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ओबीसी सूची : 127वां संविधान संशोधन विधेयक राज्य सभा से भी पारित

ओबीसी सूची की शक्तियों (OBC list powers) से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक (127th Constitution amendment bill) को राज्य सभा में विस्तृत चर्चा के बाद पारित कर दिया गया. विधेयक के पक्ष में 187 वोट पड़े.

ओबीसी सूची संविधान संशोधन विधेयक
ओबीसी सूची संविधान संशोधन विधेयक
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Published : Aug 11, 2021, 6:52 PM IST

Updated : Aug 11, 2021, 6:58 PM IST

नई दिल्ली : ओबीसी सूची की शक्तियों (OBC list powers) से जुड़ा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित 'संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021' राज्य सभा से भी पारित हो गया. संसद के मानसून सत्र के 17वें दिन आज राज्य सभा में विस्तृत चर्चा के बाद ओबीसी लिस्ट को लेकर राज्यों को सशक्त करने को लेकर प्रावधानों वाला यह बिल पारित कर दिया गया.

आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को समाप्त करने की विभिन्न दलों की मांग के बीच सरकार ने उच्च सदन में माना कि 30 साल पुरानी आरक्षण संबंधी सीमा के बारे में विचार किया जाना चाहिए.

खारिज हुए संशोधन
राज्यसभा में आज करीब छह घंटे की चर्चा के बाद 'संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021' को शून्य के मुकाबले 187 मतों से पारित कर दिया गया. सदन में इस विधेयक पर विपक्षी सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को खारिज कर दिया गया.

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेन्द्र सिंह ने नरेंद्र मोदी सरकार के सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध होने की बात कही और यह भी कहा कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा 30 साल पहले लगायी गयी थी और इस पर विचार होना चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने जाति आधारित जनगणना की सदस्यों की मांग पर कहा कि 2011 की जनगणना में संबंधित सर्वेक्षण कराया गया था लेकिन वह अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) पर केंद्रित नहीं था. उन्होंने कहा कि उस जनगणना के आंकड़े जटिलताओं से भरे थे.

मंत्री ने कहा कि सदन में इस संविधान संशोधन के पक्ष में सभी दलों के सांसदों से मिला समर्थन स्वागत योग्य है. उन्होंने कहा कि पूरे सदन ने इसका एकमत से स्वागत किया. उन्होंने कहा कि हमारे दल अलग हो सकते हैं, विचारधारा अलग हो सकती है, प्रतिबद्धता भी अलग हो सकती है.

कुमार ने कहा कि मोदी सरकार सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है और इस संबंध में सरकार ने जिस तरह से कदम उठाए हैं, उससे हमारी प्रतिबद्धता झलकती है. उन्होंने विधेयक लाए जाने की पृष्ठभूमि और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायलय के फैसले का भी जिक्र किया तथा कहा कि उसके बाद ही यह विधेयक लाने का फैसला किया गया.

उन्होंने कहा कि मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों में ओबीसी आरक्षण के फैसले से समुदाय के छात्रों में उत्साह का माहौल है और उन्होंने एक दिन पहले ही छात्रों के एक समूह से मुलाकात की थी. उन्होंने कहा कि छात्रों के मन में विश्वास था कि मोदी सरकार ने अगर कोई निर्णय लिया है तो उसे पूरा किया जाएगा.

मेडिकल ही नहीं बल्कि फेलोशिप, विदेशों में पढ़ाई के लिए सुविधाएं मुहैया कराए जाने पर जोर देते हुए वीरेंद्र कुमार ने कहा कि इस विधेयक से ओबीसी के लोगों को काफी लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि सरकार महान समाज सुधारकों पेरियार, ज्योतिबा फुले, बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर, दीनदयाल उपाध्याय आदि द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करेगी. उन्होंने कहा कि सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और ऐसे व्यक्ति का उत्थान नहीं होता है तो विकास अधूरा है.

बता दें कि सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित 'संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021' पारित कराया है. यह विधेयक राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward Classes) की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने के लिए सशक्त बनाता है.

बता दें कि वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 338 बी जोड़ा गया था जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचे, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है. जबकि 342 ए किसी विशिष्ट जाति को एसईबीसी अधिसूचित करने और सूची में बदलाव करने के संसद के अधिकारों से संबंधित है.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 5 मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है. विगत पांच मई को उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से महाराष्ट्र में मराठा कोटा प्रदान करने संबंधी कानून को निरस्त कर दिया था.

क्या हैं विधेयक के उद्देश्य
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि संविधान 102वां अधिनियम 2018 को पारित करते समय विधायी आशय यह था कि यह सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची से संबंधित है. यह इस तथ्य को मान्यता देता है कि 1993 में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्वयं की केंद्रीय सूची की घोषणा से भी पूर्व कई राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की अन्य पिछड़े वर्गों की अपनी राज्य सूची/ संघ राज्य क्षेत्र सूची हैं.

इसमें कहा गया है, 'यह विधेयक पर्याप्त रूप से यह स्पष्ट करने के लिये है कि राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने और उसे बनाये रखने को सशक्त बनाता है.'

यह भी पढ़ें- तीन दशक तक भारत की राजनीति में खलबली मचाने वाला मंडल कमीशन क्या है?

विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि देश की संघीय संरचना को बनाए रखने के दृष्टिकोण से संविधान के अनुच्छेद 342क का संशोधन करने और अनुच्छेद 338ख एवं अनुच्छेद 366 में संशोधन करने की आवश्यकता है. यह विधेयक उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये है.

(एजेंसी इनपुट)

नई दिल्ली : ओबीसी सूची की शक्तियों (OBC list powers) से जुड़ा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित 'संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021' राज्य सभा से भी पारित हो गया. संसद के मानसून सत्र के 17वें दिन आज राज्य सभा में विस्तृत चर्चा के बाद ओबीसी लिस्ट को लेकर राज्यों को सशक्त करने को लेकर प्रावधानों वाला यह बिल पारित कर दिया गया.

आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को समाप्त करने की विभिन्न दलों की मांग के बीच सरकार ने उच्च सदन में माना कि 30 साल पुरानी आरक्षण संबंधी सीमा के बारे में विचार किया जाना चाहिए.

खारिज हुए संशोधन
राज्यसभा में आज करीब छह घंटे की चर्चा के बाद 'संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021' को शून्य के मुकाबले 187 मतों से पारित कर दिया गया. सदन में इस विधेयक पर विपक्षी सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को खारिज कर दिया गया.

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेन्द्र सिंह ने नरेंद्र मोदी सरकार के सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध होने की बात कही और यह भी कहा कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा 30 साल पहले लगायी गयी थी और इस पर विचार होना चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने जाति आधारित जनगणना की सदस्यों की मांग पर कहा कि 2011 की जनगणना में संबंधित सर्वेक्षण कराया गया था लेकिन वह अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) पर केंद्रित नहीं था. उन्होंने कहा कि उस जनगणना के आंकड़े जटिलताओं से भरे थे.

मंत्री ने कहा कि सदन में इस संविधान संशोधन के पक्ष में सभी दलों के सांसदों से मिला समर्थन स्वागत योग्य है. उन्होंने कहा कि पूरे सदन ने इसका एकमत से स्वागत किया. उन्होंने कहा कि हमारे दल अलग हो सकते हैं, विचारधारा अलग हो सकती है, प्रतिबद्धता भी अलग हो सकती है.

कुमार ने कहा कि मोदी सरकार सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है और इस संबंध में सरकार ने जिस तरह से कदम उठाए हैं, उससे हमारी प्रतिबद्धता झलकती है. उन्होंने विधेयक लाए जाने की पृष्ठभूमि और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायलय के फैसले का भी जिक्र किया तथा कहा कि उसके बाद ही यह विधेयक लाने का फैसला किया गया.

उन्होंने कहा कि मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों में ओबीसी आरक्षण के फैसले से समुदाय के छात्रों में उत्साह का माहौल है और उन्होंने एक दिन पहले ही छात्रों के एक समूह से मुलाकात की थी. उन्होंने कहा कि छात्रों के मन में विश्वास था कि मोदी सरकार ने अगर कोई निर्णय लिया है तो उसे पूरा किया जाएगा.

मेडिकल ही नहीं बल्कि फेलोशिप, विदेशों में पढ़ाई के लिए सुविधाएं मुहैया कराए जाने पर जोर देते हुए वीरेंद्र कुमार ने कहा कि इस विधेयक से ओबीसी के लोगों को काफी लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि सरकार महान समाज सुधारकों पेरियार, ज्योतिबा फुले, बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर, दीनदयाल उपाध्याय आदि द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करेगी. उन्होंने कहा कि सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और ऐसे व्यक्ति का उत्थान नहीं होता है तो विकास अधूरा है.

बता दें कि सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित 'संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021' पारित कराया है. यह विधेयक राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों (Socially and Educationally Backward Classes) की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने के लिए सशक्त बनाता है.

बता दें कि वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 338 बी जोड़ा गया था जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचे, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है. जबकि 342 ए किसी विशिष्ट जाति को एसईबीसी अधिसूचित करने और सूची में बदलाव करने के संसद के अधिकारों से संबंधित है.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 5 मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है. विगत पांच मई को उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से महाराष्ट्र में मराठा कोटा प्रदान करने संबंधी कानून को निरस्त कर दिया था.

क्या हैं विधेयक के उद्देश्य
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि संविधान 102वां अधिनियम 2018 को पारित करते समय विधायी आशय यह था कि यह सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची से संबंधित है. यह इस तथ्य को मान्यता देता है कि 1993 में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्वयं की केंद्रीय सूची की घोषणा से भी पूर्व कई राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की अन्य पिछड़े वर्गों की अपनी राज्य सूची/ संघ राज्य क्षेत्र सूची हैं.

इसमें कहा गया है, 'यह विधेयक पर्याप्त रूप से यह स्पष्ट करने के लिये है कि राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने और उसे बनाये रखने को सशक्त बनाता है.'

यह भी पढ़ें- तीन दशक तक भारत की राजनीति में खलबली मचाने वाला मंडल कमीशन क्या है?

विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि देश की संघीय संरचना को बनाए रखने के दृष्टिकोण से संविधान के अनुच्छेद 342क का संशोधन करने और अनुच्छेद 338ख एवं अनुच्छेद 366 में संशोधन करने की आवश्यकता है. यह विधेयक उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये है.

(एजेंसी इनपुट)

Last Updated : Aug 11, 2021, 6:58 PM IST
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