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आजादी के 75 साल : स्वतंत्रता की कहानी में सेवाग्राम आश्रम का अहम योगदान - सेवाग्राम आश्रम

जमनालाल बजाज के अनुरोध पर जब महात्मा गांधी पलकवाड़ी (आज का वर्धा) आए, तो वे पहले सेवाग्राम मार्ग पर बने सत्याग्रही आश्रम में रहे. जनवरी 1935 में वे मगनवाड़ी में रहे. वहीं, बापू ने आश्रम के लिए एक शांत जगह चुनने की जिम्मेदारी मिस स्लेड उर्फ मीरा बेन को दी. कहा जाता है कि सेवाग्राम के लिए जगह मीराबेन ने चुनी थी.

SEVAGRAM ASHRAM STORY OF INDIAN independence
SEVAGRAM ASHRAM STORY OF INDIAN independence
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Published : Oct 2, 2021, 5:15 AM IST

Updated : Oct 2, 2021, 6:00 AM IST

मुंबई: साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा के लिए निकलते समय महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाने तक साबरमती नहीं लौटने का फैसला किया था. इस यात्रा के बाद अंग्रेजों ने गांधीजी को कैद कर लिया. करीब दो साल की कैद के बाद जब गांधीजी बाहर आए तो उन्होंने देश में एक गांव को स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बनाने का फैसला किया.

नई तालीम, सेवाग्राम आश्रम के डॉ. शिवचरण ठाकुर के मुताबिक भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए गांधीजी ने पूरे देश की यात्रा की. इस यात्रा के बाद गांधीजी ने फैसला किया कि जब तक देश को आजादी नहीं मिल जाती तब तक वे साबरमती नहीं लौटेंगे. इसके बाद यह चर्चा होने लगी कि गांधीजी को कहां रखा जाए. मामले की गंभीरता को देखते हुए उस समय जमनालाल बजाज ने उन्हें वर्धा में रहने का सुझाव दिया. उन्होंने गांधीजी को इस जगह के महत्व के बारे में आश्वस्त किया.

भारतीय स्वतंत्रता की कहानी में सेवाग्राम आश्रम का अहम योगदान

जमनालाल बजाज के अनुरोध पर जब महात्मा गांधी पलकवाड़ी (आज का वर्धा) आए, तो वे पहले सेवाग्राम मार्ग पर बने सत्याग्रही आश्रम में रहे. जनवरी 1935 में वे मगनवाड़ी में रहे. वहीं, बापू ने आश्रम के लिए एक शांत जगह चुनने की जिम्मेदारी मिस स्लेड उर्फ मीरा बेन को दी. कहा जाता है कि सेवाग्राम के लिए जगह मीराबेन ने चुनी थी.

30 अप्रैल 1936 को महात्मा गांधी पहली बार सेवाग्राम आश्रम गए थे. इससे पहले 17 अप्रैल को उन्होंने तत्कालीन गांव शेगांव सेवाग्राम के लोगों से मुलाकात की थी. 30 अप्रैल को जब वह पहुंचे तो वहां कोई झोपड़ी नहीं होने से वह अमरूद के बगीचे और एक कुएं के पास एक झोपड़ी में रुके.

वह यहां करीब पांच दिन रहे. फिर उन्होंने जमनालाल बजाज से एक झोपड़ी बनाने को कहा. बापू चाहते थे कि यह झोपड़ी आम आदमी के घर की तरह हो. उन्होंने सुझाव दिया था कि झोपड़ी के निर्माण की लागत 100 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए और स्थानीय संसाधनों और स्थानीय मजदूरों का उपयोग करके झोपड़ी का निर्माण किया जाना चाहिए.

उसके बाद वह 5 मई 1936 को खादी यात्रा के लिए निकले. वह 16 जून 1936 को लौटे. तब आदि निवास बनकर तैयार था. घर को मीरा बेन और बलवंत सिंह ने डेढ़ महीने में ग्रामीणों के सहयोग से बनवाया था. इसे बनाने में 499 रुपये का खर्च आया था. यह जानकर बापू परेशान हो गए. हालांकि जमनालाल बजाज ने बापू को समझा दिया था.

इसके बाद 1937 के अंत में बापू उस झोपड़ी में चले गए जहां मीरा बेन रहती थीं. वही कुटी आज बापू कुटी के नाम से जानी जाती है. प्रारंभ में झोपड़ी छोटी थी. बापू के वहां रहने के बाद इसको बढ़ाया गया. इस झोंपड़ी में एक स्नानागार और एक दवा केंद्र बनाया गया था. यहीं पर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी कई अहम बैठकें हुई थीं. सेवाग्राम स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य राजधानी बन गया था. यहीं से सारे अहम फैसले लिए गए. गांधीजी से मिलने और बापू से मार्गदर्शन लेने के लिए सभी बड़े नेता सेवाग्राम आते थे.

इस दौरान बा को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि सेवाग्राम में कोई अलग झोपड़ी नहीं थी. इसी को ध्यान में रखते हुए बजाज ने बा के लिए एक अलग झोपड़ी बनाई. बापू द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न वस्तुएं आज भी सेवाग्राम में रखी हैं. एक छोटी सी आलमारी में बापू की लालटेन, रामायण, बाइबिल और कुरान रखी हुई है. इसके अलावा यहां कंकड़ कागज के बाट, नकली टूथपिक, थूकदान, पेन और पेंसिल स्टैंड, तीन बंदरों की मूर्तियां, सुई-धागा, बॉक्स-चरखा, माला, लकड़ी की ट्रॉफी, मार्बल पेपरवेट, लिम्ब स्क्रबिंग हैं. लॉर्ड लिन लिथ गो ने सेवाग्राम में एक हॉटलाइन फोन स्थापित किया था, ताकि बापू से कभी भी संपर्क किया जा सके. इस हॉटलाइन का उपयोग महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा के लिए किया जाता था. भारत छोड़ो का नारा पहली बार सेवाग्राम आश्रम से ही दिया गया था.

पढ़ें: अंग्रेजों के खिलाफ पयहस्सी राजा के संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता

इसके बाद भी यह दर्ज है कि बापू सेवाग्राम आश्रम आए थे, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां के घटनाक्रम बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं. सेवाग्राम आश्रम देश की आजादी की ओर समग्र यात्रा के केंद्र में रहा है. देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति का एक महत्वपूर्ण दौर देखने वाला यह आश्रम आज भी पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है. यहां आने वाले सभी लोगों के मन में देशभक्ति की भावना अपने आप बढ़ जाती है.

मुंबई: साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा के लिए निकलते समय महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाने तक साबरमती नहीं लौटने का फैसला किया था. इस यात्रा के बाद अंग्रेजों ने गांधीजी को कैद कर लिया. करीब दो साल की कैद के बाद जब गांधीजी बाहर आए तो उन्होंने देश में एक गांव को स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बनाने का फैसला किया.

नई तालीम, सेवाग्राम आश्रम के डॉ. शिवचरण ठाकुर के मुताबिक भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए गांधीजी ने पूरे देश की यात्रा की. इस यात्रा के बाद गांधीजी ने फैसला किया कि जब तक देश को आजादी नहीं मिल जाती तब तक वे साबरमती नहीं लौटेंगे. इसके बाद यह चर्चा होने लगी कि गांधीजी को कहां रखा जाए. मामले की गंभीरता को देखते हुए उस समय जमनालाल बजाज ने उन्हें वर्धा में रहने का सुझाव दिया. उन्होंने गांधीजी को इस जगह के महत्व के बारे में आश्वस्त किया.

भारतीय स्वतंत्रता की कहानी में सेवाग्राम आश्रम का अहम योगदान

जमनालाल बजाज के अनुरोध पर जब महात्मा गांधी पलकवाड़ी (आज का वर्धा) आए, तो वे पहले सेवाग्राम मार्ग पर बने सत्याग्रही आश्रम में रहे. जनवरी 1935 में वे मगनवाड़ी में रहे. वहीं, बापू ने आश्रम के लिए एक शांत जगह चुनने की जिम्मेदारी मिस स्लेड उर्फ मीरा बेन को दी. कहा जाता है कि सेवाग्राम के लिए जगह मीराबेन ने चुनी थी.

30 अप्रैल 1936 को महात्मा गांधी पहली बार सेवाग्राम आश्रम गए थे. इससे पहले 17 अप्रैल को उन्होंने तत्कालीन गांव शेगांव सेवाग्राम के लोगों से मुलाकात की थी. 30 अप्रैल को जब वह पहुंचे तो वहां कोई झोपड़ी नहीं होने से वह अमरूद के बगीचे और एक कुएं के पास एक झोपड़ी में रुके.

वह यहां करीब पांच दिन रहे. फिर उन्होंने जमनालाल बजाज से एक झोपड़ी बनाने को कहा. बापू चाहते थे कि यह झोपड़ी आम आदमी के घर की तरह हो. उन्होंने सुझाव दिया था कि झोपड़ी के निर्माण की लागत 100 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए और स्थानीय संसाधनों और स्थानीय मजदूरों का उपयोग करके झोपड़ी का निर्माण किया जाना चाहिए.

उसके बाद वह 5 मई 1936 को खादी यात्रा के लिए निकले. वह 16 जून 1936 को लौटे. तब आदि निवास बनकर तैयार था. घर को मीरा बेन और बलवंत सिंह ने डेढ़ महीने में ग्रामीणों के सहयोग से बनवाया था. इसे बनाने में 499 रुपये का खर्च आया था. यह जानकर बापू परेशान हो गए. हालांकि जमनालाल बजाज ने बापू को समझा दिया था.

इसके बाद 1937 के अंत में बापू उस झोपड़ी में चले गए जहां मीरा बेन रहती थीं. वही कुटी आज बापू कुटी के नाम से जानी जाती है. प्रारंभ में झोपड़ी छोटी थी. बापू के वहां रहने के बाद इसको बढ़ाया गया. इस झोंपड़ी में एक स्नानागार और एक दवा केंद्र बनाया गया था. यहीं पर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी कई अहम बैठकें हुई थीं. सेवाग्राम स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य राजधानी बन गया था. यहीं से सारे अहम फैसले लिए गए. गांधीजी से मिलने और बापू से मार्गदर्शन लेने के लिए सभी बड़े नेता सेवाग्राम आते थे.

इस दौरान बा को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि सेवाग्राम में कोई अलग झोपड़ी नहीं थी. इसी को ध्यान में रखते हुए बजाज ने बा के लिए एक अलग झोपड़ी बनाई. बापू द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न वस्तुएं आज भी सेवाग्राम में रखी हैं. एक छोटी सी आलमारी में बापू की लालटेन, रामायण, बाइबिल और कुरान रखी हुई है. इसके अलावा यहां कंकड़ कागज के बाट, नकली टूथपिक, थूकदान, पेन और पेंसिल स्टैंड, तीन बंदरों की मूर्तियां, सुई-धागा, बॉक्स-चरखा, माला, लकड़ी की ट्रॉफी, मार्बल पेपरवेट, लिम्ब स्क्रबिंग हैं. लॉर्ड लिन लिथ गो ने सेवाग्राम में एक हॉटलाइन फोन स्थापित किया था, ताकि बापू से कभी भी संपर्क किया जा सके. इस हॉटलाइन का उपयोग महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा के लिए किया जाता था. भारत छोड़ो का नारा पहली बार सेवाग्राम आश्रम से ही दिया गया था.

पढ़ें: अंग्रेजों के खिलाफ पयहस्सी राजा के संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता

इसके बाद भी यह दर्ज है कि बापू सेवाग्राम आश्रम आए थे, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां के घटनाक्रम बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं. सेवाग्राम आश्रम देश की आजादी की ओर समग्र यात्रा के केंद्र में रहा है. देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति का एक महत्वपूर्ण दौर देखने वाला यह आश्रम आज भी पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है. यहां आने वाले सभी लोगों के मन में देशभक्ति की भावना अपने आप बढ़ जाती है.

Last Updated : Oct 2, 2021, 6:00 AM IST
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