गोंडा: केंद्र की महत्वाकांक्षी योजनाओं की सूची में जिले का नाम एक बार फिर से 10 सबसे खराब जनपदों में शामिल हो गया है. जनपद पिछली बार गंदगी के मानक पर फेल हुआ था तो इस बार मनरेगा के चलते प्रदर्शन गिर गया. अब इस मामले पर प्रशासन की ओर से सफाई दी जा रही है.
- गांव से मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए गांव में ही 100 दिन का रोजगार देने के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा की शुरुआत की थी.
- इसके पीछ उद्देश्य था कि इस योजना से जहां गांवों का विकास होगा वहीं श्रमिकों को गांवों में ही रोजगार मिलेगा, लेकिन जिले में इस महत्वाकांक्षी योजना की हवा निकल गई.
- आलम यह है कि शासन स्तर पर मनरेगा योजना की हुई मॉनिटरिंग में जिले का नाम प्रदेश के 10 सबसे खराब जनपदों में शामिल हो गया.
क्या कहते हैं आंकड़े
- आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017-18 में जिले के 1054 ग्राम पंचायतों में 2783 परियोजनाओं को शुरू किया गया था, जो 2 वर्ष बाद भी पूरी नहीं हो सकीं.
- इसके अलावा 11 तहसीलों में 500 कार्य अब भी अधूरे पड़े हैं.
- मनरेगा के मामले में जिले की 165 ग्राम पंचायतों का प्रदर्शन बहुत ही लचर रहा है. इन पंचायतों में एक भी मानव दिवस का सृजन नहीं हुआ.
जियो टैगिंग में भी निराशाजनक प्रदर्शन
- वर्ष 2019-20 तक सृजित कुल परिसंपत्तियों के सापेक्ष जियो टैगिंग में भी जनपद 10 सबसे खराब जनपद की श्रेणी में पहुंच गया है.
- श्रमिकों को धन राशि भुगतान के मामले में जिले भर में 34.13 प्रतिशत मजदूरों को देरी से भुगतान किया गया.
- काम के महीनों बाद भी लंबित ट्रांजैक्शन से जियो टैगिंग में जिले का प्रदर्शन गिरा है.
समीक्षा बैठक में जियो टैगिंग के लिए निर्देशित किया जा रहा है. परिसंपत्तियों के मामले में भी सुधार हुआ है. जहां तक मानव दिवस के सृजन का मामला है तो यहां हमने लक्ष्य से अधिक सफलता हासिल की है. इसके इतर जो भुगतान लंबित हैं, उन्हें शीघ्र पूरे कराए जाने के निर्देश दिए गए हैं. अब तक ट्रांजैक्शन इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि मजदूरों के खाते आधार से लिंक न होने के कारण और कुछ गलत फीडिंग होने के कारण अब तक ट्रांजेक्शन नहीं हो सका है. जल्द ही इसमें सुधार करा दिया जाएगा.
-आशीष कुमार, सीडीओ