कुशीनगर: नेपाल के जनकपुर से होकर अयोध्या के लिए निकली शालिग्राम शिलाएं उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के सलेमगढ़ टोल प्लाजा पर पहुंच गईं. यहां पर सुबह से शिलाओं का इंतजार किया जा रहा था. देर शाम पहुंची शिलाओं को देखने में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े और जोरदार स्वागत किया. यहां पर शिलाओं का वैदिक मंत्रों के साथ जोरदार स्वागत किया गया. इस दौरान जय श्रीराम के नारों से पूरा सलेमगढ़ टोल प्लाजा का क्षेत्र गूंज उठा. सलेमगढ़ टोल प्लाजा पर 32 पुरोहितों ने शालिग्राम शिलाखंडों की पूजा अर्चना की. 5 पुरोहितों ने शिलाखंडों पर पूजा सामग्री चढ़ाई.
संस्कृत विद्यालय से बुलाए गए 11 पंडितों ने शालिग्राम शिला के आने पर मंत्रोच्चार किया. इसमें 11 पुरोहितों ने शंख बजाए और पांच ने हरिघंट. पूजा के वक्त बड़ी संख्या में अन्य पंडित और श्रद्धालु उपस्थित रहे. पूजन के बाद प्रसाद का वितरण किया गया. इस दौराम सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस के जवान भी तैनात रहे. नेपाल के पोखरा से लाई जा रही इन दोनों शिलाखंडों को तराश कर भगवान राम व सीता माता की मूर्ति बनेगी. जिन्हें अयोध्या के राम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा.
6 करोड़ वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाएं
इन पत्थरों को नेपाल के पोखरा से निकलने वाली गंडक नदी से निकाला गया है. इस नदी को शालिग्राम नदी के नाम से भी जाना जाता है. नेपाल की गंडक नदी से दो बड़े आकर वाले पत्थरों को निकाला गया है, जिनको जानकारों ने 6 करोड़ से भी ज्यादा पुराना बताया है. इन शिलाखंडों की विधिवत पूजन अर्चन कर बड़े ट्रक (कंटेनर) के जरिए मां सीता की जन्मभूमि जनकपुर से होते हुए भारत लाया जा रहा.
शालिग्राम शिला लाने का सफर 26 जनवरी से हुआ शुरू
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शालिग्राम पत्थर को लाने का सफर 26 जनवरी से ही शुरू हुआ. नेपाल से बिहार होते हुए शालिग्राम पत्थरों की खेप मंगलवार सुबह उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पहुंचना था लेकिन इसमें देरी हो गई. उत्तर प्रदेश के चार जिलों की सीमा से होते हुए यह अयोध्या तक जाएगी. भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में बन रहे भव्य मंदिर में मूर्ति निर्माण का कार्य नेपाल से लाए जाने वाले शालिग्राम पत्थरों से होना है. कंटेनर की मदद से 6 करोड़ साल से भी ज्यादा पुराने दो बड़े शालिग्राम पत्थरों को नेपाल से बिहार के रास्ते उत्तर प्रदेश लाया जा रहा है. नेपाल सीमा से लाए जा रहे दो पत्थरों में एक का वजन 26 टन और दूसरे का 14 टन बताया जा रहा है, जिसे विधिवत पूजन अर्चन के बाद नेपाल की सीमा से बिहार के रास्ते दो दिन का समय लग चुका है. दो फरवरी तक शिलाएं अयोध्या में पहुंचेंगी.
शालिग्राम शिला का क्या है महत्व
वैज्ञानिक तौर पर शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है. धार्मिक आधार पर इसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है. शालिग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है. वैष्णव (हिंदू) पवित्र नदी गंडकी में पाया जानेवाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पूजते हैं. शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रसिद्ध नाम है.
नेपाल सरकार ने दिसंबर में दी थी मंजूरी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व नेपाली उप प्रधानमंत्री ने इन पवित्र शिलाओं को अयोध्या भेजे जाने के बारे में आगे बताया है कि 'मैं जानकी मंदिर के महंत और मेरे सहयोगी राम तपेश्वर दास के साथ अयोध्या गया था. हमारी ट्रस्ट के अधिकारियों और अयोध्या के अन्य संतों के साथ एक बैठक हुई थी. यह निर्णय लिया गया कि नेपाल की काली गंडकी नदी में पत्थर उपलब्ध होने पर उसी से रामलला की मूर्ति बनाना अच्छा रहेगा'. नेपाल सरकार ने पिछले महीने ही इन शिलाओ को अयोध्या भेजने की मंजूरी दी थी. अब इन्हें अयोध्या ले जाया जा रहा है.