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सीतापुर: सतुवाही अमावस्या पर नैमिषारण्य तीर्थ पर उमड़ी भक्तों की भीड़

नैमिषारण्य तीर्थ पर वैशाख मास की सतुवाही अमावस्या के अवसर पर श्रद्धालुओं की खूब भीड़ देखने को मिली. परम्परा के अनुसार श्रद्धालुओं ने इस अवसर पर स्नान कर पूजन-अर्चन किया और सत्तू दान किए.

सतुवाही अमावस्या के अवसर पर नैमिषारण्य तीर्थ पर भक्तों की खूब भीड़ रही.
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Published : May 4, 2019, 1:48 PM IST

सीतापुर: वैशाख मास की सतुवाही अमावस्या के पावन पर्व पर आस्था के प्रमुख केंद्र नैमिषारण्य तीर्थ पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. इस दौरान श्रद्धालुओं ने पौराणिक चक्र तीर्थ और आदि गंगा गोमती के तट पर स्नान किया और मंदिरों, मठों में जाकर पूजन-अर्चन किया. इसके बाद श्रद्धालुओं ने परम्परा के अनुसार ब्राह्माणों और कन्याओं को सत्तू दान किया.

क्या है मान्यताएं

  • मान्यता है कि वैशाख मास भगवान विष्णु जी को काफी प्रिय है, साथ ही वैशाख मास की अमावस्या को सत्तू दान करने और प्रसाद रूप में खाने की परम्परा रही है.
  • मान्यता है कि इस दिन नैमिषारण्य, प्रयागराज, हरिद्वार, बनारस और अयोध्या आदि तीर्थो में स्नान पूजन और पितृकर्म करने के बाद सत्तू दान करने से पितरों को तृप्ति मिलती है.
  • मान्यता है कि आज के दिन जो सत्तू दान करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
    सतुवाही अमावस्या के अवसर पर नैमिषारण्य तीर्थ पर भक्तों की खूब भीड़ रही.

श्रद्धालुओं की लगी रही भीड़

  • हर बार की तरह इस बार भी सतुवाही अमावस्या के अवसर पर नैमिषारण्य तीर्थ पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का आना-जाना शुरु हो गया.
  • श्रद्धालुओं ने सबसे पहले चक्रकुंड से लेकर आदि गंगा गोमती नदी में स्नान और इसके बाद मंदिर में माथा टेककर मन्नतें मांगी.
  • इसके बाद श्रद्धालुओं ने ब्राह्माणों और कन्याओं को सत्तू दान किया.

सीतापुर: वैशाख मास की सतुवाही अमावस्या के पावन पर्व पर आस्था के प्रमुख केंद्र नैमिषारण्य तीर्थ पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. इस दौरान श्रद्धालुओं ने पौराणिक चक्र तीर्थ और आदि गंगा गोमती के तट पर स्नान किया और मंदिरों, मठों में जाकर पूजन-अर्चन किया. इसके बाद श्रद्धालुओं ने परम्परा के अनुसार ब्राह्माणों और कन्याओं को सत्तू दान किया.

क्या है मान्यताएं

  • मान्यता है कि वैशाख मास भगवान विष्णु जी को काफी प्रिय है, साथ ही वैशाख मास की अमावस्या को सत्तू दान करने और प्रसाद रूप में खाने की परम्परा रही है.
  • मान्यता है कि इस दिन नैमिषारण्य, प्रयागराज, हरिद्वार, बनारस और अयोध्या आदि तीर्थो में स्नान पूजन और पितृकर्म करने के बाद सत्तू दान करने से पितरों को तृप्ति मिलती है.
  • मान्यता है कि आज के दिन जो सत्तू दान करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
    सतुवाही अमावस्या के अवसर पर नैमिषारण्य तीर्थ पर भक्तों की खूब भीड़ रही.

श्रद्धालुओं की लगी रही भीड़

  • हर बार की तरह इस बार भी सतुवाही अमावस्या के अवसर पर नैमिषारण्य तीर्थ पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का आना-जाना शुरु हो गया.
  • श्रद्धालुओं ने सबसे पहले चक्रकुंड से लेकर आदि गंगा गोमती नदी में स्नान और इसके बाद मंदिर में माथा टेककर मन्नतें मांगी.
  • इसके बाद श्रद्धालुओं ने ब्राह्माणों और कन्याओं को सत्तू दान किया.
Intro:वैशाख मास की सतुवाही अमावस्या के पावन पर्व पर प्रदेश के सीतापुर जनपद स्थित धार्मिक आस्था के प्रमुख केंद्र नैमिषारण्य तीर्थ में सुबह 3 बजे से लेकर देर शाम तक बड़ी संख्या में विभिन्न प्रदेशों से बड़ी संख्या में आये श्रद्धालुओं ने पौराणिक चक्र तीर्थ व आदि गंगा गोमती के तट पर स्नान किया और पूजन के बाद मंदिरों व मठों में जाकर पूजन-अर्चन कर ब्राह्माणों व कन्याओं को दक्षिणा व सतुवा दान किया , इस अवसर पर हर अमावस्या की तरह आयोजित मेले में बड़ी संख्या में आस-पास के दुकानदारों ने अपनी दुकानें लगाईं , शनिवार सुबह तीन बजे से ही नैमिषारण्य में श्रद्धालुओं के आगमन का सिलसिला शुरू हो गया था जो शाम 7 बजे तक अनवरत जारी रहा , श्रद्धालुओं ने चक्रकुंड से लेकर आदि गंगा गोमती नदी में स्नान करने के बाद आदि शक्ति मां ललिता देवी मंदिर, सूत गद्दी , देव-देवेश्वर मंदिर, हनुमान गढ़ी, कालीपीठ , व्यास गद्दी , देवपुरी आदि मंदिरों में जाकर माथा टेका और पूजा-अर्चना कर मनौतियां मांगी।Body:" ये है पौराणिक मान्यता "

पौराणिक मान्यता है कि वैशाख मास भगवान विष्णु जी को काफी प्रिय है साथ ही वैशाख मास की अमावस्या को सत्तू दान करने और प्रसाद रूप में खाने की परम्परा रही है जिसके चलते इस अमावस्या को सतुवाही अमावस्या भी कहा जाता है मान्यता है कि इस दिन तीर्थ नैमिषारण्य , प्रयाग , हरिद्वार , बनारस , अयोध्या आदि तीर्थो में स्नान पूजन व पितृकर्म करने के बाद सत्तू दान करने से पितरों को तृप्ति मिलती है , सोमवार भगवान शिव व चंद्र को समर्पित दिन है इसलिये इस दिन भगवान शिव के दर्शन करने व उनकी आराधना करने से भक्तों को विशेष लाभ की प्राप्ति होगी वहीं चंद्रदेव को शास्त्रों में मन का कारक माना गया है , अतः इस दिन अमावस्या पड़ने का अर्थ यह है कि मन संबंधी दोषों के समाधान के लिये यह दिन अति उत्तमकारी है , शास्त्रों में चंद्रमा को ही समस्त दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों का निवारक व कारक माना जाता है ।

Conclusion:शनिवार सुबह तीन बजे से ही नैमिषारण्य में श्रद्धालुओं के आगमन का सिलसिला शुरू हो गया था जो शाम 7 बजे तक अनवरत जारी रहा , श्रद्धालुओं ने चक्रकुंड से लेकर आदि गंगा गोमती नदी में स्नान करने के बाद आदि शक्ति मां ललिता देवी मंदिर, सूत गद्दी , देव-देवेश्वर मंदिर, हनुमान गढ़ी, कालीपीठ , व्यास गद्दी , देवपुरी आदि मंदिरों में जाकर माथा टेका और पूजा-अर्चना कर मनौतियां मांगी। इस मौके पर श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में धार्मिक परम्परा के अनुसार सतुवा दान कर दक्षिणा दी आज मेले में जगह-जगह सतुवा की दुकानें लगी रहीं , पौराणिक मान्यता के अनुसार वैसाख माह की अमावस्या को सतुवाही अमावस्या के रूप में भी जाना जाता है और इस पर्व पर सूर्य की बढ़ती तपिश से राहत के लिए सत्तू दान का विशेष महत्व रहता है ऐसे में नैमिष में जौ का सत्तू 80 रुपये प्रति किलो वहीं चने का सत्तू 100 रुपये प्रति किलो तक की दर से बिका , आज के दिन नैमिष तीर्थ में कई जगह सत्तू बिकता दिखा ।

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