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थर्ड जेंडर भी बन सकते हैं महिला या पुरुष, जानिए कैसे होता है जेंडर चेंज - काशी हिंदू विश्वविद्यालय

धर्म नगरी काशी में किन्नरों के लिए एक नई शुरुआत हुई है. जो उनके लिए वरदान साबित हो रही है. इस सुविधा का लाभ देश में कहीं भी रहने वाले थर्ड जेंडर वाराणसी में आकर उठा सकते हैं. स्पेशल रिपोर्ट में जानिए थर्ड जेंडर को बनारस में मिलने वाली सुविधा के बारे में...

बनारस में थर्ड जेंडर के लिए सुविधाएं
बनारस में थर्ड जेंडर के लिए सुविधाएं
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Published : May 25, 2023, 8:33 PM IST

स्पेशल रिपोर्ट में जानिए थर्ड जेंडर की सर्जरी के बारे में.

वाराणसी: अब तक थर्ड जेंडर के लोगों की सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि यदि वह अपनी सर्जरी करा कर आम जीवन जीना चाहते हैं. तो उनकी आर्थिक स्थिति उन्हें इस बात की उन्हें इजाजत नहीं देती. क्योंकि सर्जरी का खर्च लाखों में होता है. ऐसे में धर्म नगरी काशी में एक नई शुरुआत हुई है. यह नई शुरुआत थर्ड जेंडर की जीवन में एक वरदान की तरह है. यहां 50 हजार से कम रुपये में थर्ड जेंडर की सफल सर्जरी की जा रही है.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के यूरोलॉजी विभाग में थर्ड जेंडर के प्राइवेट पार्ट को बिल्कुल सामान्य महिला, पुरुष के प्राइवेट पार्ट के अनुरूप बनाया जा रहा है. ये आंत के टुकड़े व चमड़ी से तैयार किए जा रहे हैं. बनारस ही नहीं बल्कि आसपास के थर्ड जेंडर आकर के इस सर्जरी को कराने की इच्छा भी रख रहे हैं. अब तक 3 से ज्यादा लोगों की सर्जरी हो चुकी है. खास बात यह है कि इस सर्जरी के बाद वह आम जनमानस की तरह अपना जीवन भी व्यतीत कर रहे हैं.

वाराणसी में थर्ड जेंडर की सर्जरी कर उनके मुताबिक रूप दिया जा रहा है.
वाराणसी में थर्ड जेंडर की सर्जरी कर नया जीवन दे रहे डाक्टर.

जीन के आधार पर होता है इलाज: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के यूरोलॉजी विभाग में प्रोफेसर और डॉक्टर अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं. इसके साथ ही सर्जरी कराने वाले की पहचान पूरी तरीके से गुप्त भी रखी गई है. एनाटॉमी विभाग की प्रो. रायॅना सिंह ने बताया कि सबसे पहले ट्रांसजेंडर की हार्मोन की जांच की जाती है. इससे पता चलता है कि उसमें किस हार्मोन की कमी और किसकी मात्रा ज्यादा है. जीन के आधार पर तय किया जाता है कि मरीज को हार्मोनल थेरेपी दी जाएगी या सर्जरी की जाएगी. यूरोलॉजी विभाग के प्रो. समीर त्रिवेदी ने बताया कि पिछले तीन चार साल में 10 से 12 सर्जरी हो गई है. इस साल अब तक तीन ट्रांसजेंडरों की सर्जरी हो चुकी है. जबकि 18 साल से कम उम्र के 47 किन्नरों का सैंपल लिया जा चुका है. सर्जरी कराने वाले किन्नरों में लड़कियों के हार्मोन्स ज्यादा थे, लेकिन इनके प्राइवेट पार्ट पुरुष की तरह थे. सर्जरी के बाद इन्हें महिला बनाया गया है. सर्जरी के बाद से ये नॉर्मल जिंदगी जी रही हैं.



इस तरह की जाती है सर्जरी : प्रो. समीर त्रिवेदी ने बताया कि अगर कोई ट्रांसजेंडर लड़की की तरह है और उसका प्राइवेट पार्ट पुरुषों जैसा है. लेकिन वह लड़की बनना चाहता है तो उसके प्राइवेट पार्ट को हटा दिया जाता है. इसके साथ प्लास्टिक सर्जरी से आंत के टुकड़े और चमड़ी से प्राइवेट पार्ट तैयार किया जाता है. ऐसे ही अगर कोई लड़के की तरह दिख रहा है और प्राइवेट पार्ट महिला की तरह है. वह पुरुष बनना चाहता है. ऐसे में यूट्रस और अंडाशय हटा दिया जाता है. महिलाओं में क्लाइटोरेस अंग होता है. इसे विकसित कर पुरुष के प्राइवेट पार्ट का रूप दिया जाता है.

बच्चों में इस तरह से पता चल जाती है परेशानी: प्रो. समीर त्रिवेदी ने बताया कि हमारे देश में एज ग्रुप का प्रेजेंटेशन थोड़ा देरी से होता है. सामन्य तौर पर 10-12 साल से लेकर 18-20 साल तक की उम्र में ये लक्षण दिखना शुरू होते हैं. इसी उम्र में लड़कियों में हार्मोंस बढ़ने शुरू होते हैं. जब वो नहीं होते हैं तब परिजन परेशान होते हैं. साथ ही जब बच्चा बड़ा हो जाता है उसे इस चीज की समझ हो जाती है तब उसको लगता है कि उसमें कोई कमी है. उन्होंने बताया कि बाकी देशों में ये समस्याएं कम उम्र में ही पकड़ में आ जाती हैं.

हार्मोन की अधिकता व कमी से आता है बदलाव: प्रो. समीर ने बताया कि डिसऑर्डर ऑफ सेक्सुअल डेवलपमेंट की वजह से लोग ट्रांसजेंडर की श्रेणी में आते हैं. एक अध्ययन में पाया गया है कि पुरुषों में टेस्टोस्ट्रॉन हार्मोन की कमी की वजह से वह लड़कियों जैसा व्यवहार करने लगते हैं. ऐसे ही जब महिलाओं में एस्ट्रोजेन की कमी होती है या फिर टेस्टोस्ट्रॉन हार्मोन की अधिकता हो जाती है तो वह पुरुषों जैसा व्यवहार करती हैं. प्रो. समीर का कहना है कि इसके बाद सैंपल का अध्ययन किया जाता है.

सर्जरी से पहले दी जाती है हार्मोनल थेरेपी: प्रो. समीर ने बताया कि जब हार्मोंस के सैंपल की जांच कर ली जाती है. तो यह पता किया जाता है कि महिला के गुण अधिक हैं या पुरुष के. इन्हें हार्मोनल थेरेपी दी जाती है. हार्मोमल थेरेपी के बाद भी अगर इनमें सुधार नहीं होता है तो इनकी सर्जरी की जाती है. बच्चों की सर्जरी पीडियाट्रिक और युवाओं की यूरोलॉजी में सर्जरी की जाती है. इस सर्जरी के बाद वो महिला या पुरुष बन जाते हैं. इससे वो आम लोगों की तरह अपनी जिंदगी जी सकते हैं.

सर्जरी से पहले देखी जाती है मानसिक स्थिति: प्रो. समीर ने बताया कि हम ये भी देखते हैं कि बच्चे का पालन पोषण कैसे हुआ है. अगर उसे लड़के की तरह पाला गया है तो उसका मानसिक विकास भी उसी तरह हुआ होगा. ऐसे में सर्जरी के समय यह ध्यान रखना होता है कि वह किस रूप में सहज महसूस करता है. फिर सर्जरी के बाद भी अगर उसे अपने नए रूप में कंफर्ट महसूस होता है, तो सफल सर्जरी होती है. ठीक ऐसा ही लड़की की तरह पालन होने पर भी देखा जाता है. बच्चों में मानसिक विकास देखना जरुरी होता है.

जेंडर चेंज के लिए कानूनी प्रक्रियाः वरिष्ठ अधिवक्ता अजय सिंह ने बताया कि भारत में सामान्यतः लिंग परिवर्तन के लिए एक कानूनी प्रक्रिया होती है. जिसके तहत तीन से चार चरणों से गुजरना होता है. सबसे पहले व्यक्ति को एक लिंग परिवर्तन का हलफनामा बनवाना होता है, जिसमें उनके अनिवार्य दस्तावेजों को सम्मिलित किया जाता है. इसके बाद इस प्रक्रिया में विज्ञापन के जरिए हलफनामे में उल्लेखित सामग्री को प्रकाशित करवाया जाता है. इसके बाद राजपत्र प्रक्रिया पूर्ण की जाती है, जिसमें शुल्क का भुगतान भी किया जाता है. इसके साथ ही राजपत्र प्रकाशन होता है और लिंग परिवर्तन की कानूनी प्रक्रिया पूरी होती है.

यह भी पढ़ें:कानपुर में थर्ड जेंडर की सुंदरियों ने किया रैंप पर कैटवॉक

स्पेशल रिपोर्ट में जानिए थर्ड जेंडर की सर्जरी के बारे में.

वाराणसी: अब तक थर्ड जेंडर के लोगों की सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि यदि वह अपनी सर्जरी करा कर आम जीवन जीना चाहते हैं. तो उनकी आर्थिक स्थिति उन्हें इस बात की उन्हें इजाजत नहीं देती. क्योंकि सर्जरी का खर्च लाखों में होता है. ऐसे में धर्म नगरी काशी में एक नई शुरुआत हुई है. यह नई शुरुआत थर्ड जेंडर की जीवन में एक वरदान की तरह है. यहां 50 हजार से कम रुपये में थर्ड जेंडर की सफल सर्जरी की जा रही है.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के यूरोलॉजी विभाग में थर्ड जेंडर के प्राइवेट पार्ट को बिल्कुल सामान्य महिला, पुरुष के प्राइवेट पार्ट के अनुरूप बनाया जा रहा है. ये आंत के टुकड़े व चमड़ी से तैयार किए जा रहे हैं. बनारस ही नहीं बल्कि आसपास के थर्ड जेंडर आकर के इस सर्जरी को कराने की इच्छा भी रख रहे हैं. अब तक 3 से ज्यादा लोगों की सर्जरी हो चुकी है. खास बात यह है कि इस सर्जरी के बाद वह आम जनमानस की तरह अपना जीवन भी व्यतीत कर रहे हैं.

वाराणसी में थर्ड जेंडर की सर्जरी कर उनके मुताबिक रूप दिया जा रहा है.
वाराणसी में थर्ड जेंडर की सर्जरी कर नया जीवन दे रहे डाक्टर.

जीन के आधार पर होता है इलाज: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के यूरोलॉजी विभाग में प्रोफेसर और डॉक्टर अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं. इसके साथ ही सर्जरी कराने वाले की पहचान पूरी तरीके से गुप्त भी रखी गई है. एनाटॉमी विभाग की प्रो. रायॅना सिंह ने बताया कि सबसे पहले ट्रांसजेंडर की हार्मोन की जांच की जाती है. इससे पता चलता है कि उसमें किस हार्मोन की कमी और किसकी मात्रा ज्यादा है. जीन के आधार पर तय किया जाता है कि मरीज को हार्मोनल थेरेपी दी जाएगी या सर्जरी की जाएगी. यूरोलॉजी विभाग के प्रो. समीर त्रिवेदी ने बताया कि पिछले तीन चार साल में 10 से 12 सर्जरी हो गई है. इस साल अब तक तीन ट्रांसजेंडरों की सर्जरी हो चुकी है. जबकि 18 साल से कम उम्र के 47 किन्नरों का सैंपल लिया जा चुका है. सर्जरी कराने वाले किन्नरों में लड़कियों के हार्मोन्स ज्यादा थे, लेकिन इनके प्राइवेट पार्ट पुरुष की तरह थे. सर्जरी के बाद इन्हें महिला बनाया गया है. सर्जरी के बाद से ये नॉर्मल जिंदगी जी रही हैं.



इस तरह की जाती है सर्जरी : प्रो. समीर त्रिवेदी ने बताया कि अगर कोई ट्रांसजेंडर लड़की की तरह है और उसका प्राइवेट पार्ट पुरुषों जैसा है. लेकिन वह लड़की बनना चाहता है तो उसके प्राइवेट पार्ट को हटा दिया जाता है. इसके साथ प्लास्टिक सर्जरी से आंत के टुकड़े और चमड़ी से प्राइवेट पार्ट तैयार किया जाता है. ऐसे ही अगर कोई लड़के की तरह दिख रहा है और प्राइवेट पार्ट महिला की तरह है. वह पुरुष बनना चाहता है. ऐसे में यूट्रस और अंडाशय हटा दिया जाता है. महिलाओं में क्लाइटोरेस अंग होता है. इसे विकसित कर पुरुष के प्राइवेट पार्ट का रूप दिया जाता है.

बच्चों में इस तरह से पता चल जाती है परेशानी: प्रो. समीर त्रिवेदी ने बताया कि हमारे देश में एज ग्रुप का प्रेजेंटेशन थोड़ा देरी से होता है. सामन्य तौर पर 10-12 साल से लेकर 18-20 साल तक की उम्र में ये लक्षण दिखना शुरू होते हैं. इसी उम्र में लड़कियों में हार्मोंस बढ़ने शुरू होते हैं. जब वो नहीं होते हैं तब परिजन परेशान होते हैं. साथ ही जब बच्चा बड़ा हो जाता है उसे इस चीज की समझ हो जाती है तब उसको लगता है कि उसमें कोई कमी है. उन्होंने बताया कि बाकी देशों में ये समस्याएं कम उम्र में ही पकड़ में आ जाती हैं.

हार्मोन की अधिकता व कमी से आता है बदलाव: प्रो. समीर ने बताया कि डिसऑर्डर ऑफ सेक्सुअल डेवलपमेंट की वजह से लोग ट्रांसजेंडर की श्रेणी में आते हैं. एक अध्ययन में पाया गया है कि पुरुषों में टेस्टोस्ट्रॉन हार्मोन की कमी की वजह से वह लड़कियों जैसा व्यवहार करने लगते हैं. ऐसे ही जब महिलाओं में एस्ट्रोजेन की कमी होती है या फिर टेस्टोस्ट्रॉन हार्मोन की अधिकता हो जाती है तो वह पुरुषों जैसा व्यवहार करती हैं. प्रो. समीर का कहना है कि इसके बाद सैंपल का अध्ययन किया जाता है.

सर्जरी से पहले दी जाती है हार्मोनल थेरेपी: प्रो. समीर ने बताया कि जब हार्मोंस के सैंपल की जांच कर ली जाती है. तो यह पता किया जाता है कि महिला के गुण अधिक हैं या पुरुष के. इन्हें हार्मोनल थेरेपी दी जाती है. हार्मोमल थेरेपी के बाद भी अगर इनमें सुधार नहीं होता है तो इनकी सर्जरी की जाती है. बच्चों की सर्जरी पीडियाट्रिक और युवाओं की यूरोलॉजी में सर्जरी की जाती है. इस सर्जरी के बाद वो महिला या पुरुष बन जाते हैं. इससे वो आम लोगों की तरह अपनी जिंदगी जी सकते हैं.

सर्जरी से पहले देखी जाती है मानसिक स्थिति: प्रो. समीर ने बताया कि हम ये भी देखते हैं कि बच्चे का पालन पोषण कैसे हुआ है. अगर उसे लड़के की तरह पाला गया है तो उसका मानसिक विकास भी उसी तरह हुआ होगा. ऐसे में सर्जरी के समय यह ध्यान रखना होता है कि वह किस रूप में सहज महसूस करता है. फिर सर्जरी के बाद भी अगर उसे अपने नए रूप में कंफर्ट महसूस होता है, तो सफल सर्जरी होती है. ठीक ऐसा ही लड़की की तरह पालन होने पर भी देखा जाता है. बच्चों में मानसिक विकास देखना जरुरी होता है.

जेंडर चेंज के लिए कानूनी प्रक्रियाः वरिष्ठ अधिवक्ता अजय सिंह ने बताया कि भारत में सामान्यतः लिंग परिवर्तन के लिए एक कानूनी प्रक्रिया होती है. जिसके तहत तीन से चार चरणों से गुजरना होता है. सबसे पहले व्यक्ति को एक लिंग परिवर्तन का हलफनामा बनवाना होता है, जिसमें उनके अनिवार्य दस्तावेजों को सम्मिलित किया जाता है. इसके बाद इस प्रक्रिया में विज्ञापन के जरिए हलफनामे में उल्लेखित सामग्री को प्रकाशित करवाया जाता है. इसके बाद राजपत्र प्रक्रिया पूर्ण की जाती है, जिसमें शुल्क का भुगतान भी किया जाता है. इसके साथ ही राजपत्र प्रकाशन होता है और लिंग परिवर्तन की कानूनी प्रक्रिया पूरी होती है.

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