चेन्नई: ओडिशा में हुए रेल हादसे में जीवित बचे कई लोग विशेष ट्रेन से रविवार को यहां पहुंचे. उनके चेहरों से साफ जाहिर हो रहा था कि वे सदमे में हैं और उनके जल्दी इससे उबरने के आसार भी नहीं हैं. केरल की रहने वाली एक महिला ने कहा कि उन्होंने सिर्फ टेलीविज़न पर हादसों को देखा था और जब खुद इसका सामना किया तो वह बुरी तरह डर गई हैं.
उन्होंने यहां पत्रकारों से कहा, “यात्रियों को दी जाने वाली चादरों का इस्तेमाल घायलों को ले जाने के लिए किया गया. चादरें उनके खून से लाल हो गईं. बहुत डरावना मंजर था.” महिला ने कहा कि सामान्य बोगी क्षमता से काफी अधिक खचा-खच भरी हुई थी. हादसे और लंबी यात्रा से थके एक शख्स ने कहा कि खून, यहां-वहां पड़े लोगों के अंगों और शवों को देखना पीड़ादायक था.
दुर्घटना में जख्मी हुए अन्य मुसाफिर ने कहा, “मैं बोगी एस-1 में सो रहा था. अचानक से मैंने धमाके की आवाज़ सुनी. इससे पहले मैं कुछ समझ पाता कि क्या हुआ है एक रॉड जैसी कोई चीज़ मेरी पसलियों के पास लगी और मैं करीब-करीब बेहोश हो गया.” उन्हें स्वास्थ्य कर्मी व्हीलचेयर पर राजीव गांधी सरकारी मेडिकल कॉलेज ले गए.
तमिलनाडु के सेलम के रहने वाले सैनिक कनगराज चेन्नई आ रही ट्रेन में सवार थे. उन्होंने कहा कि चालक द्वारा अचानक ब्रेक लगाने से बोगियां अलग हो गईं, कुछ एक तरफ गिरी और कुछ अन्य कोचों पर जा गिरी. उन्होंने बताया कि जब बोगी हिली तो कुछ लोग एक के बाद एक उनके हाथ पर गिर पड़े. उन्होंने जितना संभव हो सका, उतने लोगों को बचाया, खासकर बच्चों को बचाया. ओडिशा में ट्रेन हादसे के 137 यात्री भद्रक से विशेष ट्रेन से यहां पहुंचे. सभी बुरी तरह थके हुए और सदमे में हैं.
प्रणव विग्नेश ने बताया कि वह ट्रेन में सवार थे और खिड़की के शीशे टूट कर यात्रियों की कमर में घुस गए जिससे कई लोग जख्मी हुए. उन्होंने कहा कि वह किसी तरह से खिड़की के रास्ते ट्रेन से बाहर निकले.
(पीटीआई-भाषा)
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