नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आम आदमी पार्टी नेता और सांसद राघव चड्ढा की राज्यसभा से उनके निलंबन को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से मामले में अदालत की सहायता करने का अनुरोध किया. शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले प्रतिवादी (राज्यसभा सचिवालय) को नोटिस जारी करें और 30 अक्टूबर 2023 को वापस करें.
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और अधिवक्ता शादान फरासत ने शीर्ष अदालत के समक्ष चड्ढा का प्रतिनिधित्व किया. सुनवाई के दौरान, द्विवेदी ने तर्क दिया कि पिछले 75 वर्षों में, उन्हें 11 ऐसे मामले मिले हैं, जहां प्रस्ताव रखने वाले सदस्यों में ऐसे सदस्यों के नाम शामिल थे, जो इच्छुक नहीं थे. इनमें से किसी भी मामले में ऐसा नहीं किया गया और उनके नाम ही हटा दिये गये. द्विवेदी ने अन्य मामलों का विवरण दिया, जहां राज्यसभा सदस्यों ने उन सांसदों के नाम जोड़े जो इच्छुक नहीं थे और बाद में उनके नाम प्रस्तावों से हटा दिए गए.
फरासत ने प्रस्तुत किया कि यदि शक्ति केवल सत्र के लिए है, तो यह उससे आगे नहीं बढ़ सकती है और अंतर्निहित शक्तियों को सत्र के बाहर तक नहीं बढ़ाया जा सकता है. चड्ढा को 11 अगस्त को नियमों का घोर उल्लंघन, कदाचार, उद्दंड रवैया और अपमानजनक आचरण के लिए संसद के उच्च सदन से निलंबित कर दिया गया था. उनके खिलाफ कार्रवाई चार सांसदों - सस्मित पात्रा, एस फांगनोन कोन्याक, एम थंबीदुरई और नरहरि अमीन द्वारा प्रस्तुत शिकायतों के जवाब में हुई.
सांसदों ने उन पर उनकी सहमति के बिना एक प्रस्ताव में उनका नाम शामिल करने का आरोप लगाया और उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के समक्ष शिकायत दर्ज की गई. उनके नाम कथित तौर पर चड्ढा द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 का अध्ययन करने के लिए एक चयन समिति के गठन की मांग वाले प्रस्ताव पर जोड़े गए थे.