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26 हफ्ते की प्रेग्नेंट लड़की को केरल HC ने दी अबॉर्शन की इजाजत, कहा- ये महिला की मर्जी - छात्रा अबॉर्शन न्यूज

केरल हाई कोर्ट (kerala high court) ने 26 सप्ताह की गर्भवती लड़की को अबॉर्शन कराने का अनुमति देने के साथ ही कहा है कि किसी महिला को बच्चा पैदा करना या उससे परहेज करना पूरी तरह से उसका निर्णय है.

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केरल हाई कोर्ट
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Published : Nov 5, 2022, 7:24 PM IST

एर्नाकुलम : केरल हाई कोर्ट (kerala high court) ने एक मामले में सुनवाई करते हुए 26 सप्ताह की गर्भवती लड़की को अबॉर्शन कराने का अनुमति दे दी है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी महिला को बच्चा पैदा करना या उससे परहेज करना पूरी तरह से उसका निर्णय है. उनके अधिकार पर कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता है.

हाई कोर्ट ने एमबीए की छात्रा को अबॉर्शन की अनुमति दी है. कोर्ट ने एमबीए छात्रा की याचिका पर विचार करते आदेश जारी किया, जिसने गर्भावस्था को मेडिकल ट्रीटमेंट से समाप्त करने का आदेश मांगा था जो 26 सप्ताह का गर्भ था. हालांकि गर्भधारण का समय अधिक हो गया था, इसलिए प्रेग्नेंसी मेडिकल टर्मिनेशन एक्ट 1971 के तहत कोई भी अस्पताल अबॉर्शन के लिए तैयार नहीं था. छात्रा ने कोर्ट को बताया कि उसने अपने दोस्त के साथ सहमति से संबंध बनाया था. फिजिकल होते वक्त उसने पूरा प्रोटेक्शन लिया था लेकिन इसके बावजूद वो प्रेग्नेंट हो गई.

एक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को तीव्र तनाव प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा था और गर्भावस्था जारी रखने से उसकी चिकित्सा संकट बढ़ सकता है, जिससे उसकी जान जोखिम में पड़ सकती है. कोर्ट ने इस मामले में संविधान के आर्टिकल 21 का भी जिक्र किया. कोर्ट ने कहा कि एक महिला के बच्चा पैदा करने या न करने पर कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता. उस पर किसी भी तरह कोई दवाब नहीं बना सकता. इससे पहले केरल हाईकोर्ट ने एक और मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर कोई प्रेग्नेंट महिला अबॉर्शन कराना चाहती है, तो उसे ऐसा करने के लिए अपने पति की मंजूरी की कोई जरूरत नहीं है.

ये भी पढ़ें - महिला आरक्षण विधेयक पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब, 6 हफ्ते की दी मोहलत

एर्नाकुलम : केरल हाई कोर्ट (kerala high court) ने एक मामले में सुनवाई करते हुए 26 सप्ताह की गर्भवती लड़की को अबॉर्शन कराने का अनुमति दे दी है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी महिला को बच्चा पैदा करना या उससे परहेज करना पूरी तरह से उसका निर्णय है. उनके अधिकार पर कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता है.

हाई कोर्ट ने एमबीए की छात्रा को अबॉर्शन की अनुमति दी है. कोर्ट ने एमबीए छात्रा की याचिका पर विचार करते आदेश जारी किया, जिसने गर्भावस्था को मेडिकल ट्रीटमेंट से समाप्त करने का आदेश मांगा था जो 26 सप्ताह का गर्भ था. हालांकि गर्भधारण का समय अधिक हो गया था, इसलिए प्रेग्नेंसी मेडिकल टर्मिनेशन एक्ट 1971 के तहत कोई भी अस्पताल अबॉर्शन के लिए तैयार नहीं था. छात्रा ने कोर्ट को बताया कि उसने अपने दोस्त के साथ सहमति से संबंध बनाया था. फिजिकल होते वक्त उसने पूरा प्रोटेक्शन लिया था लेकिन इसके बावजूद वो प्रेग्नेंट हो गई.

एक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को तीव्र तनाव प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा था और गर्भावस्था जारी रखने से उसकी चिकित्सा संकट बढ़ सकता है, जिससे उसकी जान जोखिम में पड़ सकती है. कोर्ट ने इस मामले में संविधान के आर्टिकल 21 का भी जिक्र किया. कोर्ट ने कहा कि एक महिला के बच्चा पैदा करने या न करने पर कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता. उस पर किसी भी तरह कोई दवाब नहीं बना सकता. इससे पहले केरल हाईकोर्ट ने एक और मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर कोई प्रेग्नेंट महिला अबॉर्शन कराना चाहती है, तो उसे ऐसा करने के लिए अपने पति की मंजूरी की कोई जरूरत नहीं है.

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