लखनऊ: डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा बियोंड एंटीबायोटिक विषय पर सीएमई का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर डॉक्टर वल्लव रे चंडीगढ़ पीजीआई से रहे. उन्होंने एंटीबायोटिक और इससे रजिस्टेंस के कारणों और विचारों से अवगत कराया.
इस समय एंटीबायोटिक्स के प्रयोग के मामले में लोगों में काफी दुविधा देखी जाती है. कहा जा रहा है कि एंटीबायोटिक्स का प्रयोग सीधे लीवर और किडनी को प्रभावित करता है. दूसरी तरफ आम धारणा यह भी है कि कोई भी बीमारी बिना एंटीबायोटिक्स के प्रयोग से ठीक भी नहीं हो सकती.
इसकी जागरूकता के लिए राजस्थान में आज बियोंड एंटीबायोटिक पर एक कार्यक्रम रखा गया, जिसमें तमाम वरिष्ठजनों ने हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में एंटीबायोटिक का इतिहास बताया गया. सन 1942 से पहले कोई एंटीबयोटिक नहीं होती थी. एंटीबायोटिक के प्रयोग से बीमारियां जल्दी से तो ठीक होती हैं, लेकिन कई बार एंटीबायोटिक के अधिक प्रयोग से शरीर की बैक्टिरियाज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.
विशेषज्ञों ने बताया कि बिना डॉक्टर के परामर्श से एंटीबायोटिक के प्रयोग से बचना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये दवाएं बाजार में आसानी से उपलब्ध भी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने डाक्टरों को भी हिदायत दी कि वे बिना ठोस कारण के मरीजों को एंटीबायोटिक न दें.