कानपुर: शहर के लिए एक ऐतिहासिक जानकारी अचानक ही सामने आ गई है. 166 साल बाद कानपुर के वीर सिपाही आलम बेग की खोपड़ी को भारत लाने में वैज्ञानिकों को सफलता मिल गई है. ऐसे में अब पंजाब पुलिस दिल्ली में रहने वाले आलम बेग के परिवारीजनों से मुलाकात करेगी और उन्हें यह नरमुंड सौंपेगी. इसे एक बड़ी सफलता माना जा रहा है. वहीं, इस नरमुंड की जांच बीएचयू के जीन प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे करेंगे. यह वही प्रोफेसर हैं, जिन्होंने मार्च 2014 में अजनाला में मिले 200 से अधिक नरमुंडों की डीएनए जांच को लेकर लगातार अपना शोध कार्य जारी रखा है. देश और दुनिया के साथ ही अब इस मामले की चर्चा पूरे शहर में जोरों पर है.
कैसे हुई शिनाख्त: इस पूरे मामले पर बीएचयू के प्रोफेसर (जीन) ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि 1963 में लंदन में एक कपल को एक पब में आलम बेग (प्रो. वैगनर की रिसर्च परिणाम के आधार पर जो दावा किया गया) का नरमुंड दिखा. कपल ने फौरन ही उस नरमुंड को ले जाने की इच्छा जताई. जब उन्हें नरमुंड मिल गया तो खोपड़ी की आंखों के पास बने छिद्र में एक चिट्ठी जैसा कागज था. इसमें आलम बेग की पूरी जानकारी लिखी थी. उस कपल ने यूके में प्रो. वैगनर से संपर्क किया. प्रो. वैगनर ने उस नरमुंड पर शोध किया और कई सालों बाद जो परिणाम उन्हें मिले उसके आधार पर यह दावा कर दिया कि यह खोपड़ी भारत के वीर सपूत आलम बेग की है.
वहीं, इस मामले में चंडीगढ़ विवि के प्रो. जेएस सहरावत ने केंद्र और ब्रिटिश सरकार के अलावा यूके के इतिहासकार ए. वैगनर से संपर्क किया था. इसके बाद खोपड़ी को भारत लाने का रास्ता साफ हो गया. पिछले हफ्ते ही यह खोपड़ी प्रो. सहरावत के पास पहुंच गई. अब, खोपड़ी के भारत पहुंचने पर अजनाला कांड का खुलासा करने वाले इतिहासकार सुरेंद्र कोचर व उनकी टीम का हिस्सा रहे प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने खुशी जताई है.
जल्द अंतिम संस्कार होगा, फिर डीएनए जांच पर शोध: प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने ईटीवी भारत संवाददाता से बातचीत के दौरान बताया कि पहले खोपड़ी को परिजनों को सौंपा जाएगा. उसके बाद अंतिम संस्कार की तैयारी होगी. हालांकि, इसी बीच डीएनए जांच के लिए कवायद शुरू कर देंगे. ताकि, जो अन्य रहस्य हैं, उनसे भी पर्दा उठ सके और सटीक जानकारी सामने आ सके.
1857 में बगावती भारतीय सैनिकों का नेतृत्व कर रहे थे आलम बेग : आलम बेग ने पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बगावत की थी. उन्होंने कई अंग्रेज अफसरों को मार गिराया था. बाद में उन्हें अंग्रेजों ने कानपुर से पकड़कर तोप से उड़ा दिया था. इसके बाद उनकी खाल निकालकर उनकी खोपड़ी को ब्रिटेन में कई सालों तक वार ट्राफी के तौर पर रखे रखा. जब इतिहासकार प्रो.वैगनर को आलम बेग की खोपड़ी मिली थी तो उसमें एक चिट्ठी थी. उसमें लिखा था कि आलम बेग की मृत्यु के दौरान उम्र 32 वर्ष थी. कद पांच फीट सात इंच दर्ज किया गया था. कैस्टिलो नाम का व्यक्ति उस खोपड़ी को एक पब में रखकर भूल गया था. इसके बाद खोपड़ी को लेकर हुए शोध कार्यों से कड़ी दर कड़ी आलम बेग की कहानी सभी के सामने आ गई. अब, वैज्ञानिक इस खोपड़ी को ले जाकर उनके परिजनों के डीएनए से मैच कराएंगे. इसके बाद उन्हें वतन की मिट्टी में सदा के लिए दफनाया जाएगा. वहीं, इस बड़े और ऐतिहासिक घटनाक्रम से अजनाला कांड के मृतकों की पहचान और उनकी मुक्ति की आस भी जग उठी है.
यह भी पढ़ें: हाईटेक होंगे आरटीओ के प्रवर्तन दस्ते, लेजर स्पीड गन से लैस मिलेंगे 66 हाईटेक इंटरसेप्टर वाहन