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फर्जी जमानत दिलाने का यूपी में चल रहा बड़ा खेल, अपराधी जेल से छूट रहे, आम आदमी हो रहा परेशान - Fake Papers

Bail by Fake Papers: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में फर्जी जमानत लेने का खेल चल रहा है. बदमाश जमानत पर रिहा हो रहे हैं लेकिन, जमानत कौन ले रहा यह न खुद अपराधी जानता है और ना ही पुलिस वाले. आईए जानते हैं ऐसा कैसे हो रहा है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 26, 2023, 1:41 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में फर्जी जमानत लेने का खेल इन दिनों जोरशोर से चल रहा है. बदमाश जमानत के फर्जी कागजात लगाकर जेल से रिहा हो जा रहे हैं. रिहा होने के बाद अपराधी कोर्ट में पेश नहीं होता और फरार हो जाता है. ऐसे में अदालत उस व्यक्ति को पकड़ती है जिसके नाम के कागज से जमानत ली गई है. इसी चक्कर में फंस गए हैं लखनऊ के रहने वाले वकील शिव बरन सिंह. जो डेढ़ वर्ष से परेशान हैं.

शिव बरन सिंह को करीब डेढ़ साल पहले एक नोटिस आया था, जिससे पता चला कि उन्होंने जिस अपराधी की जमानत ली थी, वह पेशी पर कोर्ट नहीं आ रहा. ऐसे में वो खुद कोर्ट में पेश हों. शिव बरन परेशान हो कर थाने और कोर्ट के चक्कर लगाने लगे और फिर पता चला कि किसी ने उनकी खतौनी लगा कर फर्जी जमानत ले ली. शिवबरन ने कोर्ट में सबूत दिए और पचड़े से पीछा छुड़ाया.

Bail by Fake Papers
फर्जी जमानत का शिकार हुए लखनऊ के रहने वाले वकील शिव बरन सिंह.

पूरे खानदान के नाम पर ली गई जमानतः लेकिन, उन्हें क्या मालूम था कि यह दौर अभी लंबा चलने वाला है. शिवबरन को बीते डेढ़ वर्ष में 14 नोटिस मिल चुके हैं, जिसमें उनके, उनकी पत्नी और भाई के नाम से ली गई जमानत पर अपराधी जेल से बाहर निकला. लेकिन, पेशी पर कोर्ट नहीं पहुंच रहा था. शिवबरन एक बड़े गैंग का शिकार हुए हैं, जो फर्जी दस्तावेज लगाकर अपराधियों को जमानत दिलवा जेल से बाहर निकलवा रहा है.

कैसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासाः लखनऊ के मोहनलालगंज अंतर्गत अमवा मुर्तजापुर के रहने वाले शिव बरन सिंह के नाम काफी जमीन है. इस जमीन पर उनके भाई बंशी लाल, माता प्रसाद और पत्नी ऊषा सिंह हिस्सेदार हैं. शिव बरन ने बताया कि हाल ही में उनके पास स्थानीय लेखपाल की कॉल आई और बताया कि उनकी पत्नी ऊषा सिंह ने चिनहट थाने में दर्ज एक मुकदमे में जेल में बंद अपराधी शिवम वर्मा गोल्डन की जमानत ली है, उसका सत्यापन होना है. शिव बरन ने जमानत के कागजात देखे तो उन्हें समझ में आ गया कि जो सिलसिला डेढ़ वर्ष पहले शुरू हुआ था, वह अभी थमा नहीं है.

क्या है जमानत लेने की कहानीः पीड़ित शिव बरन बताते हैं कि वो वकील हैं और सभी भाई किसानी करते हैं. डेढ़ वर्ष पहले एक धोखाधड़ी के मामले में जेल में बंद आरोपी जमानत होने पर पेशी में नहीं जा रहा था. ऐसे में उनके पास नोटिस आई, जिसमें लिखा था कि उनकी पत्नी ऊषा सिंह ने अपनी खौतानी के आधार पर जिस आरोपी को जमानत ली थी, वह पेशी पर नहीं आ रहा है. ऐसे में या तो आरोपी को कोर्ट के सामने पेश करें अन्यथा खुद पेश हों.

पत्नी के बाद भाई के नाम पर ली गई जमानतः पीड़ित ने बताया कि उस जमानत में जो भी कागजात लगाए गए थे वह सभी फर्जी थे. उन्होंने तत्काल कोर्ट का रुख किया और अपने दस्तावेज दिखा कर इस झमेले से छुटकारा पा लिया. लेकिन, दो माह बाद एक बार फिर उन्हें वैसी ही एक नोटिस आई. इस बार जेल से छुटने वाला आरोपी कोई और था और जमानत लेने वाले में उनके भाई का नाम था.

14 बार फर्जी तरीके से ली गई जमानतः पीड़ित ने बताया कि अब तक 14 लोग उनकी खतौनी के आधार पर जमानत ले चुके है. हैरानी की बात यह है कि इतनी बार जमानत के लिए उनकी खतौनी का इस्तमाल हुआ बावजूद इसके दो बार ही उनका सत्यापन हुआ, बाकी बार जमानत भी मिल गई, अपराधी जेल से बाहर भी आ गया और उन्हें जानकारी नोटिस मिलने पर हुई. यही वजह है कि शिव बरन अब तहसीलदार, एसडीएम से लेकर थाने और कोर्ट के चक्कर लगा कर यह साबित करने में लगे है कि उन्होंने किसी की भी जमानत नहीं ली है.

कैसे चलता है फर्जी जमानत का खेलः हाईकोर्ट के अधिवक्ता प्रिंस लेनिन बताते हैं कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जमानत लेने का खेल खेलने वाले कई गैंग एक्टिव है. इसमें वकील या वकील का मुंशी, पुलिस, तहसील के कर्मचारी और खुद जेल में बंद कैदी या उसके लोग शामिल होते हैं. इसमें जमानत लेने के लिए किसी की भी तहसील या लोकवाणी केंद्र से खतौनी निकलवा लेते हैं. इसके बाद जमीन के खातेदार के नाम का फर्जी आधार कार्ड बनवाते हैं और किसी फर्जी व्यक्ति को जमानतदार बनाकर पेश कर देते हैं.

सत्यापन में रिपोर्ट भी बदलवा देते हैं गिरोह के सदस्यः इसमें खेल और भी खेला जाता है, जिसमें कोर्ट के द्वारा सत्यापन के लिए जब जमानत के कागज थाने या फिर तहसील भेजे जाते हैं तो या तो ये गैंग रास्ते में सेटिंग से उसमें फर्जी मुहर लगाकर रिपोर्ट लिख देता है या फिर पुलिस और तहसील कर्मचारी से सेटिंग करके अपने मन मुताबिक रिपोर्ट लिखवा लेते हैं. जिसके बाद अभियुक्त को जमानत मिल जाती है और फिर कभी वह पेशी पर पेश नहीं होता और फरार हो जाता है.

पुलिस सिर्फ कर रही शिकायत का इंतजारः एडीसीपी ईस्ट सैय्यद अली अब्बास ने बताया कि, जिस शिवम वर्मा गोल्डन की जमानत फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ली गई है, हम उसको रद्द करवाएंगे. इसके अलावा यदि पीड़ित तहरीर देता है तो मुकदमा लिख कर कार्रवाई की जाएगी. संयुक्त पुलिस कमिश्नर कानून व्यवस्था उपेंद्र अग्रवाल ने बताया कि पुलिस तभी कार्रवाई कर सकेगी जब न्यायालय या तो जिसके दस्तावेजों के आधार पर जमानत ली गई है वह शिकायत करता है. यदि ऐसी शिकायत मिलती है तो जांच कर इस गैंग के लोगों की गिरफ्तारी की जाएगी.

ये भी पढ़ेंः पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में दबंगों ने ट्रैफिक इंस्पेक्टर को पीटा, जमकर हुआ हंगामा

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में फर्जी जमानत लेने का खेल इन दिनों जोरशोर से चल रहा है. बदमाश जमानत के फर्जी कागजात लगाकर जेल से रिहा हो जा रहे हैं. रिहा होने के बाद अपराधी कोर्ट में पेश नहीं होता और फरार हो जाता है. ऐसे में अदालत उस व्यक्ति को पकड़ती है जिसके नाम के कागज से जमानत ली गई है. इसी चक्कर में फंस गए हैं लखनऊ के रहने वाले वकील शिव बरन सिंह. जो डेढ़ वर्ष से परेशान हैं.

शिव बरन सिंह को करीब डेढ़ साल पहले एक नोटिस आया था, जिससे पता चला कि उन्होंने जिस अपराधी की जमानत ली थी, वह पेशी पर कोर्ट नहीं आ रहा. ऐसे में वो खुद कोर्ट में पेश हों. शिव बरन परेशान हो कर थाने और कोर्ट के चक्कर लगाने लगे और फिर पता चला कि किसी ने उनकी खतौनी लगा कर फर्जी जमानत ले ली. शिवबरन ने कोर्ट में सबूत दिए और पचड़े से पीछा छुड़ाया.

Bail by Fake Papers
फर्जी जमानत का शिकार हुए लखनऊ के रहने वाले वकील शिव बरन सिंह.

पूरे खानदान के नाम पर ली गई जमानतः लेकिन, उन्हें क्या मालूम था कि यह दौर अभी लंबा चलने वाला है. शिवबरन को बीते डेढ़ वर्ष में 14 नोटिस मिल चुके हैं, जिसमें उनके, उनकी पत्नी और भाई के नाम से ली गई जमानत पर अपराधी जेल से बाहर निकला. लेकिन, पेशी पर कोर्ट नहीं पहुंच रहा था. शिवबरन एक बड़े गैंग का शिकार हुए हैं, जो फर्जी दस्तावेज लगाकर अपराधियों को जमानत दिलवा जेल से बाहर निकलवा रहा है.

कैसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासाः लखनऊ के मोहनलालगंज अंतर्गत अमवा मुर्तजापुर के रहने वाले शिव बरन सिंह के नाम काफी जमीन है. इस जमीन पर उनके भाई बंशी लाल, माता प्रसाद और पत्नी ऊषा सिंह हिस्सेदार हैं. शिव बरन ने बताया कि हाल ही में उनके पास स्थानीय लेखपाल की कॉल आई और बताया कि उनकी पत्नी ऊषा सिंह ने चिनहट थाने में दर्ज एक मुकदमे में जेल में बंद अपराधी शिवम वर्मा गोल्डन की जमानत ली है, उसका सत्यापन होना है. शिव बरन ने जमानत के कागजात देखे तो उन्हें समझ में आ गया कि जो सिलसिला डेढ़ वर्ष पहले शुरू हुआ था, वह अभी थमा नहीं है.

क्या है जमानत लेने की कहानीः पीड़ित शिव बरन बताते हैं कि वो वकील हैं और सभी भाई किसानी करते हैं. डेढ़ वर्ष पहले एक धोखाधड़ी के मामले में जेल में बंद आरोपी जमानत होने पर पेशी में नहीं जा रहा था. ऐसे में उनके पास नोटिस आई, जिसमें लिखा था कि उनकी पत्नी ऊषा सिंह ने अपनी खौतानी के आधार पर जिस आरोपी को जमानत ली थी, वह पेशी पर नहीं आ रहा है. ऐसे में या तो आरोपी को कोर्ट के सामने पेश करें अन्यथा खुद पेश हों.

पत्नी के बाद भाई के नाम पर ली गई जमानतः पीड़ित ने बताया कि उस जमानत में जो भी कागजात लगाए गए थे वह सभी फर्जी थे. उन्होंने तत्काल कोर्ट का रुख किया और अपने दस्तावेज दिखा कर इस झमेले से छुटकारा पा लिया. लेकिन, दो माह बाद एक बार फिर उन्हें वैसी ही एक नोटिस आई. इस बार जेल से छुटने वाला आरोपी कोई और था और जमानत लेने वाले में उनके भाई का नाम था.

14 बार फर्जी तरीके से ली गई जमानतः पीड़ित ने बताया कि अब तक 14 लोग उनकी खतौनी के आधार पर जमानत ले चुके है. हैरानी की बात यह है कि इतनी बार जमानत के लिए उनकी खतौनी का इस्तमाल हुआ बावजूद इसके दो बार ही उनका सत्यापन हुआ, बाकी बार जमानत भी मिल गई, अपराधी जेल से बाहर भी आ गया और उन्हें जानकारी नोटिस मिलने पर हुई. यही वजह है कि शिव बरन अब तहसीलदार, एसडीएम से लेकर थाने और कोर्ट के चक्कर लगा कर यह साबित करने में लगे है कि उन्होंने किसी की भी जमानत नहीं ली है.

कैसे चलता है फर्जी जमानत का खेलः हाईकोर्ट के अधिवक्ता प्रिंस लेनिन बताते हैं कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जमानत लेने का खेल खेलने वाले कई गैंग एक्टिव है. इसमें वकील या वकील का मुंशी, पुलिस, तहसील के कर्मचारी और खुद जेल में बंद कैदी या उसके लोग शामिल होते हैं. इसमें जमानत लेने के लिए किसी की भी तहसील या लोकवाणी केंद्र से खतौनी निकलवा लेते हैं. इसके बाद जमीन के खातेदार के नाम का फर्जी आधार कार्ड बनवाते हैं और किसी फर्जी व्यक्ति को जमानतदार बनाकर पेश कर देते हैं.

सत्यापन में रिपोर्ट भी बदलवा देते हैं गिरोह के सदस्यः इसमें खेल और भी खेला जाता है, जिसमें कोर्ट के द्वारा सत्यापन के लिए जब जमानत के कागज थाने या फिर तहसील भेजे जाते हैं तो या तो ये गैंग रास्ते में सेटिंग से उसमें फर्जी मुहर लगाकर रिपोर्ट लिख देता है या फिर पुलिस और तहसील कर्मचारी से सेटिंग करके अपने मन मुताबिक रिपोर्ट लिखवा लेते हैं. जिसके बाद अभियुक्त को जमानत मिल जाती है और फिर कभी वह पेशी पर पेश नहीं होता और फरार हो जाता है.

पुलिस सिर्फ कर रही शिकायत का इंतजारः एडीसीपी ईस्ट सैय्यद अली अब्बास ने बताया कि, जिस शिवम वर्मा गोल्डन की जमानत फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ली गई है, हम उसको रद्द करवाएंगे. इसके अलावा यदि पीड़ित तहरीर देता है तो मुकदमा लिख कर कार्रवाई की जाएगी. संयुक्त पुलिस कमिश्नर कानून व्यवस्था उपेंद्र अग्रवाल ने बताया कि पुलिस तभी कार्रवाई कर सकेगी जब न्यायालय या तो जिसके दस्तावेजों के आधार पर जमानत ली गई है वह शिकायत करता है. यदि ऐसी शिकायत मिलती है तो जांच कर इस गैंग के लोगों की गिरफ्तारी की जाएगी.

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