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अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 'रो बनाम वेड' फैसले को पलटा, गर्भपात कराना हुआ गैरकानूनी

अमेरिका में गर्भपात को लेकर संवैधानिक संरक्षण खत्म हो गया है. अब यह गैरकानूनी हो जाएगा. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. अमेरिकी समाज को दुनिया में सबसे अधिक प्रगतिशील समझा जाता है, जहां महिलाएं गर्भपात कराने को बुरा नहीं समझती हैं, बल्कि वे इसे अपना मौलिक व संवैधानिक अधिकार मानती हैं. लेकिन इस फैसले ने उनकी इस सोच पर तुषारापात किया है.

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Published : Jun 24, 2022, 10:28 PM IST

वाशिंगटन : अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने 50 साल पहले के रो बनाम वेड मामले में दिए गए फैसले को पलटते हुए गर्भपात के लिए संवैधानिक संरक्षण को समाप्त कर दिया है. शुक्रवार को हुए इस घटनाक्रम से लगभग आधे राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध लगने की उम्मीद है. यह निर्णय कुछ साल पहले तक अकल्पनीय था. उच्चतम न्यायालय का फैसला गर्भपात विरोधियों के दशकों के प्रयासों को सफल बनाने वाला है.

न्यायमूर्ति सैमुअल अलिटो की एक मसौदा राय के आश्चर्यजनक ढंग से लीक होने के एक महीने से अधिक समय बाद यह फैसला आया है. इस फैसले के संबंध में एक महीने पहले न्यायाधीश की यह मसौदा राय लीक हो गई थी कि अदालत गर्भपात को मिले संवैधानिक संरक्षण को समाप्त कर सकती है. मसौदा राय के लीक होने के बाद अमेरिका में लोग सड़कों पर उतर आए थे.

अदालत का फैसला अधिकतर अमेरिकियों की इस राय के विपरीत है कि 1973 के रो बनाम वेड फैसले को बरकरार रखा चाहिए जिसमें कहा गया था कि गर्भपात कराना या न कराना, यह तय करना महिलाओं का अधिकार है. इससे अमेरिका में महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार मिल गया था. सैमुअल अलिटो ने शुक्रवार को आए फैसले में लिखा कि गर्भपात के अधिकार की पुन: पुष्टि करने वाला 1992 का फैसला गलत था जिसे पलटा जाना चाहिए.

दरअसल इस तरह के कानून का उद्देश्य यह था कि भ्रूण के कार्डिएक टिश्यू के धड़कने का पता चलने के बाद गर्भपात कराना संभव ना हो सके. कानून के समर्थक इसी बात का हवाला दे रहे थे. इसके अलावा ईसाई धर्म में गर्भपात को लेकर भी अलग-अलग मत हैं. कुछ लोग आज भी मानते हैं कि गर्भपात किसी की हत्या के समान है. वहीं कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्म गुरु पोप फ्रांसिस ने साल 2015 में कहा था कि गर्भपात कराने वाल महिलाओं को माफ किया जाना चाहिए. चर्च गर्भपात को पाप मानता है लेकिन अगर अब गर्भपात कराने वाली महिलाएं और इस काम में उनकी मदद करने वाले इसे स्वीकार कर लें तो उन्हें माफ किया जा सकता है.

अभी तक कि परंपरा यही है कि गर्भपात कराने वाली महिला खुद-ब-खुद कैथोलिक चर्च द्वारा बहिष्कृत कर दी जाती है. उस पर लगी पाबंदी तभी हटती है, जब कोई बिशप इसकी अनुमति देता है. वैटिकन ने तब जारी किये गए एक बयान में कहा था, "गर्भपात के गुनाह को माफ करने का अर्थ गर्भपात का समर्थन करना या इसके गंभीर नतीजों को कम करके आंकना नहीं है." पोप ने कहा था, "कई महिलाओं को लगता है कि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था,लिहाज़ा उनकी मजबूरियों को समझते हुए ये छूट दी गई है."

कानून के विरोधियों ने क्या कहा था- अमेरिकी समाज को दुनिया में सबसे अधिक प्रगतिशील समझा जाता है, जहां महिलाएं गर्भपात कराने को बुरा नहीं समझती हैं, बल्कि वे इसे अपना मौलिक व संवैधानिक अधिकार मानती हैं और उनका पूरा यकीन था कि कोई कानून बनाकर उनसे ये हक़ छीना नहीं जा सकता. संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से लेकर महिला संगठन तक सड़क पर उतर गए थे.

वाशिंगटन : अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने 50 साल पहले के रो बनाम वेड मामले में दिए गए फैसले को पलटते हुए गर्भपात के लिए संवैधानिक संरक्षण को समाप्त कर दिया है. शुक्रवार को हुए इस घटनाक्रम से लगभग आधे राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध लगने की उम्मीद है. यह निर्णय कुछ साल पहले तक अकल्पनीय था. उच्चतम न्यायालय का फैसला गर्भपात विरोधियों के दशकों के प्रयासों को सफल बनाने वाला है.

न्यायमूर्ति सैमुअल अलिटो की एक मसौदा राय के आश्चर्यजनक ढंग से लीक होने के एक महीने से अधिक समय बाद यह फैसला आया है. इस फैसले के संबंध में एक महीने पहले न्यायाधीश की यह मसौदा राय लीक हो गई थी कि अदालत गर्भपात को मिले संवैधानिक संरक्षण को समाप्त कर सकती है. मसौदा राय के लीक होने के बाद अमेरिका में लोग सड़कों पर उतर आए थे.

अदालत का फैसला अधिकतर अमेरिकियों की इस राय के विपरीत है कि 1973 के रो बनाम वेड फैसले को बरकरार रखा चाहिए जिसमें कहा गया था कि गर्भपात कराना या न कराना, यह तय करना महिलाओं का अधिकार है. इससे अमेरिका में महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार मिल गया था. सैमुअल अलिटो ने शुक्रवार को आए फैसले में लिखा कि गर्भपात के अधिकार की पुन: पुष्टि करने वाला 1992 का फैसला गलत था जिसे पलटा जाना चाहिए.

दरअसल इस तरह के कानून का उद्देश्य यह था कि भ्रूण के कार्डिएक टिश्यू के धड़कने का पता चलने के बाद गर्भपात कराना संभव ना हो सके. कानून के समर्थक इसी बात का हवाला दे रहे थे. इसके अलावा ईसाई धर्म में गर्भपात को लेकर भी अलग-अलग मत हैं. कुछ लोग आज भी मानते हैं कि गर्भपात किसी की हत्या के समान है. वहीं कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्म गुरु पोप फ्रांसिस ने साल 2015 में कहा था कि गर्भपात कराने वाल महिलाओं को माफ किया जाना चाहिए. चर्च गर्भपात को पाप मानता है लेकिन अगर अब गर्भपात कराने वाली महिलाएं और इस काम में उनकी मदद करने वाले इसे स्वीकार कर लें तो उन्हें माफ किया जा सकता है.

अभी तक कि परंपरा यही है कि गर्भपात कराने वाली महिला खुद-ब-खुद कैथोलिक चर्च द्वारा बहिष्कृत कर दी जाती है. उस पर लगी पाबंदी तभी हटती है, जब कोई बिशप इसकी अनुमति देता है. वैटिकन ने तब जारी किये गए एक बयान में कहा था, "गर्भपात के गुनाह को माफ करने का अर्थ गर्भपात का समर्थन करना या इसके गंभीर नतीजों को कम करके आंकना नहीं है." पोप ने कहा था, "कई महिलाओं को लगता है कि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था,लिहाज़ा उनकी मजबूरियों को समझते हुए ये छूट दी गई है."

कानून के विरोधियों ने क्या कहा था- अमेरिकी समाज को दुनिया में सबसे अधिक प्रगतिशील समझा जाता है, जहां महिलाएं गर्भपात कराने को बुरा नहीं समझती हैं, बल्कि वे इसे अपना मौलिक व संवैधानिक अधिकार मानती हैं और उनका पूरा यकीन था कि कोई कानून बनाकर उनसे ये हक़ छीना नहीं जा सकता. संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से लेकर महिला संगठन तक सड़क पर उतर गए थे.

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