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हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, भारत में कोई महिला निर्दोष को रेप या यौन उत्पीड़न में नहीं फंसाएगी - High Court Important decision

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया. इस पर कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई महिला किसी निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से रेप या यौन उत्पीड़न में मुकदमे में नहीं फंसाएगी.

हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी
हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी
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Published : Jun 2, 2023, 11:03 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि किसी निर्दोष को फंसाने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी बनाना किसी महिला के लिए असामान्य होगा. हमारे देश में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला किसी को झूठा फंसाने के बजाय चुपचाप सहती रहेगी. एक रेप पीड़िता का कोई भी बयान एक महिला के लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है. जब तक वह यौन अपराध की शिकार नहीं होती, तब तक वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोष नहीं देगी.

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने 17 वर्षीय किशोरी के साथ रेप के आरोपी आशाराम को जमानत देने से इंकार करते हुए की. कोर्ट ने कहा कि भारत में कोई महिला किसी निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से रेप या यौन उत्पीड़न में मुकदमे में नहीं फंसाएगी. न्यायालय को पीड़िता के साक्ष्य की सराहना करते समय देश में विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि भारत में जिन महिलाओं ने यौन आक्रामकता का अनुभव किया है. वे किसी पर झूठा आरोप लगाने की बजाय चुपचाप सहन करती हैं.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी 22 अगस्त 2022 को नाबालिग को जबरन एक सुनसान जगह पर ले गया. जहां उसने यौन शोषण किया. घटना के बारे में पुलिस में शिकायत करने की धमकी देने के बाद अगले दिन उसने उसे उसके गांव के बाहर छोड़ दिया. एसपी संभल के हस्तक्षेप के बाद 31 अगस्त 2022 को आईपीसी और पोक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत राजपुरा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई. आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया.

बचाव पक्ष का तर्क था कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान में विशेष रूप से आरोप नहीं लगाया गया है. इसके अलावा मेडिकल जांच रिपोर्ट में कोई चोट नहीं बताई गई है. कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयानों में पाया कि उसने स्पष्ट रूप से आरोपी पर उसे जबरन कैद करने और रेप करने का आरोप लगाया था. कोर्ट ने मेडिकल जांच के संबंध में बचाव पक्ष की दलील को खारिज कर दिया.

साथ ही ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों पर विचार करते हुए कहा कि जब तक अन्यथा सिद्ध न हो जाए. यौन हमले की पीड़िता वास्तविक अपराधी के अलावा किसी और पर आरोप नहीं लगाएगी. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उक्त टिप्पणियां इस जमानत अर्जी के निर्धारण की सीमा तक सीमित हैं और किसी भी तरह मामले की योग्यता पर अभिव्यक्ति के रूप में नहीं मानी जाएंगी. ट्रायल कोर्ट पेश किए जाने वाले सुबूतों के आधार पर अपने स्वतंत्र निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होंगी.

यह भी पढे़: वाराणसी ट्रांसपोर्ट नगर भूमि अधिग्रहण में किसानों को आंशिक राहत

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि किसी निर्दोष को फंसाने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी बनाना किसी महिला के लिए असामान्य होगा. हमारे देश में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला किसी को झूठा फंसाने के बजाय चुपचाप सहती रहेगी. एक रेप पीड़िता का कोई भी बयान एक महिला के लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है. जब तक वह यौन अपराध की शिकार नहीं होती, तब तक वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोष नहीं देगी.

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने 17 वर्षीय किशोरी के साथ रेप के आरोपी आशाराम को जमानत देने से इंकार करते हुए की. कोर्ट ने कहा कि भारत में कोई महिला किसी निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से रेप या यौन उत्पीड़न में मुकदमे में नहीं फंसाएगी. न्यायालय को पीड़िता के साक्ष्य की सराहना करते समय देश में विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि भारत में जिन महिलाओं ने यौन आक्रामकता का अनुभव किया है. वे किसी पर झूठा आरोप लगाने की बजाय चुपचाप सहन करती हैं.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी 22 अगस्त 2022 को नाबालिग को जबरन एक सुनसान जगह पर ले गया. जहां उसने यौन शोषण किया. घटना के बारे में पुलिस में शिकायत करने की धमकी देने के बाद अगले दिन उसने उसे उसके गांव के बाहर छोड़ दिया. एसपी संभल के हस्तक्षेप के बाद 31 अगस्त 2022 को आईपीसी और पोक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत राजपुरा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई. आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया.

बचाव पक्ष का तर्क था कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान में विशेष रूप से आरोप नहीं लगाया गया है. इसके अलावा मेडिकल जांच रिपोर्ट में कोई चोट नहीं बताई गई है. कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयानों में पाया कि उसने स्पष्ट रूप से आरोपी पर उसे जबरन कैद करने और रेप करने का आरोप लगाया था. कोर्ट ने मेडिकल जांच के संबंध में बचाव पक्ष की दलील को खारिज कर दिया.

साथ ही ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों पर विचार करते हुए कहा कि जब तक अन्यथा सिद्ध न हो जाए. यौन हमले की पीड़िता वास्तविक अपराधी के अलावा किसी और पर आरोप नहीं लगाएगी. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उक्त टिप्पणियां इस जमानत अर्जी के निर्धारण की सीमा तक सीमित हैं और किसी भी तरह मामले की योग्यता पर अभिव्यक्ति के रूप में नहीं मानी जाएंगी. ट्रायल कोर्ट पेश किए जाने वाले सुबूतों के आधार पर अपने स्वतंत्र निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होंगी.

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