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PIL in Supreme Court: धोखाधड़ी से धर्मांतरण के खिलाफ दाखिल की गई जनहित याचिका

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Published : Feb 1, 2022, 4:56 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (public interest litigation in the Supreme Court) दायर की गई है. जिसमें 17 वर्षीय युवती की मौत की जांच की मांग भी हुई है. युवती ने कथित तौर पर मिशनरी स्कूल द्वारा ईसाई धर्म अपनाने के लिए दी गई यातना के बाद आत्महत्या कर ली थी.

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सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : तमिलनाडु के तंजावुर में 17 वर्षीय युवती की आत्महत्या मामले की जांच (Investigation of girls suicide case) के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर (public interest litigation in the Supreme Court) की गई है. यह मामला जबरन धर्म परिवर्तन से भी जुड़ा है. यह याचिका एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर की गई है.

याचिका के माध्यम से यह मांग की गई है कि यह मामला धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने, डराने-धमकाने, उपहार और मौद्रिक लाभ के माध्यम से धोखा देने सहिय अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है. याचिका के माध्यम से केंद्र और राज्यों द्वारा इसे रोकने के लिए निर्देश की मांग की गई है. याचिका में तर्क दिया गया है कि स्थिति चिंताजनक है क्योंकि कई व्यक्ति और संगठन बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करा रहे हैं. विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में उन आदिवासी बेल्ट में जहां ज्यादातर निरक्षर हैं.

हाशिए पर रहने वाले वर्ग को विशेष रूप से लक्षित किया जाता है. आईएमए के शोध आंकड़ों के अनुसार इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के बीच स्वास्थ्य, शिक्षा, आहार और पीने के पानी की समस्या है. ये क्षेत्र सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े हैं. सामाजिक पिछड़ापन मिशनरियों के लिए उनके सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक और शैक्षिक विकास के लिए वंचित वर्गों के बीच काम करने के अवसर देता है. इसके माध्यम से वे संदेश फैलाकर धर्मांतरण को बढ़ावा देते हैं.

याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्र को एक ऐसा कानून बनाना चाहिए जो गैर सरकारी संगठनों की आड़ में संचालित होने वाले विदेशी धन की गहराई से जांच करे. उन्होंने कहा कि विदेशी वित्त पोषित व्यक्तियों और गैर सरकारी संगठनों को धर्मांतरण के लिए मासिक लक्ष्य दिया जाता है. यदि यह जारी रहता है और केंद्र हस्तक्षेप नहीं करता है तो हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे.

याचिकाकर्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि भारत समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है और कानून का शासन हमारे लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है. अनुच्छेद 14 न केवल कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण को सुरक्षित करता है बल्कि भारत के संविधान की प्रस्तावना आर्थिक और राजनीतिक न्याय को भी सुरक्षित करता है. इस प्रकार यह सरकार का कर्तव्य है कि वह सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित लोगों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को डराने और वित्तीय लाभ का लालच देकर धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कदम उठाए.

यह भी पढ़ें- Delhi Riots : अकबरी बेगम की हत्या के दो आरोपियों को जमानत, एक की याचिका खारिज

इसलिए यह प्रार्थना की जाती है कि केंद्र को एक न्यायिक आयोग या एक विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए जो विकसित राष्ट्रों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों और नीतियों और राज्य के कानूनों के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून के सर्वोत्तम प्रावधानों की जांच करे. साथ ही जबरदस्ती और धोखेबाजी से धार्मिक रूपांतरण को नियंत्रित करने के लिए एक कानून बनाए. याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि वैकल्पिक रूप से भारत के विधि आयोग को भारत में धार्मिक रूपांतरणों पर तीन महीने में एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है.

नई दिल्ली : तमिलनाडु के तंजावुर में 17 वर्षीय युवती की आत्महत्या मामले की जांच (Investigation of girls suicide case) के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर (public interest litigation in the Supreme Court) की गई है. यह मामला जबरन धर्म परिवर्तन से भी जुड़ा है. यह याचिका एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर की गई है.

याचिका के माध्यम से यह मांग की गई है कि यह मामला धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने, डराने-धमकाने, उपहार और मौद्रिक लाभ के माध्यम से धोखा देने सहिय अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है. याचिका के माध्यम से केंद्र और राज्यों द्वारा इसे रोकने के लिए निर्देश की मांग की गई है. याचिका में तर्क दिया गया है कि स्थिति चिंताजनक है क्योंकि कई व्यक्ति और संगठन बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करा रहे हैं. विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में उन आदिवासी बेल्ट में जहां ज्यादातर निरक्षर हैं.

हाशिए पर रहने वाले वर्ग को विशेष रूप से लक्षित किया जाता है. आईएमए के शोध आंकड़ों के अनुसार इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के बीच स्वास्थ्य, शिक्षा, आहार और पीने के पानी की समस्या है. ये क्षेत्र सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े हैं. सामाजिक पिछड़ापन मिशनरियों के लिए उनके सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक और शैक्षिक विकास के लिए वंचित वर्गों के बीच काम करने के अवसर देता है. इसके माध्यम से वे संदेश फैलाकर धर्मांतरण को बढ़ावा देते हैं.

याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्र को एक ऐसा कानून बनाना चाहिए जो गैर सरकारी संगठनों की आड़ में संचालित होने वाले विदेशी धन की गहराई से जांच करे. उन्होंने कहा कि विदेशी वित्त पोषित व्यक्तियों और गैर सरकारी संगठनों को धर्मांतरण के लिए मासिक लक्ष्य दिया जाता है. यदि यह जारी रहता है और केंद्र हस्तक्षेप नहीं करता है तो हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे.

याचिकाकर्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि भारत समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है और कानून का शासन हमारे लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है. अनुच्छेद 14 न केवल कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण को सुरक्षित करता है बल्कि भारत के संविधान की प्रस्तावना आर्थिक और राजनीतिक न्याय को भी सुरक्षित करता है. इस प्रकार यह सरकार का कर्तव्य है कि वह सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित लोगों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को डराने और वित्तीय लाभ का लालच देकर धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कदम उठाए.

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इसलिए यह प्रार्थना की जाती है कि केंद्र को एक न्यायिक आयोग या एक विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए जो विकसित राष्ट्रों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों और नीतियों और राज्य के कानूनों के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून के सर्वोत्तम प्रावधानों की जांच करे. साथ ही जबरदस्ती और धोखेबाजी से धार्मिक रूपांतरण को नियंत्रित करने के लिए एक कानून बनाए. याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि वैकल्पिक रूप से भारत के विधि आयोग को भारत में धार्मिक रूपांतरणों पर तीन महीने में एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है.

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