नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने पेशेवरों की परिभाषा में वकीलों को शामिल करने की मांग वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर गुरुवार को केंद्र से जवाब मांगा ताकि वे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) विकास अधिनियम, 2006 के तहत विभिन्न योजनाओं का लाभ ले सकें.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने मामले में अगली सुनवाई 12 अक्टूबर को तय करते हुए केंद्र को नोटिस जारी किया और उसे अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
याचिकाकर्ता अभिजीत मिश्रा ने तर्क दिया कि एमएसएमई मंत्रालय अधिनियम के तहत विभिन्न योजनाओं के लिए अधिवक्ताओं को पात्र पेशेवर नहीं मानता है.
याचिका में कहा गया है कि एमएसएमई अधिनियम के तहत वस्तु एवं सेवा कर पहचान संख्या (जीएसटीआईएन), व्यापार पैन या कर कटौती एवं संग्रह खाता संख्या (टीएएन) होने का पात्रता मानदंड विकास योजनाओं तक पहुंचने के लिए अनिवार्य आवश्यकता अधिवक्ताओं के कल्याण के खिलाफ है.
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उच्च न्यायालय ने पिछले साल इसी तरह की उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा था कि वह इस पर विचार नहीं करना चाहता और जब कोई वकील याचिका दायर करेगा तब हम इस पर गौर करेंगे.
मिश्रा ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह इस समय कानून के छात्र हैं जबकि दूसरी याचिकाकर्ता पायल बहल वकालत कर रही हैं. याचिका में दावा किया गया कि वकीलों द्वारा अपने ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के आधार पर, उन्हें एमएसएमई अधिनियम में दी गई उद्यम की परिभाषा के तहत माना जा सकता है.
(पीटीआई)