लखीमपुर: छोटी काशी के नाम से मशहूर गोला गोकर्णनाथ कस्बे में कृषक समाज इंटर कॉलेज के गेट में घुसते ही हॉकी का पुराना मैदान नजर आता है. इस मैदान के सामने ही एक कोठी बनी है. जिस कोठी से खीरी की सांसदी का इतिहास जुड़ा है.
यह कोठी खीरी की सियासी विरासत की बरसों से गवाह भी है. देश में जब से जम्हूरियत शुरू हुई है, इस कोठी ने बढ़-चढ़कर अपना रोल निभाया है. इस कोठी ने सियासत के तमाम रंग भी देखें पर खीरी वालों को इस कोठी का रंग हमेशा खींचता चला आया. कभी इस कोठी पर कांग्रेसी झंडा लहराता रहा. कभी लाल और हरा. आज लाल, हरा और नीला दोनों लहरा रहे.
1962 में पहली बार इस कोठी की नुमाइंदगी की स्व. बालगोविन्द वर्मा ने, जिन्होंने देश के तीसरे इंतेखाबाद में पहली बार कांग्रेस के झंडे तले जीत का परचम लहराया. स्व बालगोविन्द वर्मा खीरी की जनता की नुमाइंदगी करने दिल्ली दरबार पहुंच गए. इसके बाद बालगोविन्द वर्मा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीत इस कोठी में सांसदी लाए. 1967,1972 में ये कोठी खीरी की जनता की आवाज दिल्ली तक पहुंचाने का माध्यम बनी.
बालगोबिंद वर्मा के निधन के बाद उनकी पत्नी ने लगाई जीत की हैट्रिक
1977 में इस कोठी के हाथ मायूसी लगी. इमरजेंसी के बाद देश भर में कांग्रेस के खिलाफ माहौल था. स्व बालगोविन्द वर्मा 1977 में भी खड़े हुए पर जनता पार्टी के सूरथ बहादुर शाह के हाथों हार गए. इस कोठी से सांसदी जा चुकी थी, लेकिन 1980 के लोकसभा चुनावों में फिर एक बार बालगोविन्द वर्मा ने जोरदार वापसी की. कोठी फिर खिलखिला उठी, लेकिन बालगोबिंद वर्मा का निधन हो गया. इसके बाद उनकी पत्नी ऊषा वर्मा ने कांग्रेस का झन्डा थामा. मध्यावधि चुनाव हुए. सहानुभूति की लहर में ऊषा वर्मा पहली बार में फिर इस कोठी और खीरी की जनता की आवाज बनने दिल्ली दरबार जा पहुंची. इसके बाद 1984 और 1989 के चुनावों में हैट्रिक मारी. सांसदी फिर इस 10 सालों तक इस कोठी में ही रही.
1991 में कोठी से गई सांसदी
1991 का वक्त था. देश मे रामलहर की गूंज हर ओर थी. ऊषा वर्मा फिर चुनाव में कोठी का प्रतिनिधित्व करने को उतरी, लेकिन जय श्री राम के नारों के शोर में कांग्रेस की ऊषा वर्मा हार गईं. यही कहानी 1996 में भी दोहराई गई. भाजपा के प्रत्याशी डॉ. गेंदनलाल कनौजिया रामलहर में वोट की बाढ़ से तराई की खीरी संसदीय सीट से दोबारा दिल्ली पहुंच गए. बता दें कि गेंदलाल कनौजिया पहले ऐसे शख्स थे जो खीरी के रहने वाले नहीं थे. वह शाहजहांपुर से थे. पर रामलहर ने उनका बेड़ा पार किया.
1998 में उषा वर्मा के बेटे रवि प्रकाश वर्मा ने कमान संभाली, लेकिन उन्होंने कांग्रेस की जगह समाजवादी का दामन थामा. रवि वर्मा ने भारतीय जनता पार्टी के गहने लाल कनौजिया को हराकर एक बार फिर सांसदी कोठी में वापस ले आए. 1999 और 2004 में भी रवि प्रकाश वर्मा खीरी के सांसद बने. 2009 के चुनाव में कांग्रेस के कर्जा माफी ने ऐसा जादू चलाया कि एक बार फिर से इस कोठी से सांसदी छिन गई. इस बार कांग्रेस के जफर अली नकवी ने चुनाव जीत लिया था.
रवि प्रकाश वर्मा दिल्ली में डटे रहे. वह समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. मुलायम और अखिलेश से नजदीकी के चलते उनको राज्य सभा सांसद का टिकट मिला और वह राज्यसभा सांसद बन गए. चार बार बाल गोविंद वर्मा, तीन बार उनकी पत्नी उषा वर्मा, तीन बार उषा वर्मा के बेटे रवि प्रकाश वर्मा इस कोठी से निकलकर सांसद रह चुके हैं.
अब भी इस कोठी में राजसभा सांसदी चल रही है. इस बार एक नई पीढ़ी फिर से इस कोठी की सियासती विरासत को आगे बढाने को कदम बढ़ा चुकी है. रवि प्रकाश वर्मा की बेटी पूर्वी वर्मा इसी कोठी से निकल कर 28 खीरी लोकसभा सीट से महागठबंधन की प्रत्याशी हैं. देखने वाली बात होगी कि सांसदी 12वीं बार इस कोठी में आ पाती है या नहीं.