श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत कश्मीरी पत्रकार सज्जाद अहमद डार उर्फ सज्जाद गुल की हिरासत को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि 'हिरासत में लिए गए व्यक्ति के संबंध में सभी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए जिसके कारण वह अपनी ठीक से पैरवी नहीं कर सका.' अदालत ने कहा कि 'हिरासत में लिए गए सज्जाद डार के खिलाफ पीएसए को अमान्य घोषित किया जाता है और अदालत उनकी रिहाई का आदेश देती है.'
चीफ जस्टिस एन कोतिस्वर सिंह और जस्टिस एमए चौधरी ने 9 नवंबर को अपना फैसला सुनाया और कहा, 'पिछले साल 14 जनवरी को जिला मजिस्ट्रेट बांदीपोरा ने सज्जाद अहमद डार उर्फ सज्जाद गुल पर पीएसए के तहत मामला दर्ज किया था. जिसके बाद गुल ने एक रिट याचिका दायर कर दावा किया कि वह एक शांतिप्रिय और कानून का पालन करने वाला नागरिक था और उसने कभी सार्वजनिक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा में हस्तक्षेप किया था. उन्होंने यह भी दावा किया था कि पुलिस ने उन्हें बिना कारण गिरफ्तार किया और कई दिनों तक हिरासत में रखा और पुलिस स्टेशन हाजन में उनके खिलाफ तीन एफआईआर (जैसे 12/2021, 79/2021 और 02/2022) दर्ज कीं. उन्होंने यह भी दावा किया कि जब उन पर पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया था तब वह जम्मू सेंट्रल जेल में हिरासत में थे.'
दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि 'प्रतिवादियों (यानी जम्मू-कश्मीर प्रशासन, जिला मजिस्ट्रेट बांदीपोरा और SHO हाजिन पुलिस स्टेशन) ने दावा किया कि हिरासत में लिया गया गुल एक शिक्षित युवा होने के साथ-साथ एक पत्रकार भी है. इसके बावजूद, उसने सरकारी संस्थानों के खिलाफ लोगों को भड़काने के लिए सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों का इस्तेमाल किया. उसने लोगों को भड़काने और उनके बीच दुश्मनी की भावना पैदा करने की कोशिश की. उसे विभिन्न आपराधिक मामलों में कई बार हिरासत में लिया गया लेकिन फिर भी वह बाज नहीं आया और अपनी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां जारी रखीं.' अदालत ने यह भी कहा कि 1 दिसंबर को रिट कोर्ट ने गुल की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि 'याचिका में कोई सार नहीं' है.
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा, 'हमने सज्जाद गुल की हिरासत के संबंध में सभी दस्तावेजों का अध्ययन किया है. इन दस्तावेजों से पता चलता है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के खिलाफ एक ही पुलिस स्टेशन (हाजिन) में तीन एफआईआर दर्ज की गई थीं. उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 447, 336, 353, 120-बी, 153 बी, 505, 148, 336, 307 के तहत मामला दर्ज किया गया था. पहली एफआईआर में कहा गया है कि बंदी ने राजस्व विभाग के अतिक्रमण विरोधी अभियान में बाधा डाली.'
पीठ ने कहा, 'दूसरी एफआईआर में कहा गया कि बंदी ने गुंड जहांगीर मुठभेड़ के संबंध में झूठी और मनगढ़ंत कहानी बनाने के लिए अपने ट्विटर अकाउंट का इस्तेमाल किया, जिसमें इम्तियाज अहमद डार नाम का एक आतंकवादी मारा गया था. तीसरी एफआईआर में दावा किया गया है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया था जिसमें मारे गए उग्रवादी सलीम पारे के घर पर लोग देश विरोधी नारे लगा रहे थे. वह श्रीनगर के शालीमार में मुठभेड़ के दौरान मारा गया. इन्हीं सब कारणों से उन पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाया गया.'
दो मामले लंबित : पीठ ने कहा, 'क्या उत्तरदाताओं के अनुसार सज्जाद गुल की हरकतें राज्य की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा थीं? उस पर जाने से पहले, हमें मामले के दो और महत्वपूर्ण पहलुओं पर गौर करना होगा. पहला, क्या बंदी को उसकी हिरासत के संबंध में सभी दस्तावेज उपलब्ध कराए गए थे. बंदी को उसकी हिरासत के संबंध में केवल पांच पृष्ठ दिए गए थे जिसमें एक हिरासत आदेश, हिरासत की सूचना और हिरासत के आधार के तीन पृष्ठ शामिल थे. डोजियर, एफआईआर, गवाहों के बयान और अन्य संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए. अत: बंदी अपना प्रतिनिधित्व ठीक से नहीं कर सका जो उसका संवैधानिक अधिकार है. उनके खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज की गईं और 14 जनवरी 2022 को उन पर पीएसए लगाया गया. इसकी क्या जरूरत थी? भले ही उन्हें एक मामले में जमानत मिल गई हो, लेकिन उनके खिलाफ अभी भी दो मामले लंबित हैं. गुल पर 14 जनवरी को पीएसए लगाया गया था जबकि 15 जनवरी को उन्हें एक मामले में जमानत दे दी गई थी.'
पीठ ने कहा, 'गुल के खिलाफ लगाए गए आरोपों की भी पूरी व्याख्या नहीं की गई है. हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी का स्वयं मानना है कि बंदी ने पत्रकारिता में मास्टर डिग्री की है और एक पत्रकार के रूप में एक संगठन के साथ काम कर रहा है और उसका काम क्षेत्र में क्या हो रहा है, इसकी रिपोर्ट करना था. इसमें सुरक्षा बलों के ऑपरेशन भी शामिल हैं. हमें लगता है कि यह निवारक कानून का अवैध उपयोग है. इसके अलावा, हिरासत के आधारों में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने कभी झूठी कहानी बनाई थी और यह भी परिभाषित नहीं किया गया है कि उसने किस तरह से सार्वजनिक व्यवस्था और शत्रुता को उकसाया था.'
'हिरासत में लेने वाला अधिकारी दावा कर रहा है कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति सरकार की आलोचना कर रहा था लेकिन इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि उसका ट्वीट लोगों को कैसे भड़का रहा था. उत्तरदाताओं का दावा है कि गुल के ट्वीट के कारण सरकारी संस्थानों के खिलाफ सार्वजनिक आक्रोश फैल गया है. लेकिन कैसे और किस पोस्ट से कौन सा लेख लिखा, यह नहीं बताया गया है. वह 16 जनवरी 2021 से गिरफ्तार हैं.'
सज्जाद गुल को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि 'हिरासत में लिए गए व्यक्ति के खिलाफ दायर हिरासत आदेश अस्पष्ट है और हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी ने आदेश जारी करने से पहले अपने सही दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया है. इसके विपरीत, उन्होंने बंदी की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित कर दिया, जो कि है उनका संवैधानिक अधिकार है. इसलिए, अदालत पिछले साल 14 जनवरी को गुल पर लगाए गए जिला मजिस्ट्रेट बांदीपोरा के हिरासत आदेश (25/डीएमबी/पीएसए) को अमान्य घोषित करती है.'