गोरखपुर: दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमा के सालाना उर्स-ए-पाक का बुधवार को आखिरी दिन था. इस मौके पर रवायती तरीके से आखिरी कुल शरीफ की रस्म अदा की गई. इस दौरान हिंदुस्तान में अमन, हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ-साथ दुनिया में शांति की दुआ की गई. दरगाह पर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिली. यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के अकीदत मंदो का तांता लगा रहा.
मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही, प्रधानाचार्य - मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजाने मुबारक खां शाहिद ने बताया कि वलियों की बारगाह से इत्तेहाद और भाईचारगी का सबक मिलता है. औलिया अल्लाह को मानना यकीनन खुशनसीबी है. दीन-ए-इस्लाम हमेशा से भाईचारा, समानता और अमन की बात करता आया है और इसी पर यकीन करता है. इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में औलिया-ए-किराम ने बहुत मेहनत की है.
हर साल की तरह इस साल भी वह बाबा की दरगाह पर आए हुए हैं. यहां सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर उर्स-ए-पाक में हिस्सा लेते हैं क्योंकि यहां उन्हें अमन और सुकून मिलता है.
- हाजी शहाबुद्दीन
हम वर्षों से यहां आते हैं और जो भी बाबा से मांगते हैं, वह पूरा होता है. यहां सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल बैठकर बाबा की खिदमत करते हैं.
- रामस्वरूप पटवा, हिंदू जायरीन