वाराणसी: डॉ. लहरी ऐसे महान व्यक्तित्व के स्वामी हैं. इनके बारे में शायद कुछ भी कहने के लिए शब्द कम पड़ जाए. बीएचयू की तरफ से दिए गए एक साधारण से अपार्टमेंट के कमरे में अकेले जीवन गुजार रहे डॉ. लहरी ने न जाने कितनों की जिंदगी को संवार दिया.
75 साल की उम्र में भी जवान है डॉ.लहरी
देश के बड़े कार्डियोलॉजिस्ट सर्जन डॉ. लहरी इस वक्त भले ही 75 साल की उम्र में पहुंच गए हों, लेकिन उनके अंदर जोश और गरीब जरूरतमंदों की मदद करने का जज्बा किसी जवान से कम नहीं है. शायद यही वजह है कि रोज सुबह 6 बजे बिना किसी हिचक और बिना किसी घबराहट के ठीक उसी तरह डॉ. लहरी अपने घर से एक बैग लेकर निकल जाते हैं जैसे कि रिटायरमेंट के पहले था.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से की शुरूआत
डॉ. लहरी ने अपने जीवन के बारे में बताया कि वह कलकत्ता के रहने वाले हैं और अमेरिका में डॉक्टरी की पढ़ाई की है. इसके बाद 1974 में जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय में लेक्चरर के पद पर उनकी नियुक्ति हुई तो महज 250 रुपये महीने पर उन्होंने काम शुरू किया था.
उन्होंने बताया कि यहां आने के बाद जब उन्होंने गरीबों और असहाय लोगों को अस्पताल में परेशान और तड़पते हुए देखा तो इनकी मदद करने की सोची. यह जज्बा इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि डॉ. लहरी का परिवार रामकृष्ण मिशन से जुड़ा हुआ था.
अमेरिका से की डॉक्टरी
डॉ. लहरी ने बताया कि परिवार में इस वक्त तो एक छोटा भाई है, जो अमेरिका में इंजीनियर है. परिवार के रामकृष्ण मिशन से जुड़े होने की वजह से जरूरतमंद और गरीबों की मदद हमेशा से करते रहने वाले डॉ. लहरी ने भी अपनी इस खासियत को जारी रखा.
उन्होंने बताया कि 1974 में जब मैंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्वाइन किया तो मेरी सैलरी भले ही कम थी, लेकिन जज्बे के साथ मैंने काम जारी रखा. उन्होंने बताया कि गरीबों की मदद कर अपनी सैलरी उन्हीं पर खर्च करने लगा.
डॉ. लहरी ने कहा कि 1997 तक पहुंचते-पहुंचते उनकी सैलरी बिना टैक्स के 84 हजार रुपये पहुंच गई थी. इसमें भी कई और खर्च मिला दिया जाए तो एक लाख से ज्यादा तनख्वाह मिलती थी. फिर भी 1997 में डॉ. लहरी ने बीएचयू से मिलने वाली सैलरी को लेना बंद कर दिया. उन्होंने अपनी पूरी सैलेरी गरीब और जरूरतमंद लोगों में डोनेट कर दिया. डॉ लहरी कुछ पैसे लेते थे इससे वह घर का खर्च चलाता थे. इसके अलावा उनको सैलेरी के पैसों से कोई मतलब नहीं था.
डॉ. लहरी ने 2003 में ली रिटायरमेंट
डॉ. लहरी का कहना है की आज का दौर बिजनेस का है. डॉ. सिर्फ बिजनेस कर रहे हैं, लेकिन जरूरत है ऐसे लोगों की मदद करने की जिनको सही में डॉक्टर की जरूरत है. सबसे बड़ी बात यह है कि 2003 में डॉ. लहरी जब यहां से रिटायर हुए तो घर नहीं बैठे रोज सुबह 6 बजे उसी तरह अपने घर से निकलकर अस्पताल जाना आज भी डॉ. लहरी ने जारी रखा है. रिटायरमेंट के 15 साल बाद भी डॉ. लहरी रोज 40 से 50 मरीज देखते हैं. हालांकि अब वह ऑपरेशन नहीं करते, लेकिन अपने जूनियर्स को ऑपरेशन के दौरान गाइड जरूर करते हैं.
न गाड़ी न साइकिल पैदल ही जाते हैं अस्पताल
आज के दौर में जब डॉक्टर बनने के साथ ही लोग महंगी-महंगी गाड़ियां खरीदकर बड़े-बड़े बंगलों में रहना पसंद करते हैं. वही आज भी डॉ. लहरी अपने घर से बीएचयू आईएमएस तक की दूरी को पैदल ही पूरा करते हैं. घर से हाथ में एक काला बैग लेकर डॉ. लहरी रोज सुबह पैदल निकलकर अस्पताल पहुंचते हैं. यहां आने के बाद सबसे पहले वार्ड में भर्ती अपने मरीज का हाल जानते हैं. हर शुक्रवार को मरीज को देखते भी हैं. बहुत ही साधारण जिंदगी जीने वाले डॉ. लहरी शुद्ध शाकाहारी हैं और इनका जीवन सेवा भाव को ही समर्पित है.
महामना हैं प्रेरणा
डॉ. लहरी ने बताया कि बहुत से बड़े-बड़े डॉक्टर बनारस में हैं. वह भी बड़ा बन सकते थे. उन्होंने बताया कि अमेरिका से कई बड़े हॉस्पिटलों ने उनको कई बार ऑफर भी दिया, लेकिन वह महामना मदन मोहन मालवीय जी से प्रेरित हैं और उनकी तरफ से गरीबों की सेवा करने को लेकर उन्हें ही अपना आदर्श मानते थे. इसलिए उन्होंने अमेरिका के हॉस्पिटल्स का ऑफर ठुकरा कर महामना की बगिया में ही सेवा देना बेहतर समझा. उन गरीबों के इलाज में पूरी मदद की, जिनके पास पैसे न हुआ करते थे. डॉ लहरी का कहना था बहुत से मरीज पैसे के अभाव में दम तोड़ते हैं मैं उनकी भी मदद करता हूं.
2016 में मिला पद्मश्री
रिटायरमेंट के बाद रेगुलर सुबह 6 बजे उठकर बीएचयू जाना और वहां दोपहर बाद ड्यूटी करके वापस आने के बाद शाम को 6 बजे फिर से बीएचयू पहुंचकर अपनी सेवाएं देने का काम डॉ. लहरी बीते 15 सालों से लगातार कर रहे हैं. डॉ लहरी को 2016 में सरकार ने पद्मश्री अवार्ड से नवाजा.
बस कहते हैं- मैं खाता हूं और सोता हूं
इस सम्मान के मिलने के बाद भी डॉ. लहरी की जिंदगी में कोई असर नहीं पड़ा और आज भी पद्मश्री जैसे अवार्ड से सम्मानित डॉ. लहरी खुद को सिर्फ और सिर्फ डॉ. लहरी ही कहते हैं न की पद्मश्री डॉ. लहरी. उनका एक तकिया कलाम है, जब उनसे आप यह पूछेंगे कि डॉ. लहरी कौन हैं तो उनका कहना है की डॉ. लहरी मैं हूं और मेरा काम है खाना और सोना.
काम करने वाले भी मानते हैं सच में भगवान
डॉ. लहरी के साथ अस्पताल में उनकी मदद करने वाले डॉ. बैजनाथ का कहना है कि हम बीते 10 सालों से डॉ. लहरी के साथ काम कर रहे हैं और उनके जैसी शख्सियत हमने नहीं देखी. एक गार्जियन की तरह वह हमेशा गाइड भी करते हैं. उनका कहना है मरीजों के प्रति डॉ. लहरी का काफी विनम्र भाव है.
घर में एक अलमारी, चौकी और टीवी के अलावा कुछ भी नहीं है. गाड़ी भी नहीं रखें हैं और पैदल भी बीएचयू आते जाते हैं. डॉ. लहरी जैसे महान डॉक्टर इस धरती पर मौजूद है, जो सिर्फ गरीबों की सेवा करना ही अपना कर्तव्य समझते हैं न कि अपनी जरूरतों को पूरा करना.