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गोरखपुर: कुल शरीफ के साथ खत्म हुआ सालाना उर्स, बड़ी संख्या में उमड़े हिंदू जायरीन - कुल शरीफ गोरखपुर

जनपद में हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमा की दरगाह पर सालाना उर्स खत्म हो गया. बुधवार को उर्स का आखिरी दिन था. इस मौके पर हिंदू-मुस्लिम एकता की तस्वीर देखने को मिली.

उर्स में दिखी हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक.
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Published : Jul 3, 2019, 8:12 PM IST

गोरखपुर: दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमा के सालाना उर्स-ए-पाक का बुधवार को आखिरी दिन था. इस मौके पर रवायती तरीके से आखिरी कुल शरीफ की रस्म अदा की गई. इस दौरान हिंदुस्तान में अमन, हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ-साथ दुनिया में शांति की दुआ की गई. दरगाह पर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिली. यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के अकीदत मंदो का तांता लगा रहा.

उर्स में दिखी हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक.
सालाना उर्स का आखिरी दिन-मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजान-ए-मुबारक खां शहीद के मुतवल्ली मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कार्यक्रम की शुरुआत की. क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से दिन की शुरूआत की गई. इसके बाद नात शरीफ पढ़ी गई. अंत में कुल शरीफ की रस्म हुई और सामूहिक रूप से सलात-ओ-सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई. दूरदराज से आए अकीदत मंदों ने मुल्क की सलामती की दुआ मांगी.

मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही, प्रधानाचार्य - मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजाने मुबारक खां शाहिद ने बताया कि वलियों की बारगाह से इत्तेहाद और भाईचारगी का सबक मिलता है. औलिया अल्लाह को मानना यकीनन खुशनसीबी है. दीन-ए-इस्लाम हमेशा से भाईचारा, समानता और अमन की बात करता आया है और इसी पर यकीन करता है. इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में औलिया-ए-किराम ने बहुत मेहनत की है.

हर साल की तरह इस साल भी वह बाबा की दरगाह पर आए हुए हैं. यहां सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर उर्स-ए-पाक में हिस्सा लेते हैं क्योंकि यहां उन्हें अमन और सुकून मिलता है.
- हाजी शहाबुद्दीन

हम वर्षों से यहां आते हैं और जो भी बाबा से मांगते हैं, वह पूरा होता है. यहां सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल बैठकर बाबा की खिदमत करते हैं.
- रामस्वरूप पटवा, हिंदू जायरीन

गोरखपुर: दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमा के सालाना उर्स-ए-पाक का बुधवार को आखिरी दिन था. इस मौके पर रवायती तरीके से आखिरी कुल शरीफ की रस्म अदा की गई. इस दौरान हिंदुस्तान में अमन, हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ-साथ दुनिया में शांति की दुआ की गई. दरगाह पर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिली. यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के अकीदत मंदो का तांता लगा रहा.

उर्स में दिखी हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक.
सालाना उर्स का आखिरी दिन-मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजान-ए-मुबारक खां शहीद के मुतवल्ली मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कार्यक्रम की शुरुआत की. क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से दिन की शुरूआत की गई. इसके बाद नात शरीफ पढ़ी गई. अंत में कुल शरीफ की रस्म हुई और सामूहिक रूप से सलात-ओ-सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई. दूरदराज से आए अकीदत मंदों ने मुल्क की सलामती की दुआ मांगी.

मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही, प्रधानाचार्य - मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजाने मुबारक खां शाहिद ने बताया कि वलियों की बारगाह से इत्तेहाद और भाईचारगी का सबक मिलता है. औलिया अल्लाह को मानना यकीनन खुशनसीबी है. दीन-ए-इस्लाम हमेशा से भाईचारा, समानता और अमन की बात करता आया है और इसी पर यकीन करता है. इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में औलिया-ए-किराम ने बहुत मेहनत की है.

हर साल की तरह इस साल भी वह बाबा की दरगाह पर आए हुए हैं. यहां सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर उर्स-ए-पाक में हिस्सा लेते हैं क्योंकि यहां उन्हें अमन और सुकून मिलता है.
- हाजी शहाबुद्दीन

हम वर्षों से यहां आते हैं और जो भी बाबा से मांगते हैं, वह पूरा होता है. यहां सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल बैठकर बाबा की खिदमत करते हैं.
- रामस्वरूप पटवा, हिंदू जायरीन

Intro:गोरखपुर। नॉर्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खा शहीद अलैहिर्रहमा के सालाना उर्स ए पाक के अंतिम दिन आखरी कुल शरीफ की रस्म परंपरागत तरीके से अदा की गई। हिंदुस्तान में अमन, हिंदू मुस्लिम एकता के साथ दुनिया में शांति की दुआ की गई। दरगाह पर गंगा जमुनी तहजीब की साझा संस्कृति परवान चढ़ी। हिंदू मुस्लिम दोनों धर्मों के बड़ी संख्या में महिला, पुरुष व बच्चे पहुंचे, दिनभर हजरत की दरगाह पर हकीकत मंदो का तांता लगा रहा।


Body:मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजान-ए-मुबारक खा शहीद के मुतवल्ली मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कार्यक्रम की शुरुआत क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से हुई, फिर नात शरीफ पढ़ी गई। अंत में कुल शरीफ की रस्म हुई, सामूहिक रूप से सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई।

दूरदराज से आए हकीकत मंदो ने पढ़कर मुल्क की सलामती के लिए दुआ मांगी।


Conclusion:मदरसा दारुल उलूम आहे सुन्नत फैजाने मुबारक खा शहीद के प्रधानाचार्य मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि वलियों की बारगाह से इत्तेहाद और भाईचारगी का सबक मिलता है, औलिया अल्लाह को मन्ना यकीनन खुशनसीबी है। दीन-ए-इस्लाम हमेशा से भाईचारा, समानता और अमन की बात करता आया है। और इसी पर यकीन करता है, इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में औलिया-ए-किराम ने बहुत मेहनत की है।

बाइट - मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही, प्रधानाचार्य - मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजाने मुबारक खा शाहिद

दरगाह पर पहुंचे हाजी शहाबुद्दीन ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी वह बाबा की दरगाह पर आए हुए हैं, यहां पर सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर उर्स-ए-पाक में हिस्सा लेते हैं। यहां पर उन्हें अमन और सुकून की अनुभूति होती है।

बाइट हाजी शहाबुद्दीन

बाबा की दरगाह पर पहुंचे रामस्वरूप पटवा ने बताया कि वर्षों से यहां पर आते हैं और जो भी बाबा से मांगते हैं, वह पूरा होता है। बाबा में उनकी बड़ी आस्था है, यहां पर सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल बैठकर बाबा के खिदमत में लगे रहते हैं।

बाइट - रामस्वरूप पटवा, हिंदू हकीदत मंद

वहीं उर्स ए पाक के मौके पर पहुंची सुनीता ने बताया कि बचपन से वह बाबा की दरगाह में हाजिरी लगाती चली आ रही है, आज उनकी शादी हो गई है और उनके दो बच्चे हैं। फिर भी वह अपने परिवार के साथ बाबा की दरगाह पर आती हैं और अपनी मनोकामना को पूरा करती है, यहां आने पर उन्हें शांति की अनुभूति होती है।

बाइट - सुनीता, हिंदू अकीदत मंद



निखिलेश प्रताप
गोरखपुर
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