नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकारों को वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदमों पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने उन्हें एक हफ्ते के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. पीठ में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति पी के मिश्रा भी शामिल थे.
पीठ ने कहा कि पराली जलाना दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण है. शीर्ष अदालत ने पहले दिल्ली में और उसके आसपास वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से रिपोर्ट मांगी थी. सीएक्यूएम के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में 15 सितंबर के बाद पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में क्रमश: लगभग 56 प्रतिशत और 40 प्रतिशत की कमी आई है.
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Delhi-NCR air pollution | The Supreme Court asks Delhi, Punjab, Uttar Pradesh, Haryana, and Rajasthan to file affidavits on the steps taken by the States to control air pollution. pic.twitter.com/TpOPYhtVLt
— ANI (@ANI) October 31, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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सीएक्यूएम के अनुसार, 15 सितंबर से 29 अक्टूबर के बीच की अवधि में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) इलाकों में 2022 में पराली जलाने की 13,964 घटनाएं हुई थीं जो 2023 में घटकर 6,391 हो गईं. सीएक्यूएम ने कहा कि 2021 की इसी अवधि में पराली जलाने के 11,461 मामले आए थे. पंजाब में, इस वर्ष 45 दिन की अवधि के दौरान पराली जलाने की 5,254 घटनाएं हुईं, जबकि 2022 में 12,112 और 2021 में 9,001 घटनाएं हुईं. यह क्रमशः 56.6 प्रतिशत और 41.6 प्रतिशत की कमी दर्शाता है. हरियाणा में इस वर्ष 45 दिन की अवधि के दौरान पराली जलाने के 1,094 मामले आए और यह 2022 में 1,813 तथा 2021 में 2,413 की तुलना में काफी कम है. यह क्रमशः 39.7 प्रतिशत और 54.7 प्रतिशत की कमी को दर्शाता है.
पंजाब सरकार का लक्ष्य इस ठंड के मौसम में पराली जलाने की घटनाओं को 50 प्रतिशत तक कम करना और छह जिलों- होशियारपुर, मलेरकोटला, पठानकोट, रूपनगर, एसएएस नगर (मोहाली) और एसबीएस नगर में पराली जलाने की प्रथा को पूरी तरह खत्म करना है. पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए पंजाब की कार्य योजना के अनुसार, राज्य में लगभग 31 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है. इससे लगभग 1.6 करोड़ टन पराली पैदा होने की उम्मीद है, जिसका प्रबंधन विभिन्न तरीकों से किया जाएगा.
हरियाणा का अनुमान है कि राज्य में लगभग 14.82 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है. इससे 73 लाख टन से अधिक पराली उत्पन्न होने की उम्मीद है. राज्य इस वर्ष पराली जलाने की घटनाओं को पूरी तरह रोकने का प्रयास करेगा. अक्टूबर और नवंबर में राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि के पीछे प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों के साथ-साथ आसपास के राज्यों में पराली जलाना एक प्रमुख कारण है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, दिल्ली के पीएम2.5 प्रदूषण में पराली की अधिकतम हिस्सेदारी पिछले साल तीन नवंबर को 34 प्रतिशत और 7 नवंबर, 2021 को 48 प्रतिशत थी.
केंद्र सरकार ने पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की राज्य सरकारों को फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत लगभग 3,333 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. इस कोष से किसानों, उपभोक्ता केंद्रों और सहकारी समितियों को खेतों में पराली के प्रबंधन और मशीनों तथा उपकरणों की खरीद में सहयोग राशि दी जाती है. उपलब्ध फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीन की कुल संख्या पंजाब में 1,17,672, हरियाणा में 80,071 और उत्तर प्रदेश-एनसीआर में 7,986 हैं. फसल की चालू कटाई के मौसम के दौरान सीआरएम मशीन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए पंजाब में 23,000 मशीन, हरियाणा में 7,572 और उत्तर प्रदेश में 595 मशीन हासिल करने के लिए अतिरिक्त खरीद प्रक्रिया जारी है. पराली जलाने की घटनाओं में कमी के बावजूद हाल के दिनों में पंजाब में अचानक इस तरह की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है. आगामी हफ्तों में फसल की कटाई की गतिविधियां चरम पर पहुंचने का अनुमान है. सीएक्यूएम ने कहा कि 29 अक्टूबर को ही पंजाब में पराली जलाने के 1,068 मामले सामने आए.
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