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मध्य पूर्व में ईरान के 'प्रॉक्सी' से इजराइल और अमेरिका भी 'परेशान'

Proxy of Iran in Middle East, Iran using proxy to hit Israel : इजराइल और हमास युद्ध के बीच बार-बार ईरान का जिक्र हो रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि इजराइल के जवाबी हमले में हुई देरी की वजह ईरान है. दरअसल, ईरान ने मध्य पूर्व के कई देशों में अपने प्रॉक्सी संगठन बना रखे हैं. इनमें से कई ऐसे संगठन हैं, जिन पर अमेरिका समेत कई देशों ने प्रतिबंध लगा रखे हैं. फिर भी ये संगठन रह-रहकर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं. इजराइल पर भी ऐसे कई संगठनों ने हमले किए हैं, जिसकी सीधी फंडिंग ईरान करता रहा है. आइए इन संगठनों पर एक नजर डालते हैं.

Middle East Iran
मध्य पूर्व में किसने लगाई आग
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 1, 2023, 6:39 PM IST

नई दिल्ली : मध्य पूर्व के कई देशों में ईरान ने अपना प्रॉक्सी संगठन खड़ा कर लिया है. इनमें से कुछ संगठनों ने अब राजनीतिक पार्टियों का स्वरूप भी हासिल कर लिया है. वे सीधे वहां की सरकारों को चुनौती देने की स्थिति में आ चुकी हैं. अपने प्रॉक्सी की बदौलत ईरान बार-बार पश्चिम के देशों को धमकी देता रहा है. यही वजह है कि आज ईरान खुलकर हमास का पक्ष रख रहा है. वह इजराइल पर हमले की चेतावनी दे चुका है. यह स्थिति तब है, जबकि एक समय में अमेरिका ने ईरान, इराक और उ. कोरिया को एक्सिस ऑफ एविल पावर कहा था. तब इराक में सद्दाम हुसैन की सरकार थी. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 2002 में इस शब्द का इस्तेमाल किया था. हालांकि, इसके बावजूद ईरान ने मध्य पूर्व में अपनी ताकतों का लगातार इजाफा किया.

ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति आई थी. तब से ईरान लगातार इस मोर्चे पर आगे बढ़ रहा है. ईरान ने मिडिल ईस्ट में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) का खुलकर इस्तेमाल किया. आईआरजीसी का एक विंग्स है - कुद्स फोर्स. ईरान के जितने भी प्रॉक्सी हैं, कुद्स फोर्स उन्हें हथियार से लेकर पैसे और ट्रेनिंग की सुविधा उपलब्ध करवाता है.

शुरू में ईरान ने शिया प्रमुख देशों जैसे लेबनान, इराक और गल्फ अमीरात में अपनी गतिविधियां बढ़ाईं. लेकिन जहां पर सुन्नी आबादी अधिक है, वह पर यह अपना प्रभाव नहीं बढ़ा सका. 1984 के बाद से अमेरिका में जितनी भी सरकारें बनी हैं, सबने ईरान पर प्रतिबंध लगाए हैं, ताकि वह मध्य पूर्व में चरमपंथी गतिविधियों का विस्तार न दे सके. 2017-21 के बीच ट्रंप ने सबसे अधिक सख्ती बरती थी. इसके बावजूद इन प्रतिबंधों से ईरानी गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ा. उसका प्रभाव क्षेत्र बढ़ता गया.

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने 2020 में अनुमान लगाया था कि ईरान लेबनान के हिजबुल्लाह के पीछे 700 मिलियन डॉलर प्रत्येक साल खर्च कर रहा है. फिलिस्तीनी ग्रुप जिनमें हमास और इस्लामिक जिहाद शामिल हैं, उन्हें भी ईरान हरेक साल 100 मिलियन डॉलर की मदद उपलब्ध करवाता है.

मध्य पूर्व में ईरान के कौन-कौन प्रॉक्सी हैं -

लेबनान - यहां पर हिजबुल्लाह एक प्रमुख ताकत के रूप में उभर चुका है. यह मुख्य रूप से दक्षिण लेबनान में सक्रिय है. हिजबुल्लाह ईरान की शिया विचारधारा को मानता है. अपने गुट में सिर्फ शिया मुस्लमानों की ही भर्ती करता है. इसका गठन अस्सी के दशक में इजराइल का मुकाबला करने के लिए किया गया था. इसने लेबनान में अमेरिकी दूतावासों पर कई हमले किए. हिजबुल्लाह को पूरी दुनिया का सबसे खतरनाक नॉन स्टेट एक्टर माना जाता है. इसके पास 1.30 लाख से भी अधिक रॉकेट्स हैं. इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध में भी हिजबुल्लाह कूद चुका है. उसने इजराइल के उत्तरी इलाकों में कई हमले किए हैं. इजराइल इसकी वजह से गाजा पर समय रहते ग्राउंड ऑपरेशन नहीं कर सका, या फिर देरी से उसने ऑपरेशन की शुरुआत की.

सीरिया - सीरिया का असद परिवार लंबे समय तक ईरान की मदद से सरकार में रहा है. 2011 में असद परिवार के खिलाफ जब आंतरिक विद्रोह हो गया था, तब ईरान ने उसे कुचलने में बड़ी भूमिका निभाई थी. इजराइल का आरोप है कि 2011 में ईरान ने अपने 80 हजार सैनिकों को असद परिवार की मदद के लिए भेजा था. इजराइल के अनुसार रूस ने वायु सेना से सहयोग किया था. 2014 में ईरान ने पाकिस्तानी मूल के शियाओं के साथ मिलकर जयानबियोम ब्रिगेड का गठन किया था. यह भी असद की ओर से लड़ने गया था. इसके बाद ईरान ने फतेमियाउन डिविजन का गठन किया. यह फिलहाल सीरिया सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है.

इराक - 2007 में ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स ने कातिब हिजबुल्लाह को खड़ा किया. 2009 में अमेरिका ने इसे एक विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया था. इस संगठन के महासचिव अबु महदी अल मुहंदी पर प्रतिबंध लगाया. 2014 में कातिब हिजबुल्लाह ने इराक के पॉपुलर मोबलाइजेशन फोर्सस का हिस्सा बनना स्वीकार कर लिया. इनका काम आईएस आतंकी संगठन से लड़ना था. ईरान लगातार इसकी मदद करता रहा. 2007-11 और 2018-2020 के दौरान कातिब ने इराक में कई बार अमरीकी सेनाओं को अपना निशाना बनाया. 2019 में उसके हमले में अमरीकी सिविलियन कॉन्ट्रैक्टर भी मारा गया था.

ईरान ने असैब अहल अल हक नाम से एक और आतंकी संगठन बनाया. इसने इराक में 2006-11 के बीच अमेरिका पर 6000 से अधिक हमले किए. इसके पास 20 हजार से अधिक लड़ाके हैं. ईरान ने हरकत हिजबुल्लाह अल नुजबा, द बदर ऑर्गेनाइजेशन और कातिब सैय्यद अल शुहादा नाम से अलग-अलग संगठनों को खड़ा किया. ये संगठन आज ईरान के कहने पर मरने और मारने के लिए तैयार हो जाते हैं. ये जितने भी संगठन हैं, सभी मध्य पूर्व में ही सक्रिय हैं.

यमन - इजराइल और हमास युद्ध के बीच हौथी संगठन का नाम भी प्रमुखता से सामने आ रहा है. यह यमन में सक्रिय है. हौथी ने इजराइल पर ड्रोन और मिसाइल से हमले किए हैं. इसे ईरान का समर्थन प्राप्त है. ऐसा कहा जाता है कि ईरान ने सऊदी अरब और बहरीन में भी शिया आबादी के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता हासिल नहीं हुई. जबकि वह यमन में सफल हो गया. इसके बाद यमन में आंतरिक विद्रोह शुरू हो गया. हौथी मूवमेंट भी हिजबुल्लाह की राह पर चल पड़ा है. इसका नेतृत्व अब्दुल मिलक बदरुद्दीन हौथी के पास है.

गाजा - गाजा में हमास का कब्जा है. हमास की फंडिंग ईरान करता रहा है. उसे ट्रेनिंग और हथियार की भी सप्लाई की है. हालांकि, 2012 में दोनों के बीच संबंध खराब हो गए थे. क्योंकि उस समय हमास ने सीरिया के शासक असद का साथ देने से मना कर दिया था. बाद में 2017 में फिर से उनके संबंध ठीक हो गए. इस समय जबकि इजराइल बार-बार हमास पर हमला कर रहा है, ईरान हर बार इजराइल को धमकी दे रहा है. माना जाता है कि अमेरिका की वजह से ईरान इजराइल पर हमले करने में कामयाब नहीं हो रहा है, लेकिन ईरान अपने प्रॉक्सी के जरिए इजराइल पर हमले जरूर करवा रहा है. गाजा के इलाके में फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद भी सक्रिय है. इसे भी ईरान का समर्थन प्राप्त है. खुद अमेरिका ने अपनी एक रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है.

सऊदी अरब - 1987 में रेवोल्यूशनरी गार्ड्स ने सऊदी अरब से अल हेजाज में हिजबुल्लाह का गठन किया था. यही हिजबुल्लाह आज लेबनान में बड़ी ताकत के रूप में उभर चुका है.

बहरीन - अल अशतर ब्रिगेड बहरीन में सक्रिय है.

ये भी पढ़ें : इजरायल ने गाजा में रिफ्यूजी कैंप पर बरसाए बम, कहा- हमास का कमांड सेंटर नष्ट किया

नई दिल्ली : मध्य पूर्व के कई देशों में ईरान ने अपना प्रॉक्सी संगठन खड़ा कर लिया है. इनमें से कुछ संगठनों ने अब राजनीतिक पार्टियों का स्वरूप भी हासिल कर लिया है. वे सीधे वहां की सरकारों को चुनौती देने की स्थिति में आ चुकी हैं. अपने प्रॉक्सी की बदौलत ईरान बार-बार पश्चिम के देशों को धमकी देता रहा है. यही वजह है कि आज ईरान खुलकर हमास का पक्ष रख रहा है. वह इजराइल पर हमले की चेतावनी दे चुका है. यह स्थिति तब है, जबकि एक समय में अमेरिका ने ईरान, इराक और उ. कोरिया को एक्सिस ऑफ एविल पावर कहा था. तब इराक में सद्दाम हुसैन की सरकार थी. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 2002 में इस शब्द का इस्तेमाल किया था. हालांकि, इसके बावजूद ईरान ने मध्य पूर्व में अपनी ताकतों का लगातार इजाफा किया.

ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति आई थी. तब से ईरान लगातार इस मोर्चे पर आगे बढ़ रहा है. ईरान ने मिडिल ईस्ट में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) का खुलकर इस्तेमाल किया. आईआरजीसी का एक विंग्स है - कुद्स फोर्स. ईरान के जितने भी प्रॉक्सी हैं, कुद्स फोर्स उन्हें हथियार से लेकर पैसे और ट्रेनिंग की सुविधा उपलब्ध करवाता है.

शुरू में ईरान ने शिया प्रमुख देशों जैसे लेबनान, इराक और गल्फ अमीरात में अपनी गतिविधियां बढ़ाईं. लेकिन जहां पर सुन्नी आबादी अधिक है, वह पर यह अपना प्रभाव नहीं बढ़ा सका. 1984 के बाद से अमेरिका में जितनी भी सरकारें बनी हैं, सबने ईरान पर प्रतिबंध लगाए हैं, ताकि वह मध्य पूर्व में चरमपंथी गतिविधियों का विस्तार न दे सके. 2017-21 के बीच ट्रंप ने सबसे अधिक सख्ती बरती थी. इसके बावजूद इन प्रतिबंधों से ईरानी गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ा. उसका प्रभाव क्षेत्र बढ़ता गया.

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने 2020 में अनुमान लगाया था कि ईरान लेबनान के हिजबुल्लाह के पीछे 700 मिलियन डॉलर प्रत्येक साल खर्च कर रहा है. फिलिस्तीनी ग्रुप जिनमें हमास और इस्लामिक जिहाद शामिल हैं, उन्हें भी ईरान हरेक साल 100 मिलियन डॉलर की मदद उपलब्ध करवाता है.

मध्य पूर्व में ईरान के कौन-कौन प्रॉक्सी हैं -

लेबनान - यहां पर हिजबुल्लाह एक प्रमुख ताकत के रूप में उभर चुका है. यह मुख्य रूप से दक्षिण लेबनान में सक्रिय है. हिजबुल्लाह ईरान की शिया विचारधारा को मानता है. अपने गुट में सिर्फ शिया मुस्लमानों की ही भर्ती करता है. इसका गठन अस्सी के दशक में इजराइल का मुकाबला करने के लिए किया गया था. इसने लेबनान में अमेरिकी दूतावासों पर कई हमले किए. हिजबुल्लाह को पूरी दुनिया का सबसे खतरनाक नॉन स्टेट एक्टर माना जाता है. इसके पास 1.30 लाख से भी अधिक रॉकेट्स हैं. इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध में भी हिजबुल्लाह कूद चुका है. उसने इजराइल के उत्तरी इलाकों में कई हमले किए हैं. इजराइल इसकी वजह से गाजा पर समय रहते ग्राउंड ऑपरेशन नहीं कर सका, या फिर देरी से उसने ऑपरेशन की शुरुआत की.

सीरिया - सीरिया का असद परिवार लंबे समय तक ईरान की मदद से सरकार में रहा है. 2011 में असद परिवार के खिलाफ जब आंतरिक विद्रोह हो गया था, तब ईरान ने उसे कुचलने में बड़ी भूमिका निभाई थी. इजराइल का आरोप है कि 2011 में ईरान ने अपने 80 हजार सैनिकों को असद परिवार की मदद के लिए भेजा था. इजराइल के अनुसार रूस ने वायु सेना से सहयोग किया था. 2014 में ईरान ने पाकिस्तानी मूल के शियाओं के साथ मिलकर जयानबियोम ब्रिगेड का गठन किया था. यह भी असद की ओर से लड़ने गया था. इसके बाद ईरान ने फतेमियाउन डिविजन का गठन किया. यह फिलहाल सीरिया सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है.

इराक - 2007 में ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स ने कातिब हिजबुल्लाह को खड़ा किया. 2009 में अमेरिका ने इसे एक विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया था. इस संगठन के महासचिव अबु महदी अल मुहंदी पर प्रतिबंध लगाया. 2014 में कातिब हिजबुल्लाह ने इराक के पॉपुलर मोबलाइजेशन फोर्सस का हिस्सा बनना स्वीकार कर लिया. इनका काम आईएस आतंकी संगठन से लड़ना था. ईरान लगातार इसकी मदद करता रहा. 2007-11 और 2018-2020 के दौरान कातिब ने इराक में कई बार अमरीकी सेनाओं को अपना निशाना बनाया. 2019 में उसके हमले में अमरीकी सिविलियन कॉन्ट्रैक्टर भी मारा गया था.

ईरान ने असैब अहल अल हक नाम से एक और आतंकी संगठन बनाया. इसने इराक में 2006-11 के बीच अमेरिका पर 6000 से अधिक हमले किए. इसके पास 20 हजार से अधिक लड़ाके हैं. ईरान ने हरकत हिजबुल्लाह अल नुजबा, द बदर ऑर्गेनाइजेशन और कातिब सैय्यद अल शुहादा नाम से अलग-अलग संगठनों को खड़ा किया. ये संगठन आज ईरान के कहने पर मरने और मारने के लिए तैयार हो जाते हैं. ये जितने भी संगठन हैं, सभी मध्य पूर्व में ही सक्रिय हैं.

यमन - इजराइल और हमास युद्ध के बीच हौथी संगठन का नाम भी प्रमुखता से सामने आ रहा है. यह यमन में सक्रिय है. हौथी ने इजराइल पर ड्रोन और मिसाइल से हमले किए हैं. इसे ईरान का समर्थन प्राप्त है. ऐसा कहा जाता है कि ईरान ने सऊदी अरब और बहरीन में भी शिया आबादी के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता हासिल नहीं हुई. जबकि वह यमन में सफल हो गया. इसके बाद यमन में आंतरिक विद्रोह शुरू हो गया. हौथी मूवमेंट भी हिजबुल्लाह की राह पर चल पड़ा है. इसका नेतृत्व अब्दुल मिलक बदरुद्दीन हौथी के पास है.

गाजा - गाजा में हमास का कब्जा है. हमास की फंडिंग ईरान करता रहा है. उसे ट्रेनिंग और हथियार की भी सप्लाई की है. हालांकि, 2012 में दोनों के बीच संबंध खराब हो गए थे. क्योंकि उस समय हमास ने सीरिया के शासक असद का साथ देने से मना कर दिया था. बाद में 2017 में फिर से उनके संबंध ठीक हो गए. इस समय जबकि इजराइल बार-बार हमास पर हमला कर रहा है, ईरान हर बार इजराइल को धमकी दे रहा है. माना जाता है कि अमेरिका की वजह से ईरान इजराइल पर हमले करने में कामयाब नहीं हो रहा है, लेकिन ईरान अपने प्रॉक्सी के जरिए इजराइल पर हमले जरूर करवा रहा है. गाजा के इलाके में फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद भी सक्रिय है. इसे भी ईरान का समर्थन प्राप्त है. खुद अमेरिका ने अपनी एक रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है.

सऊदी अरब - 1987 में रेवोल्यूशनरी गार्ड्स ने सऊदी अरब से अल हेजाज में हिजबुल्लाह का गठन किया था. यही हिजबुल्लाह आज लेबनान में बड़ी ताकत के रूप में उभर चुका है.

बहरीन - अल अशतर ब्रिगेड बहरीन में सक्रिय है.

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