करने के लिए कोई मिसाल नहीं हैं.
(लेखक- शेखर अय्यर, वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली. ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं.)