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बेटी व पिता के बीच प्रेम महिला के करियर की संभावनाओं में बाधक नहीं हो सकता : HC - बंबई उच्च न्यायालय का आदेश

पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद के एक मामले में बंबई उच्च न्यायालय ने महिला को अपनी बेटी को विदेश ले जाने की अनुमति दे दी. हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि बेटी व पिता के बीच का प्रेम किसी महिला के करियर में बाधक नहीं हो सकता. जानिए क्या है पूरा मामला.

Bombay High Court
बंबई उच्च न्यायालय
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Published : Jul 14, 2022, 10:03 PM IST

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने कहा है कि एक बेटी और उसके पिता के बीच प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं है लेकिन अदालत किसी महिला के करियर की संभावनाओं से इनकार नहीं कर सकती. अदालत ने एक महिला को अपनी बेटी को पोलैंड ले जाने की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की. महिला और उसके पति के बीच वैवाहिक विवाद है.

न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने आठ जुलाई को इस संबंध में एक आदेश जारी किया था, जिसमें महिला को अपनी नौ साल की बेटी को पोलैंड ले जाने की अनुमति दी गई लेकिन उसे उसके (बच्ची के) पिता से मिलवाने या संपर्क करवाने का भी निर्देश दिया. आदेश की प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई. महिला ने उच्च न्यायालय का रुख कर अपनी बच्ची के साथ पोलैंड में रहने की अनुमति मांगी थी, जहां उसे (महिला को) नौकरी मिली है. व्यक्ति ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के कारण पोलैंड में स्थिति अशांत है.

न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, 'एक बेटी और उसके पिता के बीच प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं है....' न्यायाधीश ने कहा कि एक ओर पिता है, जो अपनी बेटी के दूसरी जगह जाने से दुखी है, जबकि दूसरी ओर महिला (बच्ची की मां) है जो नौकरी कर आगे बढ़ना चाहती है. अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि आज की तारीख तक बच्ची का संरक्षण मां के पास है, जिसने अकेले ही उसकी परवरिश की और बच्ची की उम्र को ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि वह अपनी मां के साथ ही रहे.

न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि अदालत एक मां की नौकरी की संभावनाओं से इनकार कर सकती है, जो नौकरी करने की इच्छुक है और उसे इस अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता. जरूरी है कि मां और पिता के हितों के बीच एक संतुलन कायम किया जाए और बच्ची के कल्याण पर भी गौर किया जाए.' अदालत ने महिला के पति की यह दलील स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया कि विदेश में जाकर रहने में बच्ची असहज महसूस करेगी. न्यायाधीश ने महिला को बच्ची को स्कूल की छुट्टियों के दौरान भारत लाने और प्रतिदिन उसके पिता से मिलवाने तथा बातचीत कराने का निर्देश दिया.

पढ़ें- पत्नी का 'मंगलसूत्र' हटाना मानसिक क्रूरता : HC

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने कहा है कि एक बेटी और उसके पिता के बीच प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं है लेकिन अदालत किसी महिला के करियर की संभावनाओं से इनकार नहीं कर सकती. अदालत ने एक महिला को अपनी बेटी को पोलैंड ले जाने की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की. महिला और उसके पति के बीच वैवाहिक विवाद है.

न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने आठ जुलाई को इस संबंध में एक आदेश जारी किया था, जिसमें महिला को अपनी नौ साल की बेटी को पोलैंड ले जाने की अनुमति दी गई लेकिन उसे उसके (बच्ची के) पिता से मिलवाने या संपर्क करवाने का भी निर्देश दिया. आदेश की प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई. महिला ने उच्च न्यायालय का रुख कर अपनी बच्ची के साथ पोलैंड में रहने की अनुमति मांगी थी, जहां उसे (महिला को) नौकरी मिली है. व्यक्ति ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के कारण पोलैंड में स्थिति अशांत है.

न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, 'एक बेटी और उसके पिता के बीच प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं है....' न्यायाधीश ने कहा कि एक ओर पिता है, जो अपनी बेटी के दूसरी जगह जाने से दुखी है, जबकि दूसरी ओर महिला (बच्ची की मां) है जो नौकरी कर आगे बढ़ना चाहती है. अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि आज की तारीख तक बच्ची का संरक्षण मां के पास है, जिसने अकेले ही उसकी परवरिश की और बच्ची की उम्र को ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि वह अपनी मां के साथ ही रहे.

न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि अदालत एक मां की नौकरी की संभावनाओं से इनकार कर सकती है, जो नौकरी करने की इच्छुक है और उसे इस अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता. जरूरी है कि मां और पिता के हितों के बीच एक संतुलन कायम किया जाए और बच्ची के कल्याण पर भी गौर किया जाए.' अदालत ने महिला के पति की यह दलील स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया कि विदेश में जाकर रहने में बच्ची असहज महसूस करेगी. न्यायाधीश ने महिला को बच्ची को स्कूल की छुट्टियों के दौरान भारत लाने और प्रतिदिन उसके पिता से मिलवाने तथा बातचीत कराने का निर्देश दिया.

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