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'देशी फ्रिज' बनाने वाले कुम्हारों का दर्द, सरकार भी नहीं कर रही मदद

बढ़ती गर्मी के कारण देशी फ्रिज यानी कि मिट्टी के घड़े की मांग बढ़ गई है. मिट्टी के बने मटके और सुराही को कुम्हारों ने चाक पर आकार देना शुरू कर दिया है. कुम्हार सुबह से अपने परिवार के साथ घड़े बनाने में जुट जाते है, लेकिन उनकी मेहनत की सही कीमत उन्हें नहीं मिल पा रही है. सरकार से भी किसानों को कोई मदद नहीं मिल रही है.

सोनभद्र के कुम्हार
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Published : Apr 5, 2019, 10:44 AM IST

सोनभद्र: जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है वैसे-वैसे मिट्टी के बने घड़े, कुल्हड़ आदि अन्य बर्तनों की मांग बढ़ गई है. कुम्हार दिन-रात मेहनत से करने काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत की उन्हें उचित कीमत नहीं मिल पा रही है. मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए कुम्हारों को दूर से मिट्टी खरीद कर लानी पड़ती है. इसके बाद मिट्टी को भुरभुरा करके उसमें से कंकड़ को बाहर किया जाता है, जिसके बाद मिट्टी तैयार होती है.

जानकारी देते कुम्हार.

कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के बने बर्तनों की कीमत बहुत कम मिलती है. एक रुपये में बड़ा लस्सी का ग्लास और 50 पैसे में कुल्हड़ बिकता है, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से कई प्रकार की दिक्कतें होती हैं. वहीं सरकार से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है. सरकार से इलेक्ट्रॉनिक चाक मिलना था, लेकिन नहीं मिला जिससे अपने हाथों से ही कुम्हारों को चाक चलाना पड़ता है.

कुम्हार श्री प्रसाद प्रजापति का कहना है कि सरकार से कोई सुविधा कुम्हारों को नहीं मिल रही है. मिट्टी लेने के लिए भी दूर जाना पड़ता है, जिसकी कीमत देनी पड़ती है. एक कुम्हार पूरे दिन में 14-15 घड़े बना सकता है. इसके बाद उसे पकाना पड़ता, जिसमें पूरा समय चला जाता है. फिर भी उन्हें इसकी उचित कीमत नहीं मिल पाती, क्योंकि सरकार ने कोई कीमत निर्धारित नहीं की है. उन्होंने कहा कि मार्केट में प्लास्टिक के बने गिलास, प्लेट की वजह से भी धंधे पर असर पड़ रहा है. सरकार ने प्लास्टिक के सामान बन्द करा दिए हैं, लेकिन फिर भी धड़ल्ले से बाजारों में बिक रहा है.

सोनभद्र: जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है वैसे-वैसे मिट्टी के बने घड़े, कुल्हड़ आदि अन्य बर्तनों की मांग बढ़ गई है. कुम्हार दिन-रात मेहनत से करने काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत की उन्हें उचित कीमत नहीं मिल पा रही है. मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए कुम्हारों को दूर से मिट्टी खरीद कर लानी पड़ती है. इसके बाद मिट्टी को भुरभुरा करके उसमें से कंकड़ को बाहर किया जाता है, जिसके बाद मिट्टी तैयार होती है.

जानकारी देते कुम्हार.

कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के बने बर्तनों की कीमत बहुत कम मिलती है. एक रुपये में बड़ा लस्सी का ग्लास और 50 पैसे में कुल्हड़ बिकता है, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से कई प्रकार की दिक्कतें होती हैं. वहीं सरकार से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है. सरकार से इलेक्ट्रॉनिक चाक मिलना था, लेकिन नहीं मिला जिससे अपने हाथों से ही कुम्हारों को चाक चलाना पड़ता है.

कुम्हार श्री प्रसाद प्रजापति का कहना है कि सरकार से कोई सुविधा कुम्हारों को नहीं मिल रही है. मिट्टी लेने के लिए भी दूर जाना पड़ता है, जिसकी कीमत देनी पड़ती है. एक कुम्हार पूरे दिन में 14-15 घड़े बना सकता है. इसके बाद उसे पकाना पड़ता, जिसमें पूरा समय चला जाता है. फिर भी उन्हें इसकी उचित कीमत नहीं मिल पाती, क्योंकि सरकार ने कोई कीमत निर्धारित नहीं की है. उन्होंने कहा कि मार्केट में प्लास्टिक के बने गिलास, प्लेट की वजह से भी धंधे पर असर पड़ रहा है. सरकार ने प्लास्टिक के सामान बन्द करा दिए हैं, लेकिन फिर भी धड़ल्ले से बाजारों में बिक रहा है.

Intro:Anchor- सूरज की तपन जैसे-जैसे बढ़ रही है लोगों की हलक सूखती ही जा रही है लोग अपने गले को तर करने के लिए ठंडा पानी तलाशना शुरू कर दिए हैं जिसको देखते हुए आदिवासी जिले में देशी फ्रिज मिट्टी के घडे की मांग बढ़ गई है। मिट्टी के बने मटके ,सुराही को कुम्हारों ने चाक पर आकार देना शुरू कर दिया है ।वही जानकारों की माने तो फ्रिज के पानी से कहीं अधिक लाभदायक मिट्टी के घड़े का पानी होता है घड़े का पानी पीने से कोई नुकसान नहीं होता। वही कुम्हारों का कहना है कि अल सुबह ही अपने परिवार के साथ मिलकर घडे बनाने में लग जाते हैं लेकिन कुम्हारों की मानें तो उनके आगे मिट्टी का सबसे बड़ा संकट है कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी लेने के लिए काफी दूर जाना पड़ता है जिसके कारण आधा समय व्यतीत हो जाता है और घड़ा की सही कीमत नहीं मिल पाती, वही सरकार द्वारा भी कोई मदद नहीं मिल रहा है जिससे अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।


Body:Vo1-जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है वैसे -वैसे मिट्टी के बने घड़े,कुल्हड़,परई समेत अन्य वर्तनो की मांग बढ़ गयी है।लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी कुम्हारों को मिट्टी के बर्तनो की उचित कीमत नही मिल पा रही है जिससे तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।क्योकि मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए दूर से मिट्टी खरीद कर लाना पड़ता है इसके बाद मिट्टी को भुरभुरा करके उसमें से कंकड़ को बाहर किया जाता है जिसके बाद मिट्टी तैयार होती है।वही बाजारों में प्लास्टिक की बनी सामनो के आने से भी मिट्टी के बर्तनों की माँग में कमी आयी है।इस सम्बन्ध में घड़ा बनाने वाले कुम्हारों ने बताया कि मिट्टी के बने बर्तनों की कीमत बहुत कम मिलती है,एक रुपया में बड़ी लस्सी की ग्लास और 50 पैसे में कुल्हड़ बिकता है जिससे कई प्रकार की दिक्कतें होती है।वही सरकार के द्वारा भी कोई मदद नही मिल रही है,सरकार से इलेक्ट्रॉनिक चाक मिलना था लेकिन नही मिला जिससे आपने हाथों से ही चाक को चलाना पड़ता है।

Byte-रमेश प्रजापति(कुम्हार)


Conclusion:Vo2-वही घड़े बना रहे कुम्हार श्री प्रसाद प्रजापति ने बताया कि अगर मेहनत किया जाय तो एक परिवार की जीविका बड़े आराम से चल सकती है लेकिन सरकार से कोई सुविधा कुम्हारों को नही मिल रही है। मिट्टी लेने के लिए भी दूर जाना पड़ता है जिसकी कीमत देनी पड़ती है।एक कुम्हार पूरे दिन में 14-15 घड़े बना सकता है जिसके बाद उसे पकाना पड़ेगा जिसमे पूरा समय चला जाता है।इसकी उचित कीमत नही मिल पाती क्योकि सरकार द्वारा कोई कीमत निर्धारित नही है।वही आगे बताया कि मार्केट में प्लास्टिक से बनी गिलास,प्लेट की वजह से भी धंधे पर असर पड़ रहा है सरकार ने प्लास्टिक की समान बन्द करा दिया लेकिन धड़ल्ले से बाजारों में बिक रही है।

Byte-श्री प्रसाद प्रजापति(कुम्हार)


चन्द्रकान्त मिश्रा
सोनभद्र
मो0 9450323031
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