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सावधान! लखनऊ की सड़कों पर घूम रहे हैं 2007 'हिस्ट्रीशीटर'

प्रदेश में कानून व्यवस्था के दुरूस्त होने के लगातार दावे किए जा रहे हैं लेकिन हकीकत में ये खोखले नजर आते हैं. प्रदेश में लगातार आपराधिक घटनाओं में संलिप्त रहने वाले हिस्ट्रीशीटर की संख्या में बढ़ोत्तरी से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है.

लखनऊ में बढ़ी हिस्ट्रीशीटरों की संख्या.
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Published : Jun 27, 2019, 12:51 PM IST

लखनऊ: भले योगी सरकार अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए तमाम दावे कर रही हो, लेकिन अपराधियों की संख्या में कोई कमी आती हुई नजर नहीं आ रही है. वहीं आपराधिक आंकड़े सरकार के इन दावों की पोल खोलते नजर आ रहे हैं. अगर बात राजधानी लखनऊ की करें तो केवल यहीं 2 हजार 7 हिस्ट्रीशीटर मौजूद हैं. इस लिस्ट में साल 2018 में जहां 40 हिस्ट्रीशीटरों का नाम जोड़ा गया था तो वहीं इस साल यह गिनती 67 तक जा पहुंची है.
सत्ता सुख भोग रहे हैं तमाम हिस्ट्रीशीटर

राजधानी लखनऊ में 2 हजार से अधिक हिस्ट्रीशीटर घूम रहे हैं. इन्हीं हिस्ट्रीशीटरों में तमाम अपराधी व्हाइट कॉलर बन गए हैं. जहां एक ओर कई हिस्ट्रीशीटर चुनाव लड़कर सांसद व विधायक बन गए हैं तो वहीं कुछ वकील बनकर कानूनी दांवपेंच कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर सपा नेता अरुण शंकर 'अन्ना' विधायक बन गए हैं. इस बार उन्होंने सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा है. अरुण शंकर शुक्ला पर दर्जनों मामले दर्ज हैं, आदतन अपराधी मानते हुए इनकी हिस्ट्री शीट भी खोली गई थी. हसनगंज थाने के अनुसार अन्ना महाराज की आज भी निगरानी की जाती है. अरुण शंकर की तरह ही अपराधों की दुनिया से राजनीति में आए दाऊद अहमद बसपा के बड़े नेता माने जाते हैं.

लखनऊ में बढ़ी हिस्ट्रीशीटरों की संख्या.
प्रदेश भर में हिस्ट्रीशीटर की लंबी लिस्ट

राजधानी के अलावा तमाम ऐसे नाम हैं जो कहने को तो हिस्ट्रीशीटर हैं लेकिन इनका रसूख किसी नेता से कम नहीं है. हिस्ट्रीशीटर से माननीयों की लिस्ट में शामिल होने वाले नामों की लंबी लिस्ट है. मुख्तार अंसारी, धनंजय सिंह, अतीक अहमद, त्रिभुवन सिंह, हरिशंकर तिवारी सहित तमाम ऐसे नाम हैं जिनकी हिस्ट्रीशीट खोली गई. वे सभी राजनीतिक गलियारों में आजाद होकर घूम रहे हैं.


हिस्ट्रीशीटर क्या है
हिस्ट्रीशीटर उन अपराधियों को माना जाता है जो आदतन अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं. तमाम कार्रवाईयों के बाद भी ये अपराध करने से बाज नहीं आते हैं. लिहाजा हिस्ट्रीशीट खोलकर इनकी निगरानी की जाती है. बीट इंचार्ज प्रतिदिन हिस्ट्रीशीटर के घर जाकर इस बात की तफ्तीश करता है कि हिस्ट्रीशीटर वहां मौजूद है या नहीं. अगर उसके बाहर जाने की सूचना मिलती है तो उस सूचना को क्रॉस चेक किया जाता है. इन हिस्ट्रीशीटरों की सालाना रिपोर्ट तैयार होती है और इस रिपोर्ट को क्षेत्राधिकारी क्रॉस चेक भी करता है.

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लखनऊ में बढ़ी हिस्ट्रीशीटरों की संख्या.

अपराधियों पर लगाम लगाने की कानूनी प्रक्रिया
यह एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके तहत लगातार अपराध में संलिप्त रहने वाले अपराधी की हिस्ट्री शीट बनाई जाती है. इसके लिए बाकायदा थानों में एक रजिस्टर होता है, जिसे रजिस्टर नंबर 8 कहते हैं. इस रजिस्टर में अपराधियों का पूरा विवरण रहता है. हर साल पुलिस इस पर अपनी राय व्यक्त करती है. एक बार हिस्ट्री शीट बन जाने के बाद आजीवन यह रिकॉर्ड थाने में मौजूद रहता है और अपराधी की निगरानी की जाती है.


चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर लखनऊ में हिस्ट्री शीट खोली गईं, लेकिन यह व्यवस्था अपना उद्देश्य पीछे छोड़ती जा रही है. एक समय था जब एक ही जैसे अपराधों की लगातार पुनरावृत्ति करने वाले अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए हिस्ट्री शीट खोली जाती थी, लेकिन बाद में राजनीतिक प्रभाव के चलते भी कई बार नियमों को ताक पर रखकर लोगों की हिस्ट्री शीट खोली गई. जिससे इसके प्रभाव में कमी आई है. हिस्ट्रीशीटर वैसे तो एक सामान्य शब्द है लेकिन पुलिस की नजर में इसका बड़ा महत्व होता है. हिस्ट्रीशीटर को सामान्य अपराधियों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. हिस्ट्री शीट खोलने का उद्देश्य था कि अपराधी की हर गतिविधि पर नजर रखते हुए उसे अपराधों से दूर रखने के प्रयास किए जाएं, ताकि समाज को अपराधियों से नुकसान न होने पाए.
- बृजलाल, पूर्व डीजीपी

लखनऊ: भले योगी सरकार अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए तमाम दावे कर रही हो, लेकिन अपराधियों की संख्या में कोई कमी आती हुई नजर नहीं आ रही है. वहीं आपराधिक आंकड़े सरकार के इन दावों की पोल खोलते नजर आ रहे हैं. अगर बात राजधानी लखनऊ की करें तो केवल यहीं 2 हजार 7 हिस्ट्रीशीटर मौजूद हैं. इस लिस्ट में साल 2018 में जहां 40 हिस्ट्रीशीटरों का नाम जोड़ा गया था तो वहीं इस साल यह गिनती 67 तक जा पहुंची है.
सत्ता सुख भोग रहे हैं तमाम हिस्ट्रीशीटर

राजधानी लखनऊ में 2 हजार से अधिक हिस्ट्रीशीटर घूम रहे हैं. इन्हीं हिस्ट्रीशीटरों में तमाम अपराधी व्हाइट कॉलर बन गए हैं. जहां एक ओर कई हिस्ट्रीशीटर चुनाव लड़कर सांसद व विधायक बन गए हैं तो वहीं कुछ वकील बनकर कानूनी दांवपेंच कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर सपा नेता अरुण शंकर 'अन्ना' विधायक बन गए हैं. इस बार उन्होंने सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा है. अरुण शंकर शुक्ला पर दर्जनों मामले दर्ज हैं, आदतन अपराधी मानते हुए इनकी हिस्ट्री शीट भी खोली गई थी. हसनगंज थाने के अनुसार अन्ना महाराज की आज भी निगरानी की जाती है. अरुण शंकर की तरह ही अपराधों की दुनिया से राजनीति में आए दाऊद अहमद बसपा के बड़े नेता माने जाते हैं.

लखनऊ में बढ़ी हिस्ट्रीशीटरों की संख्या.
प्रदेश भर में हिस्ट्रीशीटर की लंबी लिस्ट

राजधानी के अलावा तमाम ऐसे नाम हैं जो कहने को तो हिस्ट्रीशीटर हैं लेकिन इनका रसूख किसी नेता से कम नहीं है. हिस्ट्रीशीटर से माननीयों की लिस्ट में शामिल होने वाले नामों की लंबी लिस्ट है. मुख्तार अंसारी, धनंजय सिंह, अतीक अहमद, त्रिभुवन सिंह, हरिशंकर तिवारी सहित तमाम ऐसे नाम हैं जिनकी हिस्ट्रीशीट खोली गई. वे सभी राजनीतिक गलियारों में आजाद होकर घूम रहे हैं.


हिस्ट्रीशीटर क्या है
हिस्ट्रीशीटर उन अपराधियों को माना जाता है जो आदतन अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं. तमाम कार्रवाईयों के बाद भी ये अपराध करने से बाज नहीं आते हैं. लिहाजा हिस्ट्रीशीट खोलकर इनकी निगरानी की जाती है. बीट इंचार्ज प्रतिदिन हिस्ट्रीशीटर के घर जाकर इस बात की तफ्तीश करता है कि हिस्ट्रीशीटर वहां मौजूद है या नहीं. अगर उसके बाहर जाने की सूचना मिलती है तो उस सूचना को क्रॉस चेक किया जाता है. इन हिस्ट्रीशीटरों की सालाना रिपोर्ट तैयार होती है और इस रिपोर्ट को क्षेत्राधिकारी क्रॉस चेक भी करता है.

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लखनऊ में बढ़ी हिस्ट्रीशीटरों की संख्या.

अपराधियों पर लगाम लगाने की कानूनी प्रक्रिया
यह एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके तहत लगातार अपराध में संलिप्त रहने वाले अपराधी की हिस्ट्री शीट बनाई जाती है. इसके लिए बाकायदा थानों में एक रजिस्टर होता है, जिसे रजिस्टर नंबर 8 कहते हैं. इस रजिस्टर में अपराधियों का पूरा विवरण रहता है. हर साल पुलिस इस पर अपनी राय व्यक्त करती है. एक बार हिस्ट्री शीट बन जाने के बाद आजीवन यह रिकॉर्ड थाने में मौजूद रहता है और अपराधी की निगरानी की जाती है.


चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर लखनऊ में हिस्ट्री शीट खोली गईं, लेकिन यह व्यवस्था अपना उद्देश्य पीछे छोड़ती जा रही है. एक समय था जब एक ही जैसे अपराधों की लगातार पुनरावृत्ति करने वाले अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए हिस्ट्री शीट खोली जाती थी, लेकिन बाद में राजनीतिक प्रभाव के चलते भी कई बार नियमों को ताक पर रखकर लोगों की हिस्ट्री शीट खोली गई. जिससे इसके प्रभाव में कमी आई है. हिस्ट्रीशीटर वैसे तो एक सामान्य शब्द है लेकिन पुलिस की नजर में इसका बड़ा महत्व होता है. हिस्ट्रीशीटर को सामान्य अपराधियों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. हिस्ट्री शीट खोलने का उद्देश्य था कि अपराधी की हर गतिविधि पर नजर रखते हुए उसे अपराधों से दूर रखने के प्रयास किए जाएं, ताकि समाज को अपराधियों से नुकसान न होने पाए.
- बृजलाल, पूर्व डीजीपी

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लखनऊ। लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में आपराधिक घटनाओं को संज्ञान में लेते हुए योगी आदित्यनाथ ने यूपी पुलिस के आला अधिकारियों की फटकार भी लगाई। भले योगी सरकार अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए तमाम दावे कर रही हो लेकिन अपराधियों की संख्या में कोई कमी आती हुई नजर नहीं आ रही। आदतन अपराधी माने जाने वाले हिस्ट्रीशीटरों की बात करें तो राजधानी लखनऊ में 2007 हिस्ट्रीशीटर मौजूद है। इस लिस्ट में वर्ष 2019 में 67 नए हिस्ट्रीशीटर शामिल हुए हैं वहीं वर्ष 2018 में 40 हिस्ट्रीशीटर नामित किए गए।


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हिस्ट्रीशीटर उन अपराधियों को माना जाता है जो आदतन अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। तमाम कार्यवाहियों के बाद भी यह अपराधी अपराध से दुरिया नही बनते है। लिहाजा हिस्ट्रीशीट खोलकर इनकी निगरानी की जाती है। प्रतिदिन हिस्ट्रीशीटर के घर जाकर बीट इंचार्ज इस बात को पुख्ता करता है कि हिस्ट्रीशीटर मौजूद है कि नहीं, अगर उसके बाहर जाने की सूचना मिलती है तो उस सूचना का क्रॉस चेक किया जाता है इन हिस्ट्रीशीटर की सालाना रिपोर्ट तैयार होती है और इस रिपोर्ट को क्षेत्राधिकारी क्रॉस चेक भी करता है।

राजधानी लखनऊ में 2007 हिस्ट्रीशीटर घूम रहे हैं। इन्हीं हिस्ट्रीशीटर में तमाम अपराधी आज व्हाइट कॉलर बन गए हैं। कई हिस्ट्रीशीटर चुनाव लड़कर सांसद व विधायक बन गए हैं तो तमाम ने वकालत का सहारा लेकर वकील बन कानूनी दांवपेच कर रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर समाजवादी पार्टी नेता अरुण शंकर 'अन्ना' विधायक बनके माननीय हो चुके हैं और समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव 2019 में चुनाव भी लड़ा है। अरुण शंकर शुक्ला पर दर्जनों मुकदमे दर्ज हैं। आदतन अपराधी मानते हुए इनकी हिस्ट्रीशीट भी खोली गई थी। हसनगंज थाने के अनुसार अन्ना महाराज की आज भी निगरानी की जाती है। अरुण शंकर की तरह ही अपराधों की दुनिया से राजनीति में आए दाऊद अहमद बसपा के बड़े नेता माने जाते हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी के अलावा तमाम ऐसे नाम है जो कहने को तो हिस्ट्रीशीटर हैं लेकिन इनका रासूक किसी नेता से कम नहीं है। हिस्ट्रीशीटर से माननीयों की लिस्ट में शामिल होने वाले नामों की लंबी लिस्ट है उत्तर प्रदेश की बात करें तो मुख्तार अंसारी, धनंजय सिंह, अतीक अहमद, त्रिभुवन सिंह, हरिशंकर तिवारी सहित तमाम ऐसे नाम हैं जिनकी हिस्ट्रीशीट खोली गई। और आज या राजनीतिक गलियारों में आजाद पंछी की करें उड़ाने भर रहे हैं।






Conclusion:हिस्ट्रीशीटर व्यवस्था के बारे में जब पूर्व डीजीपी बृजलाल से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया किया एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके तहत लगातार अपराध में संलिप्त रहने वाले अपराधी की हिस्ट्री शीट बनाई जाती है इसके लिए बाय कायदा थानों में एक रजिस्टर होता है जिसको रजिस्टर नंबर 8 बोलते हैं उसमें अपराधियों का पूरा विवरण रहता है वह प्रतिवर्ष उस पर पुलिस अपनी राय व्यक्त करती है एक बार हिस्ट्री शीट बन जाने के बाद अजीवन या रिकॉर्ड थाने में मौजूद रहता है और अपराधी की निगरानी की जाती है।


उद्देश्य से भटक गया है हिस्ट्रीशीट खोलने की प्रथा

पड़ताल के दौरान लखनऊ पुलिस के आला अधिकारियों से जब हिस्ट्री शीट को लेकर चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर लखनऊ में हिस्ट्रीशीटर खोली गई, लेकिन यह व्यवस्था अपना उद्देश्य पीछे छोड़ती जा रहा है एक समय था जब एक ही जैसे अपराधों की लगातार पुनरावृत्ति करने वाले अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए हिस्ट्री शीट खोली जाती थी लेकिन बाद में राजनीतिक प्रभाव के चलते भी कई बार नियमों को ताक पर रखकर लोगों की हिस्ट्री शीट खोली गई। इससे हिस्ट्री शीट खोलने के प्रभाव में कमी आई है हिस्ट्रीशीटर वैसे तो एक सामान्य शब्द है लेकिन पुलिस की नजर में इसका बड़ा महत्व होता है हिस्ट्रीशीटर कुछ सामान अपराधियों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। हिस्ट्रीशीटर खोलने का उद्देश्य था कि अपराधी की हर गतिविधि पर नजर रखते हुए उसे अपराधों से दूर रखने के प्रयास किए जाएं जिससे कि समाज कोई अपराधियों से नुकसान ना होने पाए।

संवाददाता
प्रशांत मिश्रा
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