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लखनऊ: बिना ठोस कारण न ले एंटीबायोटिक्स, किडनी को कर सकती है प्रभावित - माइक्रोबायोलॉजी विभाग

डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा बियोंड एंटीबायोटिक विषय पर सीएमई का आयोजन किया गया. जैसा कि एंटीबायोटिक्स के प्रयोग के मामले में लोगों में काफी कन्फ्यूजन देखा जाता है. डॉक्टरों के मुताबिक एंटीबायोटिक्स का प्रयोग सीधे लीवर और किडनी को प्रभावित करता है.

"बियोंड एंटीबायोटिक्स" विषय पर राम मनोहर लोहिया संस्थान में सीएमई का आयोजन
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Published : Mar 2, 2019, 11:21 PM IST

लखनऊ: डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा बियोंड एंटीबायोटिक विषय पर सीएमई का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर डॉक्टर वल्लव रे चंडीगढ़ पीजीआई से रहे. उन्होंने एंटीबायोटिक और इससे रजिस्टेंस के कारणों और विचारों से अवगत कराया.

"बियोंड एंटीबायोटिक्स" विषय पर राम मनोहर लोहिया संस्थान में सीएमई का आयोजन.

इस समय एंटीबायोटिक्स के प्रयोग के मामले में लोगों में काफी दुविधा देखी जाती है. कहा जा रहा है कि एंटीबायोटिक्स का प्रयोग सीधे लीवर और किडनी को प्रभावित करता है. दूसरी तरफ आम धारणा यह भी है कि कोई भी बीमारी बिना एंटीबायोटिक्स के प्रयोग से ठीक भी नहीं हो सकती.

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इसकी जागरूकता के लिए राजस्थान में आज बियोंड एंटीबायोटिक पर एक कार्यक्रम रखा गया, जिसमें तमाम वरिष्ठजनों ने हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में एंटीबायोटिक का इतिहास बताया गया. सन 1942 से पहले कोई एंटीबयोटिक नहीं होती थी. एंटीबायोटिक के प्रयोग से बीमारियां जल्दी से तो ठीक होती हैं, लेकिन कई बार एंटीबायोटिक के अधिक प्रयोग से शरीर की बैक्टिरियाज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.

विशेषज्ञों ने बताया कि बिना डॉक्टर के परामर्श से एंटीबायोटिक के प्रयोग से बचना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये दवाएं बाजार में आसानी से उपलब्ध भी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने डाक्टरों को भी हिदायत दी कि वे बिना ठोस कारण के मरीजों को एंटीबायोटिक न दें.

लखनऊ: डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा बियोंड एंटीबायोटिक विषय पर सीएमई का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर डॉक्टर वल्लव रे चंडीगढ़ पीजीआई से रहे. उन्होंने एंटीबायोटिक और इससे रजिस्टेंस के कारणों और विचारों से अवगत कराया.

"बियोंड एंटीबायोटिक्स" विषय पर राम मनोहर लोहिया संस्थान में सीएमई का आयोजन.

इस समय एंटीबायोटिक्स के प्रयोग के मामले में लोगों में काफी दुविधा देखी जाती है. कहा जा रहा है कि एंटीबायोटिक्स का प्रयोग सीधे लीवर और किडनी को प्रभावित करता है. दूसरी तरफ आम धारणा यह भी है कि कोई भी बीमारी बिना एंटीबायोटिक्स के प्रयोग से ठीक भी नहीं हो सकती.

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इसकी जागरूकता के लिए राजस्थान में आज बियोंड एंटीबायोटिक पर एक कार्यक्रम रखा गया, जिसमें तमाम वरिष्ठजनों ने हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में एंटीबायोटिक का इतिहास बताया गया. सन 1942 से पहले कोई एंटीबयोटिक नहीं होती थी. एंटीबायोटिक के प्रयोग से बीमारियां जल्दी से तो ठीक होती हैं, लेकिन कई बार एंटीबायोटिक के अधिक प्रयोग से शरीर की बैक्टिरियाज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.

विशेषज्ञों ने बताया कि बिना डॉक्टर के परामर्श से एंटीबायोटिक के प्रयोग से बचना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये दवाएं बाजार में आसानी से उपलब्ध भी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने डाक्टरों को भी हिदायत दी कि वे बिना ठोस कारण के मरीजों को एंटीबायोटिक न दें.

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"बियोंड एंटीबायोटिक्स" विषय पर राम मनोहर लोहिया संस्थान में सीएमई का आयोजन

एंकर-इस समय एंटीबायोटिक्स के प्रयोग के मामले में लोगों में काफी कन्फ्यूजन है। कहा जा रहा है कि एंटीबायोटिक्स का प्रयोग सीधे लीवर और किडनी को प्रभावित करता है। वहीं दूसरी तरफ आमधारणा यह भी है कि कोई भी बीमारी बिना एंटीबायोटिक्स के प्रयोग से ठीक भी नहीं हो सकती। इसी के जागरूकता के लिए राजस्थान में आज ब्लॉन्ड एंटीबायोटिक पर एक कार्यक्रम रखा गया जिसमें तमाम वरिष्ठ जनों ने क्रम में हिस्सा लिया।

वी.ओ- डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा बियोंड एंटीबायोटिक विषय पर सीएमई का आयोजन किया गया कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर डॉक्टर वल्लव रे चंडीगढ़ पीजीआई से रहे उन्होंने एंटीबायोटिक और इससे रजिस्टेंस के कारणों और विचारों से अवगत कराया
इस कार्यक्रम मे एंटीबायोटिक का इतिहास बताया गया।सन 1942 से पहले कोई एंटीबयोटिक नहीं होती थी। एंटीबायोटिक के प्रयोग से बीमारियां जल्दी से तो ठीक होती हैं लेकिन कई बार एंटीबायोटिक के अधिक प्रयोग से शरीर की बैक्टिरियाज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। विशेषज्ञों ने बताया  की बिना डाक्टर के परामर्श से एंटीबायोटिक के प्रयोग से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ये दवाएं बाजार में आसानी से उपलब्ध भी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने डाक्टरों को भी हिदायत दी कि वे बिना ठोस कारण के मरीजों को एंटीबायोटिक ना दें।

बाइट1-डॉ. सुब्रत चंद्रा, एम. एस,लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान
बाइट2-प्रो. ज्योत्सना अग्रवाल, विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी विभाग ,आर.एम.एल.आई.एम.एस




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