वाराणसी: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में आज जिला जज अजय कृष्ण विश्वास की अदालत में सुनवाई हुई, लेकिन हाईकोर्ट में प्रतिवादी यानी हिंदू पक्ष की तरफ से कार्बन डेटिंग की याचिका को स्वीकार कर लेने की वजह से जज ने आज इस मामले में कोई भी प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया और 5 दिसंबर को अगली तिथि मुकर्रर की है. इस बारे में प्रतिवादी पक्ष राखी सिंह के वकील अनुपम द्विवेदी ने बताया कि हाईकोर्ट में आज जो साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन जो कार्बन डेटिंग को लेकर यहां याचिका खारिज हुई थी. उसके संबंध में वादी संख्या 2 से 5 द्वारा एक सिविल रिविजन का आवेदन दाखिल किया गया था.
उन्होंने कहा कि नीचे ट्रायल चल रहा है जो इस मामले में आगे सुनवाई में दिक्कत आ सकती है. हाईकोर्ट ने इस मामले में दिसंबर के पहले हफ्ते में तारीख देने का आदेश दिया है. इसलिए आज जिला जज इन वाराणसी ने उस संदर्भ 5 दिसंबर की अगली तिथि सुनवाई के लिए मुकर्रर की है.
अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी ने बताया कि मुस्लिम यानी प्रतिवादी द्वारा जो आपत्ति थी. उस पर उन्होंने आपत्ति दी है कि जो कमीशन सर्वे हुआ था वह निराधार और झूठ है. शिवलिंग के साथ-साथ जो स्वस्तिक मूर्तियों के अवशेष त्रिशूल डमरू इत्यादि सर्वे के दौरान जो मिला है वह गलत है. उसका इन लोगों ने खंडन किया है. अधिवक्ता वादी विष्णु शंकर जैन, सुभाष शंकर चतुर्वेदी के कहने पर यह सारी रिपोर्ट बनाई गई है. वह सारी रिपोर्ट पर ही सवाल उठा रहे हैं. इस पर हमारी आपत्ति है. अभी हमने दाखिल नहीं की है क्योंकि हाई कोर्ट के द्वारा जो हमने हाई कोर्ट में सिविल रिवीजन कार्बन डेटिंग को लेकर दी गई है. वह स्वीकार कर ली गई है. इसलिए उस संदर्भ में जिला जज को निर्देशित किया गया है कि दिसंबर फर्स्ट वीक में कोई डेट लगाएं इसलिए 5 दिसंबर की डेट लगाई गई है. इसलिए अभी हमने कोई प्रार्थना पत्र नहीं दिया लेकिन आगे देंगे उनकी आपत्ति आ चुकी है मुझे प्रतिउत्तर देना है.
वहीं, अन्य प्रकरण में हुई सुनवाई के मामले में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती सहित अन्य के वाद के मामले में सुनवाई की अगली तारीख 18 नवंबर फिक्स की गई है. कोर्ट की पीठासीन अधिकारी सिविल जज सीनियर डिवीजन कुमुदलता त्रिपाठी के अवकाश पर रहने के कारण आज सुनवाई टल गई है. इस वाद में कहा गया है कि मां शृंगार गौरी प्रकरण में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के आदेश पर हुई कमीशन की कार्रवाई के दौरान मिले शिवलिंग की पूजा, आरती और राग-भोग की व्यवस्था जिला प्रशासन को करानी चाहिए थी. मगर, प्रशासन ने ऐसा नहीं किया है और न किसी सनातन धर्मी को इसके संबंध में नियुक्त किया है. कानूनन देवता की परिस्थिति एक जीवित बच्चे के समान होती है जिसे अन्न-जल आदि नहीं देना संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन है.
इसे भी पढे़ं- ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामलाः पक्षकार बनाने की 17 याचिकाओं को वाराणसी कोर्ट ने किया खारिज