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पहले भी हिमाचल और उत्तराखंड में घट चुकी हैं ऐसी प्राकृतिक घटनाएं

पहाड़ी राज्य हिमाचल और उत्तराखंड में इस साल कुदरत का कहर बरपा. हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में इस साल दो बार भूस्खलन हुआ. इसमें कई लोगों ने अपनी जान गवां दी. फरवरी महीने में उत्तराखंड के चमोली जिले में त्रासदी आई. यहां पर ग्लेशियर टूटने से 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई. आइए जानते हैं इन पहाड़ी राज्यों में इस साल आईं कुछ प्राकृतिक आपदाओं के बारे में...

उत्तराखंड-हिमाचल
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Published : Aug 11, 2021, 10:20 PM IST

Updated : Aug 12, 2021, 12:26 AM IST

हैदराबाद : पहाड़ी राज्य हिमाचल के किन्नौर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 5 पर भीषण भूस्खलन हुआ है. भूस्खलन में अब तक 10 लोगों की मौत हो गई, मलबे से 23 अन्य को सुरक्षित निकाल लिया गया है. किन्नौर के जिला मुख्यालय रिकांग पियो से 61 किलोमीटर दूर निगुलसारी के पास राजमार्ग पर एक बड़े हिस्से के भूस्खलन में एक ट्रक, एक सरकारी बस और अन्य वाहन दब गए.

हाल के दिनों में किन्नौर में यह दूसरी बड़ी प्राकृतिक आपदा है. पिछले महीने, नौ लोग, जिनमें से अधिकांश पर्यटक थे, भूस्खलन से मारे गए थे, क्योंकि सड़क पर बोल्डर गिर गए थे और लोग जिस वाहन में यात्रा कर रहे थे, पत्थर उससे टकरा गए थे.

यह मानसून राज्य के कांगड़ा जिले में भी बड़े भूस्खलन का कारण बना. इसमें 10 लोगों की जान चली गई थी. सिरमौर जिले में बड़े पैमाने पर भूस्खलन को कैप्चर करने वाले भयानक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं.

27-28 जुलाई को लाहौल-स्पीति जिले के ठंडे रेगिस्तान में असाधारण रूप से हुई भारी बारिश के कारण भी सात लोगों की मौत हो गई थी. जिले के केलांग और उदयपुर उपखंड में बादल फटने के बाद अचानक आई बाढ़ जैसी 12 घटनाएं सामने आईं. जिससे तोजिंग नाले (छोटी नदी) का जलस्तर बढ़ गया.

इस साल उत्तराखंड में भी इस तरह की घटनाएं देखने को मिली. सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली जिले में त्रासदी आई. यहां पर ग्लेशियर टूटने से 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई. इस हादसे ने 2013 के केदारनाथ हादसे की याद ताजा कर दी थी. हालांकि, वह इससे कहीं बड़ी और भीषण आपदा थी.

वहीं अप्रैल महीने में भारत-चीन सीमा के पास उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल में हिमस्खलन हुआ था, चपेट में आने से कम से कम दो लोगों की मौत हो गई और 291 मजदूरों को सुरक्षित बचाया गया था. इसके अलावा जुलाई महीने में टनकपुर-घाट राष्ट्रीय राजमार्ग लैंडस्लाइड हुआ था. इस हादसे में तकरीबन 150 लोग फंस गए थे.

उत्तराखंड में पिछले तीन दशक में आईं प्राकृतिक आपदाएं इस प्रकार हैं:

वर्ष 1991 उत्तरकाशी भूकंप: अविभाजित उत्तर प्रदेश में अक्टूबर 1991 में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया. इस आपदा में कम से कम 768 लोगों की मौत हुई और हजारों घर तबाह हो गए.

वर्ष 1998 माल्पा भूस्खलन: पिथौरागढ़ जिले का छोटा सा गांव माल्पा भूस्खलन के चलते बर्बाद हुआ. इस हादसे में 55 कैलाश मानसरोवर श्रद्धालुओं समेत करीब 255 लोगों की मोत हुई. भूस्खलन से गिरे मलबे के चलते शारदा नदी बाधित हो गई थी.

वर्ष 1999 चमोली भूकंप: चमोली जिले में आए 6.8 तीव्रता के भूकंप ने 100 से अधिक लोगों की जान ले ली. पड़ोसी जिले रुद्रप्रयाग में भारी नुकसान हुआ था. भूकंप के चलते सड़कों एवं जमीन में दरारें आ गई थीं.

वर्ष 2013 उत्तर भारत बाढ़: जून में एक ही दिन में बादल फटने की कई घटनाओं के चलते भारी बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं हुईं थीं. राज्य सरकार के आंकलन के मुताबिक, माना जाता है कि 5,700 से अधिक लोग इस आपदा में जान गंवा बैठे थे. सड़कों एवं पुलों के ध्वस्त हो जाने के कारण चार धाम को जाने वाली घाटियों में तीन लाख से अधिक लोग फंस गए थे.

यह भी पढ़ें-किन्नौर भूस्खलन : अब तक 10 लोगों की मौत, रेस्क्यू जारी

हैदराबाद : पहाड़ी राज्य हिमाचल के किन्नौर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 5 पर भीषण भूस्खलन हुआ है. भूस्खलन में अब तक 10 लोगों की मौत हो गई, मलबे से 23 अन्य को सुरक्षित निकाल लिया गया है. किन्नौर के जिला मुख्यालय रिकांग पियो से 61 किलोमीटर दूर निगुलसारी के पास राजमार्ग पर एक बड़े हिस्से के भूस्खलन में एक ट्रक, एक सरकारी बस और अन्य वाहन दब गए.

हाल के दिनों में किन्नौर में यह दूसरी बड़ी प्राकृतिक आपदा है. पिछले महीने, नौ लोग, जिनमें से अधिकांश पर्यटक थे, भूस्खलन से मारे गए थे, क्योंकि सड़क पर बोल्डर गिर गए थे और लोग जिस वाहन में यात्रा कर रहे थे, पत्थर उससे टकरा गए थे.

यह मानसून राज्य के कांगड़ा जिले में भी बड़े भूस्खलन का कारण बना. इसमें 10 लोगों की जान चली गई थी. सिरमौर जिले में बड़े पैमाने पर भूस्खलन को कैप्चर करने वाले भयानक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं.

27-28 जुलाई को लाहौल-स्पीति जिले के ठंडे रेगिस्तान में असाधारण रूप से हुई भारी बारिश के कारण भी सात लोगों की मौत हो गई थी. जिले के केलांग और उदयपुर उपखंड में बादल फटने के बाद अचानक आई बाढ़ जैसी 12 घटनाएं सामने आईं. जिससे तोजिंग नाले (छोटी नदी) का जलस्तर बढ़ गया.

इस साल उत्तराखंड में भी इस तरह की घटनाएं देखने को मिली. सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली जिले में त्रासदी आई. यहां पर ग्लेशियर टूटने से 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई. इस हादसे ने 2013 के केदारनाथ हादसे की याद ताजा कर दी थी. हालांकि, वह इससे कहीं बड़ी और भीषण आपदा थी.

वहीं अप्रैल महीने में भारत-चीन सीमा के पास उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल में हिमस्खलन हुआ था, चपेट में आने से कम से कम दो लोगों की मौत हो गई और 291 मजदूरों को सुरक्षित बचाया गया था. इसके अलावा जुलाई महीने में टनकपुर-घाट राष्ट्रीय राजमार्ग लैंडस्लाइड हुआ था. इस हादसे में तकरीबन 150 लोग फंस गए थे.

उत्तराखंड में पिछले तीन दशक में आईं प्राकृतिक आपदाएं इस प्रकार हैं:

वर्ष 1991 उत्तरकाशी भूकंप: अविभाजित उत्तर प्रदेश में अक्टूबर 1991 में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया. इस आपदा में कम से कम 768 लोगों की मौत हुई और हजारों घर तबाह हो गए.

वर्ष 1998 माल्पा भूस्खलन: पिथौरागढ़ जिले का छोटा सा गांव माल्पा भूस्खलन के चलते बर्बाद हुआ. इस हादसे में 55 कैलाश मानसरोवर श्रद्धालुओं समेत करीब 255 लोगों की मोत हुई. भूस्खलन से गिरे मलबे के चलते शारदा नदी बाधित हो गई थी.

वर्ष 1999 चमोली भूकंप: चमोली जिले में आए 6.8 तीव्रता के भूकंप ने 100 से अधिक लोगों की जान ले ली. पड़ोसी जिले रुद्रप्रयाग में भारी नुकसान हुआ था. भूकंप के चलते सड़कों एवं जमीन में दरारें आ गई थीं.

वर्ष 2013 उत्तर भारत बाढ़: जून में एक ही दिन में बादल फटने की कई घटनाओं के चलते भारी बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं हुईं थीं. राज्य सरकार के आंकलन के मुताबिक, माना जाता है कि 5,700 से अधिक लोग इस आपदा में जान गंवा बैठे थे. सड़कों एवं पुलों के ध्वस्त हो जाने के कारण चार धाम को जाने वाली घाटियों में तीन लाख से अधिक लोग फंस गए थे.

यह भी पढ़ें-किन्नौर भूस्खलन : अब तक 10 लोगों की मौत, रेस्क्यू जारी

Last Updated : Aug 12, 2021, 12:26 AM IST
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