नई दिल्ली : यूपी में बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से तीन दिन में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से दाखिल की गई याचिका पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वह विध्वंस पर रोक नहीं लगा सकता है. अदालत ने कहा कि 'सबकुछ निष्पक्ष होना चाहिए' और अधिकारियों को कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए. मामले में अगली सुनवाई मंगलवार को होगी.
न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की पीठ ने कहा कि नागरिकों में यह भावना होनी चाहिए कि देश में कानून का शासन है. पीठ ने कहा, 'सबकुछ निष्पक्ष होना चाहिए. हम अधिकारियों से कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने की आशा करते हैं.' पीठ ने कहा, 'इस दौरान हम उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करें? उनके प्रति हमारे कुछ कर्तव्य हैं. इस दौरान हमें उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए. यह स्पष्ट है कि वे भी समाज का हिस्सा हैं. जब किसी को कुछ शिकायतें होती हैं, तो उन्हें उनका समाधान करने का मौका मिलना चाहिए. यदि अदालत उन्हें बचाने नहीं आएंगी तो यह ठीक नहीं होगा. सब कुछ निष्पक्ष होना चाहिए.'
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह विध्वंस पर रोक नहीं लगा सकती, लेकिन इतना कह सकती है कि ऐसी कार्रवाई कड़ी कानूनी प्रक्रिया के तहत होनी चाहिए. न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा, 'हम न्यायाधीश होते हुए भी समाज का हिस्सा हैं. हम भी देखते हैं कि क्या हो रहा है. कभी-कभी हम भी अपनी धारणा बना लेते हैं.'
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कानपुर व प्रयागराज नगर निकायों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया है और एक मामले में तो अगस्त 2020 में विध्वंस का नोटिस दिया गया था. मेहता ने कहा कि कोई भी पीड़ित पक्ष अदालत के समक्ष पेश नहीं हुआ है, बल्कि एक मुस्लिम निकाय जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अदालत का रुख करके यह आदेश देने की अपील की है कि विध्वंस नहीं होना चाहिए.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं सीयू सिंह, हुजेफा अहमदी और नित्य राम कृष्णन ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारियों की तरफ से बयान जारी किए जा रहे हैं और कथित दंगा आरोपियों को घर खाली करने का मौका दिए बगैर कार्रवाई की जा रही है.
शीर्ष अदालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को यह निर्देश देने की अपील की गई है कि राज्य में हाल में हुई हिंसा के कथित आरोपियों की संपत्तियों को नहीं गिराया जाए. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस तरह के अवैध उपायों को अपनाना स्पष्ट रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, खासकर उस सूरत में, जब शीर्ष अदालत वर्तमान मामले की सुनवाई कर रही हो.
इसमें कहा गया है, 'मौजूदा मामले में यह ध्यान देने योग्य है कि इस माननीय न्यायालय ने उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में समान परिस्थितियों में एक दंडात्मक उपाय के तौर पर किए जा रहे विध्वंस पर रोक लगाने का आदेश दिया था. इसलिए, यह देखते हुए कि उपरोक्त मामला फिलहाल इस माननीय न्यायालय के समक्ष लंबित है, ऐसे उपायों पर अमल करना और भी खतरनाक है.'
याचिका के अनुसार, 'किसी भी तरह का विध्वंस अभियान स्पष्ट रूप से निर्धारित कानूनों के तहत और केवल इस न्यायालय द्वारा अनिवार्य रूप से प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को उचित नोटिस व सुनवाई का अवसर दिए जाने के बाद ही चलाया जाना चाहिए.' कानपुर में तीन जून को हुई हिंसा का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है, 'उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश जारी करें कि कानपुर जिले में किसी भी आपराधिक मामले में किसी भी आरोपी की आवासीय या वाणिज्यिक संपत्ति के खिलाफ निर्धारित कानून के दायरे से बाहर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए.'
संगठन ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की भी मांग की है कि किसी भी तरह का विध्वंस अभियान स्पष्ट रूप से निर्धारित कानूनों के अनुसार और प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को उचित नोटिस व सुनवाई का अवसर दिए जाने के बाद ही चलाया जाए.
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