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रिटायरमेंट के बाद भी यह डॉक्टर लोगों को दे रहे है सेवाएं, ऐसे हैं ये पद्मश्री शख्सियत - डॉ. लहरी

BHU के कार्डियोलॉजिस्ट सर्जन पद्मश्री टी. के. लहरी रिटायरमेंट के बाद भी पेसेंट्स की सेवा कर रहे हैं. इनके सेवा भाव को देखकर लोग इन्हें महापुरुष और भगवान भी कहते हैं.

पद्मश्री टी. के लहरी
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Published : Jul 2, 2019, 12:05 AM IST

वाराणसी: डॉ. लहरी ऐसे महान व्यक्तित्व के स्वामी हैं. इनके बारे में शायद कुछ भी कहने के लिए शब्द कम पड़ जाए. बीएचयू की तरफ से दिए गए एक साधारण से अपार्टमेंट के कमरे में अकेले जीवन गुजार रहे डॉ. लहरी ने न जाने कितनों की जिंदगी को संवार दिया.

75 साल की उम्र में भी जवान है डॉ.लहरी
देश के बड़े कार्डियोलॉजिस्ट सर्जन डॉ. लहरी इस वक्त भले ही 75 साल की उम्र में पहुंच गए हों, लेकिन उनके अंदर जोश और गरीब जरूरतमंदों की मदद करने का जज्बा किसी जवान से कम नहीं है. शायद यही वजह है कि रोज सुबह 6 बजे बिना किसी हिचक और बिना किसी घबराहट के ठीक उसी तरह डॉ. लहरी अपने घर से एक बैग लेकर निकल जाते हैं जैसे कि रिटायरमेंट के पहले था.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से की शुरूआत
डॉ. लहरी ने अपने जीवन के बारे में बताया कि वह कलकत्ता के रहने वाले हैं और अमेरिका में डॉक्टरी की पढ़ाई की है. इसके बाद 1974 में जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय में लेक्चरर के पद पर उनकी नियुक्ति हुई तो महज 250 रुपये महीने पर उन्होंने काम शुरू किया था.

उन्होंने बताया कि यहां आने के बाद जब उन्होंने गरीबों और असहाय लोगों को अस्पताल में परेशान और तड़पते हुए देखा तो इनकी मदद करने की सोची. यह जज्बा इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि डॉ. लहरी का परिवार रामकृष्ण मिशन से जुड़ा हुआ था.

अमेरिका से की डॉक्टरी
डॉ. लहरी ने बताया कि परिवार में इस वक्त तो एक छोटा भाई है, जो अमेरिका में इंजीनियर है. परिवार के रामकृष्ण मिशन से जुड़े होने की वजह से जरूरतमंद और गरीबों की मदद हमेशा से करते रहने वाले डॉ. लहरी ने भी अपनी इस खासियत को जारी रखा.

उन्होंने बताया कि 1974 में जब मैंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्वाइन किया तो मेरी सैलरी भले ही कम थी, लेकिन जज्बे के साथ मैंने काम जारी रखा. उन्होंने बताया कि गरीबों की मदद कर अपनी सैलरी उन्हीं पर खर्च करने लगा.

डॉ. लहरी ने कहा कि 1997 तक पहुंचते-पहुंचते उनकी सैलरी बिना टैक्स के 84 हजार रुपये पहुंच गई थी. इसमें भी कई और खर्च मिला दिया जाए तो एक लाख से ज्यादा तनख्वाह मिलती थी. फिर भी 1997 में डॉ. लहरी ने बीएचयू से मिलने वाली सैलरी को लेना बंद कर दिया. उन्होंने अपनी पूरी सैलेरी गरीब और जरूरतमंद लोगों में डोनेट कर दिया. डॉ लहरी कुछ पैसे लेते थे इससे वह घर का खर्च चलाता थे. इसके अलावा उनको सैलेरी के पैसों से कोई मतलब नहीं था.

75 साल की उम्र में भी जवान है डॉ.लहरी.

डॉ. लहरी ने 2003 में ली रिटायरमेंट
डॉ. लहरी का कहना है की आज का दौर बिजनेस का है. डॉ. सिर्फ बिजनेस कर रहे हैं, लेकिन जरूरत है ऐसे लोगों की मदद करने की जिनको सही में डॉक्टर की जरूरत है. सबसे बड़ी बात यह है कि 2003 में डॉ. लहरी जब यहां से रिटायर हुए तो घर नहीं बैठे रोज सुबह 6 बजे उसी तरह अपने घर से निकलकर अस्पताल जाना आज भी डॉ. लहरी ने जारी रखा है. रिटायरमेंट के 15 साल बाद भी डॉ. लहरी रोज 40 से 50 मरीज देखते हैं. हालांकि अब वह ऑपरेशन नहीं करते, लेकिन अपने जूनियर्स को ऑपरेशन के दौरान गाइड जरूर करते हैं.

न गाड़ी न साइकिल पैदल ही जाते हैं अस्पताल
आज के दौर में जब डॉक्टर बनने के साथ ही लोग महंगी-महंगी गाड़ियां खरीदकर बड़े-बड़े बंगलों में रहना पसंद करते हैं. वही आज भी डॉ. लहरी अपने घर से बीएचयू आईएमएस तक की दूरी को पैदल ही पूरा करते हैं. घर से हाथ में एक काला बैग लेकर डॉ. लहरी रोज सुबह पैदल निकलकर अस्पताल पहुंचते हैं. यहां आने के बाद सबसे पहले वार्ड में भर्ती अपने मरीज का हाल जानते हैं. हर शुक्रवार को मरीज को देखते भी हैं. बहुत ही साधारण जिंदगी जीने वाले डॉ. लहरी शुद्ध शाकाहारी हैं और इनका जीवन सेवा भाव को ही समर्पित है.

महामना हैं प्रेरणा
डॉ. लहरी ने बताया कि बहुत से बड़े-बड़े डॉक्टर बनारस में हैं. वह भी बड़ा बन सकते थे. उन्होंने बताया कि अमेरिका से कई बड़े हॉस्पिटलों ने उनको कई बार ऑफर भी दिया, लेकिन वह महामना मदन मोहन मालवीय जी से प्रेरित हैं और उनकी तरफ से गरीबों की सेवा करने को लेकर उन्हें ही अपना आदर्श मानते थे. इसलिए उन्होंने अमेरिका के हॉस्पिटल्स का ऑफर ठुकरा कर महामना की बगिया में ही सेवा देना बेहतर समझा. उन गरीबों के इलाज में पूरी मदद की, जिनके पास पैसे न हुआ करते थे. डॉ लहरी का कहना था बहुत से मरीज पैसे के अभाव में दम तोड़ते हैं मैं उनकी भी मदद करता हूं.

2016 में मिला पद्मश्री
रिटायरमेंट के बाद रेगुलर सुबह 6 बजे उठकर बीएचयू जाना और वहां दोपहर बाद ड्यूटी करके वापस आने के बाद शाम को 6 बजे फिर से बीएचयू पहुंचकर अपनी सेवाएं देने का काम डॉ. लहरी बीते 15 सालों से लगातार कर रहे हैं. डॉ लहरी को 2016 में सरकार ने पद्मश्री अवार्ड से नवाजा.

बस कहते हैं- मैं खाता हूं और सोता हूं
इस सम्मान के मिलने के बाद भी डॉ. लहरी की जिंदगी में कोई असर नहीं पड़ा और आज भी पद्मश्री जैसे अवार्ड से सम्मानित डॉ. लहरी खुद को सिर्फ और सिर्फ डॉ. लहरी ही कहते हैं न की पद्मश्री डॉ. लहरी. उनका एक तकिया कलाम है, जब उनसे आप यह पूछेंगे कि डॉ. लहरी कौन हैं तो उनका कहना है की डॉ. लहरी मैं हूं और मेरा काम है खाना और सोना.

काम करने वाले भी मानते हैं सच में भगवान
डॉ. लहरी के साथ अस्पताल में उनकी मदद करने वाले डॉ. बैजनाथ का कहना है कि हम बीते 10 सालों से डॉ. लहरी के साथ काम कर रहे हैं और उनके जैसी शख्सियत हमने नहीं देखी. एक गार्जियन की तरह वह हमेशा गाइड भी करते हैं. उनका कहना है मरीजों के प्रति डॉ. लहरी का काफी विनम्र भाव है.

घर में एक अलमारी, चौकी और टीवी के अलावा कुछ भी नहीं है. गाड़ी भी नहीं रखें हैं और पैदल भी बीएचयू आते जाते हैं. डॉ. लहरी जैसे महान डॉक्टर इस धरती पर मौजूद है, जो सिर्फ गरीबों की सेवा करना ही अपना कर्तव्य समझते हैं न कि अपनी जरूरतों को पूरा करना.

वाराणसी: डॉ. लहरी ऐसे महान व्यक्तित्व के स्वामी हैं. इनके बारे में शायद कुछ भी कहने के लिए शब्द कम पड़ जाए. बीएचयू की तरफ से दिए गए एक साधारण से अपार्टमेंट के कमरे में अकेले जीवन गुजार रहे डॉ. लहरी ने न जाने कितनों की जिंदगी को संवार दिया.

75 साल की उम्र में भी जवान है डॉ.लहरी
देश के बड़े कार्डियोलॉजिस्ट सर्जन डॉ. लहरी इस वक्त भले ही 75 साल की उम्र में पहुंच गए हों, लेकिन उनके अंदर जोश और गरीब जरूरतमंदों की मदद करने का जज्बा किसी जवान से कम नहीं है. शायद यही वजह है कि रोज सुबह 6 बजे बिना किसी हिचक और बिना किसी घबराहट के ठीक उसी तरह डॉ. लहरी अपने घर से एक बैग लेकर निकल जाते हैं जैसे कि रिटायरमेंट के पहले था.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से की शुरूआत
डॉ. लहरी ने अपने जीवन के बारे में बताया कि वह कलकत्ता के रहने वाले हैं और अमेरिका में डॉक्टरी की पढ़ाई की है. इसके बाद 1974 में जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय में लेक्चरर के पद पर उनकी नियुक्ति हुई तो महज 250 रुपये महीने पर उन्होंने काम शुरू किया था.

उन्होंने बताया कि यहां आने के बाद जब उन्होंने गरीबों और असहाय लोगों को अस्पताल में परेशान और तड़पते हुए देखा तो इनकी मदद करने की सोची. यह जज्बा इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि डॉ. लहरी का परिवार रामकृष्ण मिशन से जुड़ा हुआ था.

अमेरिका से की डॉक्टरी
डॉ. लहरी ने बताया कि परिवार में इस वक्त तो एक छोटा भाई है, जो अमेरिका में इंजीनियर है. परिवार के रामकृष्ण मिशन से जुड़े होने की वजह से जरूरतमंद और गरीबों की मदद हमेशा से करते रहने वाले डॉ. लहरी ने भी अपनी इस खासियत को जारी रखा.

उन्होंने बताया कि 1974 में जब मैंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्वाइन किया तो मेरी सैलरी भले ही कम थी, लेकिन जज्बे के साथ मैंने काम जारी रखा. उन्होंने बताया कि गरीबों की मदद कर अपनी सैलरी उन्हीं पर खर्च करने लगा.

डॉ. लहरी ने कहा कि 1997 तक पहुंचते-पहुंचते उनकी सैलरी बिना टैक्स के 84 हजार रुपये पहुंच गई थी. इसमें भी कई और खर्च मिला दिया जाए तो एक लाख से ज्यादा तनख्वाह मिलती थी. फिर भी 1997 में डॉ. लहरी ने बीएचयू से मिलने वाली सैलरी को लेना बंद कर दिया. उन्होंने अपनी पूरी सैलेरी गरीब और जरूरतमंद लोगों में डोनेट कर दिया. डॉ लहरी कुछ पैसे लेते थे इससे वह घर का खर्च चलाता थे. इसके अलावा उनको सैलेरी के पैसों से कोई मतलब नहीं था.

75 साल की उम्र में भी जवान है डॉ.लहरी.

डॉ. लहरी ने 2003 में ली रिटायरमेंट
डॉ. लहरी का कहना है की आज का दौर बिजनेस का है. डॉ. सिर्फ बिजनेस कर रहे हैं, लेकिन जरूरत है ऐसे लोगों की मदद करने की जिनको सही में डॉक्टर की जरूरत है. सबसे बड़ी बात यह है कि 2003 में डॉ. लहरी जब यहां से रिटायर हुए तो घर नहीं बैठे रोज सुबह 6 बजे उसी तरह अपने घर से निकलकर अस्पताल जाना आज भी डॉ. लहरी ने जारी रखा है. रिटायरमेंट के 15 साल बाद भी डॉ. लहरी रोज 40 से 50 मरीज देखते हैं. हालांकि अब वह ऑपरेशन नहीं करते, लेकिन अपने जूनियर्स को ऑपरेशन के दौरान गाइड जरूर करते हैं.

न गाड़ी न साइकिल पैदल ही जाते हैं अस्पताल
आज के दौर में जब डॉक्टर बनने के साथ ही लोग महंगी-महंगी गाड़ियां खरीदकर बड़े-बड़े बंगलों में रहना पसंद करते हैं. वही आज भी डॉ. लहरी अपने घर से बीएचयू आईएमएस तक की दूरी को पैदल ही पूरा करते हैं. घर से हाथ में एक काला बैग लेकर डॉ. लहरी रोज सुबह पैदल निकलकर अस्पताल पहुंचते हैं. यहां आने के बाद सबसे पहले वार्ड में भर्ती अपने मरीज का हाल जानते हैं. हर शुक्रवार को मरीज को देखते भी हैं. बहुत ही साधारण जिंदगी जीने वाले डॉ. लहरी शुद्ध शाकाहारी हैं और इनका जीवन सेवा भाव को ही समर्पित है.

महामना हैं प्रेरणा
डॉ. लहरी ने बताया कि बहुत से बड़े-बड़े डॉक्टर बनारस में हैं. वह भी बड़ा बन सकते थे. उन्होंने बताया कि अमेरिका से कई बड़े हॉस्पिटलों ने उनको कई बार ऑफर भी दिया, लेकिन वह महामना मदन मोहन मालवीय जी से प्रेरित हैं और उनकी तरफ से गरीबों की सेवा करने को लेकर उन्हें ही अपना आदर्श मानते थे. इसलिए उन्होंने अमेरिका के हॉस्पिटल्स का ऑफर ठुकरा कर महामना की बगिया में ही सेवा देना बेहतर समझा. उन गरीबों के इलाज में पूरी मदद की, जिनके पास पैसे न हुआ करते थे. डॉ लहरी का कहना था बहुत से मरीज पैसे के अभाव में दम तोड़ते हैं मैं उनकी भी मदद करता हूं.

2016 में मिला पद्मश्री
रिटायरमेंट के बाद रेगुलर सुबह 6 बजे उठकर बीएचयू जाना और वहां दोपहर बाद ड्यूटी करके वापस आने के बाद शाम को 6 बजे फिर से बीएचयू पहुंचकर अपनी सेवाएं देने का काम डॉ. लहरी बीते 15 सालों से लगातार कर रहे हैं. डॉ लहरी को 2016 में सरकार ने पद्मश्री अवार्ड से नवाजा.

बस कहते हैं- मैं खाता हूं और सोता हूं
इस सम्मान के मिलने के बाद भी डॉ. लहरी की जिंदगी में कोई असर नहीं पड़ा और आज भी पद्मश्री जैसे अवार्ड से सम्मानित डॉ. लहरी खुद को सिर्फ और सिर्फ डॉ. लहरी ही कहते हैं न की पद्मश्री डॉ. लहरी. उनका एक तकिया कलाम है, जब उनसे आप यह पूछेंगे कि डॉ. लहरी कौन हैं तो उनका कहना है की डॉ. लहरी मैं हूं और मेरा काम है खाना और सोना.

काम करने वाले भी मानते हैं सच में भगवान
डॉ. लहरी के साथ अस्पताल में उनकी मदद करने वाले डॉ. बैजनाथ का कहना है कि हम बीते 10 सालों से डॉ. लहरी के साथ काम कर रहे हैं और उनके जैसी शख्सियत हमने नहीं देखी. एक गार्जियन की तरह वह हमेशा गाइड भी करते हैं. उनका कहना है मरीजों के प्रति डॉ. लहरी का काफी विनम्र भाव है.

घर में एक अलमारी, चौकी और टीवी के अलावा कुछ भी नहीं है. गाड़ी भी नहीं रखें हैं और पैदल भी बीएचयू आते जाते हैं. डॉ. लहरी जैसे महान डॉक्टर इस धरती पर मौजूद है, जो सिर्फ गरीबों की सेवा करना ही अपना कर्तव्य समझते हैं न कि अपनी जरूरतों को पूरा करना.

Intro:सर इस खबर की फाइल एफटीपी पर Up_vns_dr_lahari_story_7200982 नाम से भेजी हैं।


डॉक्टर्स डे स्पेशल:

वाराणसी: किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है. महान कलाकार राज कपूर की फिल्म का यह गीत आज भी ठीक उसी तरह लोगों की जुबान पर है. जैसा इस गीत के आने के बाद हुआ करता था लेकिन इस गीत के मायने बनारस की उस शख्सियत पर बिल्कुल सटीक बैठते हैं जिसे धरती का भगवान कहा जाता है. जी हां हम बात कर रहे हैं बनारस के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में अपनी सेवाएं देने वाले डॉक्टर टी के लहरी की. डॉक्टर लहरी वह नाम है जिसे शायद किसी पहचान की भी जरूरत नहीं है. पद्मश्री से नवाजे जा चुके टी के लहरी अपने आप में एक इंस्टिट्यूशन हैं, इंस्टिट्यूशन मानवता का, इंस्टिट्यूशन डॉक्टरी का और इंस्टिट्यूशन इंसानियत का. क्योंकि बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में बतौर डॉक्टर सेवाएं देने वाले डॉक्टर लहरी रिटायरमेंट के 15 साल बाद भी बीएचयू अस्पताल में मरीजों की ठीक उसी तरह सेवाएं कर रहे हैं जैसा कि रिटायरमेंट के पहले किया करते थे, वह भी निशुल्क, क्योंकि इनको मिलने वाली पेंशन और अन्य चीजें यह गरीबों को दान करते हैं. आप भी जानिए धरती के इस भगवान के बारे में.

Body:वीओ-01 75 साल की उम्र में भी जवान
डॉक्टर लहरी ऐसे महान व्यक्तित्व के स्वामी हैं. जिनके बारे में शायद कुछ भी कहने के लिए शब्द कम पड़ जाए. बीएचयू की तरफ से दिए गए एक साधारण से अपार्टमेंट के कमरे में अकेले जीवन गुजार रहे डॉक्टर लहरी ने न जाने कितनों की जिंदगी को संवार दिया. देश के बड़े कार्डियोलॉजिस्ट सर्जन डॉ लहरी इस वक्त भले ही 75 साल की उम्र में पहुंच गए हो लेकिन उनके अंदर जोश और गरीबों जरूरतमंदों की मदद करने का जज्बा किसी जवान से कम नहीं है. शायद यही वजह है कि रोज सुबह 6:00 बजे बिना किसी हिचक और बिना किसी घबराहट के ठीक उसी तरह डॉक्टर लहरी अपने घर से एक बैग लेकर निकल जाते हैं जैसे कि रिटायरमेंट के पहले था.

नाम बड़ा और इतने साधारण
चमक धमक और मीडिया की सुर्खियों से दूर रहने वाले डॉक्टर लहरी से मुलाकात हमारे लिए भी एक सपने कि तरह था, क्योंकि खुद को प्रमोट करना डॉक्टर लहरी को बिल्कुल ही पसंद नहीं. शायद यही वजह है कि कई दिन के प्रयास के बाद जब उनसे हमारी मुलाकात हुई तो उन्होंने पहले तो सीधे कहा किसी बड़े डॉक्टर से मिलो मैं डॉक्टर लहरी हूं छोटा हूं, लेकिन जब हमने उनसे काफी रिक्वेस्ट की तो उन्होंने घर के अंदर आने की परमिशन दे ही दी. घर के अंदर पहुंचने के साथ ही जब हमने इस महान शख्सियत के नाम के अनुरूप इन के रहन-सहन को देखा तो चौक पड़े.

घर का एक कमरा और वो भी ऐसा
विश्वास नहीं होगा कि तीन कमरे के एक फ्लैट में डॉक्टर लहरी जिस रूम में रहते हैं. वहां पर फर्नीचर के नाम पर सिर्फ एक चौकी जिस पर एक गद्दा एक बड़ी सी चादर एक तकिया और तकिए के बगल में चश्मे का केस, एक पुराने जमाने की घड़ी रखी हुई थी. जब नजरें और घुमाई तो कमरे में एक पुरानी आलमीरा और सिर्फ और सिर्फ किताबें वह भी धूल से सनी हुई पड़ी थी. सामने एक पुराने वक्त का टीवी था ना कि एलइडी टीवी उसमें भी केबल का कनेक्शन मौजूद था. वह भी तब जब आज के दौर में हाई-फाई डॉक्टर सेट टॉप बॉक्स पर डिपेंड है.


फिलहाल इन चीजों को देखने के बाद जब हमने डॉक्टर लहरी से बात करने की सोची तो उन्होंने इंकार कर दिया, लेकिन काफी मान मन्नोवल के बाद वह मान गए और हमने उनसे उनके जीवन के बारे में जाना. डॉक्टर लहरी ने बताया कि वह कोलकाता के रहने वाले हैं और अमेरिका में डॉक्टरी की पढ़ाई की है. इसके बाद 1974 में जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय में लेक्चरर के पद पर उनकी नियुक्ति हुई तो महज 250 रुपये महीने पर उन्होंने यहां पर काम शुरू किया था. यहां आने के बाद जब उन्होंने गरीबों और असहाय लोगों को अस्पताल में परेशान और तड़पते हुए देखा तो पता नहीं क्यों इनके साथ जुड़कर इनकी मदद का जज्बा जाग उठा. यह जज्बा इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि डॉक्टर लहरी का परिवार रामकृष्ण मिशन से जुड़ा हुआ था.

अमेरिका से की डॉक्टरी
उन्होंने बताया कि परिवार में इस वक्त तो एक छोटा भाई है जो अमेरिका में इंजीनियर है. परिवार के रामकृष्ण मिशन से जुड़े होने की वजह से जरूरतमंद और गरीबों की मदद हमेशा से करते रहने वाले डॉक्टर लहरी ने यहां भी अपनी इस खासियत को जारी रखा. उन्होंने बताया कि 1974 में जब मैंने यहां ज्वाइन किया तो मेरी सैलरी भले ही कम थी लेकिन जज्बे के साथ मैंने काम जारी रखा और गरीबों की मदद कर अपनी सैलरी उन्हीं पर खर्च करने लगा. हालांकि 1997 तक पहुंचते-पहुंचते मेरी सैलरी बिना टैक्स के 84000 रुपये पहुंच गई थी और इसमें भी कई और खर्च मिला दिया जाए तो एक लाख से ज्यादा तनख्वाह मिलती थी. फिर भी 1997 में डॉ लहरी ने बीएचयू से मिलने वाली सैलरी को लेना बंद कर दिया. उन्होंने अपनी पूरी सैलेरी गरीब और जरूरतमंद लोगों में डोनेट कर दिया. हां कुछ पैसे लेते थे. जिससे वह घर का खर्च और अपना पेट भर सकें. इसके अलावा उनको सैलेरी के पैसों से कोई मतलब नहीं था.

2003 में रिटायर
डॉ लहरी का कहना है की आज का दौर बिजनेस का है. डॉ सिर्फ बिजनेस कर रहे हैं लेकिन जरूरत है ऐसे लोगों की मदद करने की जिनको सही में डॉक्टर की जरूरत है. सबसे बड़ी बात यह है कि 2003 में डॉ लहरी जब यहां से रिटायर हुए तो घर नहीं बैठे रोज सुबह 6:00 बजे उसी तरह अपने घर से निकल कर अस्पताल जाना आज भी डॉक्टर लहरी ने जारी रखा है. रिटायरमेंट के 15 साल बाद भी डॉक्टर लहरी रोज 40 से 50 पेशेंस देखते हैं. हालांकि अब वह ऑपरेशन नहीं करते लेकिन अपने जूनियर्स को ऑपरेशन के दौरान गाइड जरूर करते हैं.

न गाड़ी न साइकिल पैदल ही जाते हैं अस्पताल
सबसे बड़ी बात यह है कि आज के दौर में जब डॉक्टर बनने के साथ ही लोग महंगी महंगी गाड़ियां खरीद कर बड़े बड़े बंगलो में रहना पसंद करते हैं वही आज भी डॉक्टर लहरी अपने घर से बीएचयू आईएमएस तक की दूरी को पैदल ही पूरा करते हैं. घर से हाथ में एक काला बैग लेकर डॉ लहरी रोज सुबह पैदल निकलकर अस्पताल पहुंचते हैं. यहां आने के बाद सबसे पहले वार्ड में भर्ती अपने पेशेंट का हाल जानते हैं और हर शुक्रवार को पेशेंस को देखते भी हैं. बहुत ही साधारण जिंदगी जीने वाले डॉक्टर लहरी शुद्ध शाकाहारी हैं और इनका जीवन सेवा भाव को ही समर्पित है.

महामना हैं प्रेरणा
डॉक्टर लहरी ने कैमरे पर तो बहुत सी चीजें शेयर नहीं की लेकिन बाद में बात बात में उन्होंने बताया कि बहुत से बड़े बड़े डॉक्टर बनारस में हैं. वह भी बड़ा बन सकते थे. अमेरिका से कई बड़े हॉस्पिटल उनको कई बार ऑफर दिए लेकिन वह महामना मदन मोहन मालवीय जी से प्रेरित हैं और उनकी तरफ से गरीबों की सेवा करने को लेकर उन्हें ही अपना आदर्श मानते थे और यही वजह है कि उन्होंने अमेरिका के हॉस्पिटल्स का ऑफर ठुकरा कर महामना की बगिया में ही सेवा देना बेहतर समझा और उन गरीबों के इलाज में पूरी मदद की जिनके पास पैसे न हुआ करते थे. डॉ लहरी का कहना था बहुत से मरीज पैसे के अभाव में दम तोड़ते हैं मैं उनकी भी मदद करता हूं.

2016 में मिला पद्मश्री
रिटायरमेंट के बाद रेगुलर सुबह 6:00 बजे उठकर बीएचयू जाना और वहां दोपहर बाद ड्यूटी करके वापस आने के बाद शाम को 6:00 बजे फिर से बीएचयू पहुंचकर अपनी सेवाएं देने का काम डॉक्टर लहरी बीते 15 सालों से लगातार कर रहे हैं. शायद यही वजह है कि इनके इस सेवा भाव और गरीबों और रसायनों के प्रति इस जिम्मेदारी की बदौलत 2016 में सरकार ने इन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा.

Conclusion:वीओ-02 बस कहते हैं मैं खाता हूं और सोता हूं
इस सम्मान के मिलने के बाद भी डॉक्टर लहरी की जिंदगी में कोई असर नहीं पड़ा और आज भी पद्मश्री जैसे अवार्ड से सम्मानित डॉक्टर लहरी खुद को सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर लहरी ही कहते हैं न की पद्मश्री डॉक्टर लहरी. उनका एक तकिया कलाम है, जब उनसे आप यह पूछेंगे कि डॉक्टर लहरी कौन हैं तो उनका कहना है की डॉक्टर लहरी मैं हूं और मेरा काम है खाना और सोना.

काम करने वाले भी मानते हैं सच में भगवान
वहीं जब डॉ लहरी से मिलने के बाद हमने इनके बारे में जानने के लिए इनके कुछ करीबियों या यूं कहिए इन के साथ काम करने वाले लोगों से मुलाकात की तो सब डॉ लहरी के मुरीद दिखे. डॉ लहरी के साथ अस्पताल में उनकी मदद करने वाले डॉक्टर बैजनाथ का कहना है कि हम बीते 10 सालों से डॉक्टर लहरी के साथ काम कर रहे हैं और उनकी जैसी शख्सियत हमने नहीं देखी. एक गार्जियन की तरह वह हमेशा गाइड भी करते हैं. उनका कहना है कि थोड़े सख्त रुख कर जरूर हैं लेकिन मरीजों के प्रति उनका काफी विनम्र भाव है. पहले डांट कर किसी को भगा तो देते हैं लेकिन बाद में फिर उसने ही प्यार से उसे वापस बुलाते हैं. आई डॉक्टर लहरी के बेहद खास और उनके साथ 11 सालों से काम करने वाले डॉक्टर पटेल का कहना है कि डॉक्टर का जो भगवान रूप है. वह डॉक्टर लहरी के रूप में दिखाई देता है और यही वजह है कि इनके पास आने वाला हर पेशेंट बस यही सोच कर आता है कि डॉक्टर लहरी का हाथ लगने से ही वह ठीक हो जाएगा. वहीं जब कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर जैन से हमने बातचीत की तो उन्होंने हमें बताया कि मैं तो डॉक्टर लहरी का पड़ोसी भी हूं और ऐसी शख्सियत हमने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखी पद्मश्री जैसा सम्मान और इतना नाम कमाने के बाद भी डॉक्टर लहरी एक कमरे में रहते हैं. घर में एक अलमारी, चौकी और टीवी के अलावा कुछ भी नहीं है. गाड़ी भी नहीं रखें हैं और पैदल भी बीएचयू आते जाते हैं. जो अपने आप में यह साफ करता है कि आज के दौर में भी डॉक्टर लहरी जैसे महान डॉक्टर इस धरती पर मौजूद है, जो सिर्फ गरीबों की सेवा करना ही अपना कर्तव्य समझते हैं ना कि अपनी जरूरतों को पूरा करना.
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