वाराणसी: बीएचयू के मानव विकास वैैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे की अध्यक्षता में एक शोध संपन्न हुआ है. इसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय यूरोपियन जर्नल ह्यूमन जेनेटिक्स ने अपने इस सप्ताह के अंक में प्रकाशित किया है. प्राे. चौबे के अनुसार देश भर के 1437 लोगों (पुरुषाें) के वाई क्रोमोसाेम पर यह अनुसंधान हुआ, जिसमें आश्चर्यजनक आंकड़े सामने आए हैं.
शोध के अनुसार छोटा नागपुर पठार और मध्य भारत की सबसे प्रमुख जनजातियां खारिया, मुंडा,खेरवार, संथाल और कोरकू पांच हजार साल पहले दक्षिण पूर्व एशिया से प्रवास करके भारत आईं थीं. इन जनजातियों की कद-काठी, भाषा, रंग-रूप और उनके शरीर की कोशिकाओं में मौजूद वाई क्राेमोसाेम के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है.
प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के अनुसार विज्ञान इतिहास को बदलनेे की ताकत रखता है. देशवासियों के मनोबल को तोड़े जाने की मंशा से ही इन जनजातियों को अंग्रेज 200 साल से भारत का मूल निवासी बताते रहे. यही नहीं देश के सामान्य जातियों और प्रजातियों को विदेशी मूल का निवासी घोषित कर दिया था.
यहां से मिले प्रमाण
वाई क्रोमोसोम के निर्देशन के आधार पर तय किया गया कि हेलो ग्रुप ओ के अंतर्गत आते हैं, जिनका उद्भव 20 हजार साल पहले लाओस और कंबोडिया में हुआ था. उन्होंने बताया कि हमारे अध्ययन में इन जनजातियों के चार पूर्वजों का पता चला है. एंथ्रोपॉलजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व निदेशक प्रो. वीआर राव के अनुसार औपनिवेशिक काल में मानव विकास विज्ञान में काफी छेड़छाड़ की गई थी, लेकिन खुशी इस बात की है कि 21वीं सदी में बीएचयू के वैज्ञानिक अब इतिहास के तथ्यों को दुरुस्त कर रहे हैं.