लखनऊ: अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्पष्ट किया है कि एक मुस्लिम महिला को अपने पति से तलाक के बाद भी भरण-पोषण पाने का हक है. न्यायालय ने कहा कि यह हक उसे सिर्फ इद्दत की अवधि तक नहीं बल्कि महिला द्वारा दूसरी शादी कर लेने तक होता है.
यह निर्णय न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव, प्रथम की एकल पीठ ने अनवर उर्फ शानू की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए, पारित किया है. याची द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें विचारण अदालत ने याची की पत्नी व एक वर्ष की बेटी के सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर वाद को स्वीकार करते हुए, याची को पत्नी को तीन हजार रुपये व अवयस्क बेटी को दो हजार रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था. याची सरकारी नौकरी में है. कहा गया कि याची ने मुस्लिम विधि के तहत अपनी पत्नी को तलाक दिया है व उसे मेहर की रकम एक लाख 55 हजार रुपये तथा आभूषण इत्यादि भी दे दिए गए हैं. दलील दी गई कि वर्तमान मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों के आलोक में पत्नी यदि अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है तो सम्बंधित वक्र्फ बोर्ड से भरण-पोषण की धनराशि प्राप्त कर सकती है. याचिका का पत्नी की ओर से विरोध किया गया.
दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात न्यायालय अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि तलाक़ दिए जाने का तथ्य साक्ष्य के आधार पर सिद्ध होना चाहिए, तलाक़ दिए जाने का तथ्य लिखित कथन में अभिलिखित करने मात्र से तलाक़ स्वतः प्रभावी हो जाने की अवधारणा नहीं की जा सकती है. न्यायालय ने आगे कहा कि यद्यपि याची यह सिद्ध करने में असफल रहा है कि उसने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया है लेकिन यदि यह मान भी लिया जाए तो भी डैनियल लतीफी व शमीमा फारुकी मामले में शीर्ष अदालत यह तय कर चुकी है कि एक मुस्लिम पत्नी अपने पति से तलाक़ के उपरान्त भी दूसरी शादी न करने तक की अवधि तक भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत आवेदन दाखिल कर सकती है.
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