श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती शनिवार को पुलवामा पहुंची और आतंकवाद मामले में जमानत पर रिहा हुए पीडीपी नेता वहीद-उर-रहमान पारा के घर जाकर उनसे मिलीं. जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता वहीद-उर-रहमान पारा को कुछ दिन पहले जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय ने जमानत दी थी. करीब दो साल बाद वहीद पारा को जमानत मिली. 21 मई को उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने पीडीपी के युवा नेता वहीद पारा की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
वहीद पारा को महबूबा मुफ्ती का करीबी माना जाता है. पीडीपी का आरोप है कि वहीद पारा को राजनीतिक द्वेष के कारण गिरफ्तार किया गया था. जेल में रहते हुए, वहीद पारा ने डीडीसी चुनाव लड़ा और विजयी हुए, लेकिन वह अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं कर सके. पारा ने अभी तक डीडीसी सदस्य के रूप में शपथ नहीं ली है. 2021 में, विशेष एनआईए अदालत ने दो बार वहीद पारा की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था और उनके खिलाफ आरोपों को 'गंभीर और घृणित' बताया था. विशेष एनआईए अदालत द्वारा दूसरी जमानत याचिका खारिज होने के बाद पीडीपी नेता ने जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.
'हमें अपने बच्चों के शव लेने के लिए अदालत जाना पड़ रहा है'
वहीद पारा और उनके परिवार से मिलने के बाद महबूबा मुफ्ती ने पत्रकारों से बात करते हुए नवंबर 2021 में हैदरपुरा मुठभेड़ में मारे गए आमिर मागरे के शव को निकालकर अंतिम संस्कार के लिए परिवार को सौंपने के जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत किया. उन्होंने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे लोगों को अपने बच्चों के शव हासिल करने के लिये अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ा. अदालत के निर्देशों के कारण ही हम अपने बच्चों के शव हासिल कर पाए हैं. इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या हो सकती है? लेकिन, फिर भी, मुझे खुशी है कि अदालत ने मानवता की खातिर निर्देश जारी किये और मैं इसका स्वागत करती हूं.'
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जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने शुक्रवार को 13 पृष्ठ के आदेश में कहा कि आमिर मागरे का शव निकालकर अंतिम संस्कार के लिए उनके परिवार को सौंपा जाए. गौरतलब है कि 15 नवंबर, 2021 को श्रीनगर के बाहरी इलाके हैदरपुरा में मारे गए चार लोगों में मागरे भी शामिल था. पुलिस ने उन सभी के आतंकवादी होने का दावा किया था और उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में शवों को दफना दिया था. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने फैसला किया था कि वह 'आतंकवादियों' के शवों को परिवार के सदस्यों को नहीं सौंपेगी और कानून-व्यवस्था बिगड़ने के डर के चलते उन्हें अलग-अलग जगहों पर दफनाया जाएगा. हालांकि, मुठभेड़ की सच्चाई को लेकर सार्वजनिक आक्रोश के बाद, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने दबाव में आकर दो लोगों अल्ताफ अहमद भट और डॉ. मुदासिर गुल के शवों को निकालकर उनके परिवार के सदस्यों को सौंप दिया था.