प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के विवादित ज्ञानवापी परिसर को सील करने और गैर हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने याचिका वापस लेने के आधार पर दिया है.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान याची की ओर से कहा गया कि मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़ने के बहाने परिसर में दाखिल होते हैं और उसे नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह भी कहा कि रोजाना बड़ी संख्या में नमाजी परिसर में दाखिल होते हैं, इसलिए कोर्ट उनके अधिकारों की रक्षा करें. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि 'आपके पक्ष को सभी अधिकार मिले हैं. आप अगर चाहते हैं कि हम गैर हिंदुओं का प्रवेश प्रतिबंधित कर दें या संख्या सीमित कर दें तो फिलहाल ऐसा नहीं हो सकता. हाईकोर्ट निचली अदालत में चल रहे दीवानी मुकदमे पर भी सीधे तौर पर दखल नहीं देगा. याची से कहा कि 'अगर आप जनहित याचिका वापस लेना चाहते हैं तो ले सकते हैं'.
वाराणसी में मंगलवार को भी ज्ञानवापी परिसर की एएसआई सर्वे की कार्यवाही जारी है. सोमवार को टीम ने मुख्य गुंबद के साथ ही तहखाने और पश्चिमी दीवार की जांच की थी. दोपहर में थोड़ी देर के लिए सर्वे की कार्यवाही रोक दी गई थी. इसके बाद फिर से सर्वे शुरू कर दिया गया. वहीं, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें एक शख्स परिसर में सीढ़ियों के सहारे मुख्य गुंबद पर चढ़ता दिख रहा है. हालांकि, पुलिस का कहना है कि इस संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.
इस दौरान यह बात भी सामने आई कि याची के पास अपनी मांग के संदर्भ में दीवानी मुकदमे में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने का वैकल्पिक उपचार भी है. इस पर याची के अधिवक्ता ने कहा कि हम याचिका वापस लेना चाहते हैं. उसके बाद कोर्ट ने वापस लेने के आधार पर कोर्ट ने जनहित याचिका खारिज कर दी.
वाराणसी की अदालत में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा की अनुमति के लिए मुकदमा दाखिल करने वाली राखी सिंह, जितेंद्र सिंह बिसेन व अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका में प्रमुख रूप से तीन मांग की गई थीं. इनमें ज्ञानवापी परिसर में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर पाबंदी, निचली अदालत का फैसला आने तक परिसर को सील करने और परिसर में मिले हिंदू प्रतीक चिह्नों को संरक्षित किए जाने का आदेश देने की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल, काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के अधिवक्ता विनीत संकल्प भी उपस्थित रहे.