नई दिल्ली : नुपूर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी के बाद राजनयिक स्तर पर इसके अप्रत्याशित प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं. कतर, कुवैत और ईरान जैसे देशों ने विरोध जताने के लिए भारत के राजदूतों को समन कर लिया. रविवार को अचानक ही भारत सरकार को 'राजनयिक तूफान' का सामना करना पड़ गया. सोमवार को भी कई देशों ने नुपूर की टिप्पणी पर नाराजगी जाहिर की है, जबकि पार्टी दोनों ही नेताओं को निलंबित कर चुकी है.
इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने भाजपा के पूर्व नेता और पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा से बात की. उन्होंने कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से पश्चिमी देशों और खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंध बिगड़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय और राजनयिक स्तर पर नोंकझोंक की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. सिन्हा ने कहा, 'इसके क्या असर पड़ रहे हैं, यह तो सबको दिख रहा है. खाड़ी के मुस्लिम देशों और अरब देशों ने भाजपा प्रवक्ता के बयान पर गुस्से भरी प्रतिक्रिया दी है. लेकिन बात ये है कि भाजपा सत्ताधारी दल है. पार्टी और सरकार के बीच बहुत बारीक रेखा रह गई है. खासकर मोदी जैसे मजबूत नेता के दौर में जबकि पार्टी और सरकार के बीच कोई अंतर नहीं रह गया है. इसलिए हर कोई जानता है कि पार्टी द्वारा व्यक्त की गई राय पीएम की राय है और यही सरकार की भी राय है.'
सिन्हा ने कहा कि यह किसी से छिपा नहीं है कि ओआईसी भारत के खिलाफ स्टैंड के लिए जाना जाता है. उन्होंने कहा कि इस तरह के बयान पाकिस्तान जैसे देशों को ओआईसी जैसे संगठन को ऐसे मौके प्रदान कर देते हैं. भारत ने उसी अनुरूप जवाब दिया.
जब उनसे पूछा गया कि क्या इससे द्विपक्षीय संबंधों पर भी असर पड़ेंगे और क्या वहां रह रहे भारतीयों (प्रवासियों) पर भी इसका असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, 'निश्चित तौर पर यह भारतीयों हितों को आगे नहीं बढ़ाता है. किस हद तक असर पड़ेगा, क्योंकि हमारी जरूरतें, उनकी भी जरूरतें हैं. भारत ने पूरी स्थिति पर सफाई दी है. लेकिन कोई नहीं जानता है कि पर्दे के पीछे क्या चल रहा है. हमारे उप राष्ट्रपति कतर में हैं. और वहीं पर भारतीय राजदूत को समन कर लिया गया है. और हमारे राजदूत ने 'फ्रिंज एलिमेंट' जैसे शब्द का प्रयोग किया. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार इस तरह के कमेंट का समर्थन नहीं करती है.'
क्या इस तरह के बयानों से भारत की प्रतिष्ठा धूमिल नहीं होती है. इस सवाल के जवाब में सिन्हा ने कहा, हां, बिल्कुल प्रभावित होती है. मेरा मतलब है कि हम खाड़ी और अरब देशों की चर्चा कर रहे हैं. लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन के बयान पर क्यों नहीं चर्चा कर रहे हैं. सिन्हा ने कहा कि यह भी तो उतना ही डैमेजिंग है, सवाल ये है कि भारत की उदारवादी, पंथनिरपेक्ष और प्रजातांत्रिक देश वाली छवि प्रभावित होती है. सिन्हा ने कहा कि इसके साथ ही कई दूसरे मामले भी प्रभावित होते हैं.
पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा, 'जब मैं भाजपा का आधिकारिक प्रवक्ता था, तो मेरे अलावा दूसरी प्रवक्ता सुष्मा स्वराज थीं. और तब यह चर्चा होती थी कि क्या बयान देना है, किस तरह से स्तर को बरकरार रखना है. लेकिन आज की परिस्थिति को देखें तो टीवी चैनलों की बाढ़ आ गई है, उसी तरह से चर्चा करने वाले प्रवक्ताओं की भी संख्या बढ़ गई है. लेकिन कतर में भारत के राजयनिक ने पार्टी के प्रवक्ताओं को ही फ्रिंज एलिमेंट बता दिया. यह कैसे संभव है.'
इसी सवाल पर पूर्व राजनयिक जेके त्रिपाठी ने कहा, 'जो भी कुछ हुआ, उससे द्विपक्षीय संबंध प्रभावित नहीं होंगे. कभी-कभार कुछ घटनाएं हो जाती हैं. आम तौर पर प्रोटोकॉल निर्धारित हैं. अगर अल्पसंख्यकों के साथ कुछ हुआ, तो राजनयिक स्तर पर विरोध जताए जाते हैं. यह कोई नई बात नहीं है. ओआईसी तो वैसे भी भारत को लेकर कई सारे मुद्दों पर आलोचनात्मक रहा है. पाकिस्तान और कई दूसरे अतिवादी देशों की वजह से ओआईसी का कश्मीर को लेकर आग्रह रहा है. जहां तक वहां रह रहे भारतीय प्रवासियों का सवाल है तो उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. इससे भारतीय प्रवासियों का कोई लेना-देना नहीं है. यह विवाद एक दो दिनों में खत्म हो जाएगा. इससे न तो द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव पड़ने वाले हैं और न ही खाड़ी और अरब देशों से संबंध बिगड़ेंगे.'
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